Uttarkashi News: लोक संस्कृति पर्यटन को भी बढ़ावा दे रहा है यह पौराणिक उत्सव, संस्कृति, सभ्यता व भाषा को बचाने का प्रयास
Bagwal Mela उत्तरकाशी में मंगशीर बग्वाल के संवर्द्धन एवं संरक्षण के लिए कुछ स्थानीय जागरूक लोगों व अनघा माउंटेन एसोसिएशन ने 2007 से उत्तरकाशी शहर में सामूहिक रूप से बग्वाल मनाने की शुरुआत की थी जो लगातार बरकरार है। इस बग्वाल को तीन दिवसीय उत्सव के रूप में कर दिया है। अपनी संस्कृति सभ्यता पहाड़ के पारंपरिक त्योहार बोली-भाषा को बचाने का यह एक प्रयास है।
By Shailendra prasadEdited By: riya.pandeyUpdated: Sun, 10 Dec 2023 08:35 AM (IST)
जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी। Bagwal: गंगा घाटी में मंगशीर की बग्वाल का उत्सव अपनी खास पहचान बनाता जा रहा है। मंगशीर की बग्वाल (दीपावली) पौराणिक उत्सव है। ये उत्सव लोक संस्कृति पर्यटन को बढ़ावा दे रहा है। इसके साथ ही इसको मनाने को लेकर इनकी ऐतिहासिक महत्ता भी लोगों तक पहुंच रही है। जानकार बताते हैं कि मंगशीर की बग्वाल गढ़वाल की सेना की तिब्बत विजय का उत्सव है।
उत्तरकाशी में मंगशीर बग्वाल के संवर्द्धन एवं संरक्षण के लिए कुछ स्थानीय जागरूक लोगों व अनघा माउंटेन एसोसिएशन ने 2007 से उत्तरकाशी शहर में सामूहिक रूप से बग्वाल मनाने की शुरुआत की थी, जो लगातार बरकरार है। इस बग्वाल को तीन दिवसीय उत्सव के रूप में कर दिया है।
संस्कृति, सभ्यता को बचाने का प्रयास
अनघा माउंटेन एसोसिएशन के अजय पुरी कहते हैं कि अपनी संस्कृति, सभ्यता, पहाड़ के पारंपरिक त्योहार, बोली-भाषा को बचाने का यह एक प्रयास है। मंगशीर बग्वाल में हर वर्ष उत्तराखंड और अन्य राज्यों से भी लोक-संस्कृति प्रेमीजनों को आमंत्रित किया जाता है। जिससे इस उत्सव को लोक संस्कृति पर्यटन के रूप में पहचान मिले।अजय पुरी कहते हैं कि 10 दिसंबर को बाल बग्वाल का आयोजन होगा। 11 दिसंबर को बेटी बग्वाल और 12 दिसंबर को बड़ी बग्वाल का आयोजन होगा। इस आयोजन में गढ़ भोज, गढ़ संग्रहालय के साथ गढ़ औखाण, गढ़ चित्रण, गढ़ भाषण, देव डोली छूलाई की बाल प्रतियोगिता होगी।
युद्ध जीतकर घर पहुंचने पर मनाई जाती है बग्वाल
गंगोत्री तीर्थ क्षेत्र ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन शोध ग्रंथ के लेखक उमा रमण सेमवाल बताते हैं कि सन 1627-28 के बीच गढ़वाल नरेश महिपत शाह के शासनकाल के दौरान जब तिब्बती लुटेरे गढ़वाल की सीमाओं के अंदर आकर लूटपाट करते थे तो राजा ने माधो सिंह भंडारी व लोदी रिखोला के नेतृत्व में सेना भेजी थी।सेना विजय प्राप्त करते हुए दावाघाट (तिब्बत) तक पहुंच गई थी। कार्तिक मास की दीपावली के लिए माधोसिंह भंडारी घर नहीं पहुंच पाए थे। तब उन्होंने घर में संदेश पहुंचाया था कि जब वे जीतकर लौटेंगे तब ही दीपावली मनायी जाएगी। युद्ध के मध्य में ही एक माह पश्चात माधोसिंह अपने गांव मलेथा पहुंचे। तब उत्सव पूर्वक दीपावली मनायी गई। तब से अब तक मंगशीर के माह इस बग्वाल को मनाने की परंपरा गढ़वाल में प्रचलित है।
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