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Draupadi ka Danda Avalanche: एक साल पहले गई थी 29 पर्वतारोहियों की जान, सफेद चादर में समां गई थी जिंदगियां

Draupadi ka Danda Avalancheचार अक्टूबर 2022 को द्रौपदी का डांडा (डीकेडी) हिमस्खलन त्रासदी में नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग (निम) ने अपने 29 युवा पर्वतारोहियों को खो दिया था। यह घटना इतनी भयावह थी कि किसी को संभलने तक का मौका नहीं मिला। आज इस त्रासदी को एक साल हो गए हैं। इस दिन को इतिहास में हमेशा काले दिन के रुप में ही याद किया जाएगा।

By Jagran NewsEdited By: Swati SinghUpdated: Wed, 04 Oct 2023 01:50 PM (IST)
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पर्वतारोहण के काले अध्याय में दर्ज रहेगी डीकेडी त्रासदी
शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी। चार अक्टूबर 2022 का दिन पर्वतारोहण के इतिहास में कभी न भुलाया जाने वाला काला दिन है। इस दिन द्रौपदी का डांडा (डीकेडी) हिमस्खलन त्रासदी में नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग (निम) ने अपने 29 युवा पर्वतारोहियों को खो दिया था। यह घटना इतनी भयावह थी कि किसी को संभलने तक का मौका नहीं मिला। इसने विश्व भर के पर्वतारोहियों को झकझोर दिया था।

पर्वतारोहण के लिए यह घटना एक सबक की तरह है। पर्वतारोहण जितना रोमांचकारी है, उतना ही जोखिम भरा भी। पल-पल बदलते मौसम के बीच चोटियों का आरोहण करना अनुभवी पर्वतारोहियों के लिए भी आसान नहीं होता। इन हालत से कैसे निपटना है, निम ने प्रशिक्षण के दौरान हजारों पर्वतारोहियों को ये बारीकियां सिखाई हैं, लेकिन बीते वर्ष चार अक्टूबर को एडवांस कोर्स के दौरान हिमस्खलन की घटना में 29 पर्वतारोहियों की मौत ने हर किसी को झकझोर दिया।

पर्वतारोहण के काले अध्याय में दर्ज रहेगी डीकेडी त्रासदी

द्रौपदी का डांडा (डीकेडी) हिमस्खलन त्रासदी में कई घरों के इकलौते चिराग बुझे, तो कई बूढ़े माता-पिता का सहारा छिन गया। निम के पूर्व प्रधानाचार्य कर्नल (सेनि) अजय कोठियाल ने कहा कि पर्वतारोहण के दौरान हिमस्खलन की कई घटनाएं घटी हैं, लेकिन डीकेडी में हुई घटना सबसे दुखदायी है।

हालांकि, इस घटना से डरने की नहीं, बल्कि सबक लेने की जरुरत है, ताकि कभी ऐसी घटना घटित होने पर स्वयं के साथ अपनी टीम के साथियों की जान भी बचाई जा सके। कर्नल (सेनि) अजय कोठियाल ने कहा कि पर्वतारोहियों को खास प्रशिक्षण देने में निम की अपनी खास साख है। सतर्कता और हौसले के साथ निम आगे बढ़े रहा है।

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खास है निम की साख

आजादी के एक वर्ष बाद 1948 में देश का पहला पर्वतारोहण संस्थान हिमालय पर्वतारोहण संस्थान दार्जिलिंग में खुला। इसके बाद वर्ष 1965 में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान की उत्तरकाशी, वर्ष 1983 में द जवाहर इंस्टीट्यूट आफ माउंटेनियरिंग एंड विंटर स्पोर्ट्स (जिम एंड वस) की पहलगाम और वर्ष 2012 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग एंड अलाइड स्पोर्ट्स (निमास) की दिरांग में स्थापना हुई। देश के इन चारों पर्वतारोहण संस्थानों में निम की साख सबसे अच्छी मानी जाती रही है।

कई उपलब्धियां हैं निम के नाम

पर्वतारोहण में निम ने कई कीर्तिमान बनाए हैं। निम एवरेस्ट और शीशा पांग्मा समेत तीन दर्जन से अधिक चोटियों पर तिरंगा फहरा चुका है। करीब 35 हजार देशी-विदेशी पर्वतारोही यहां से प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं। सर्च एंड रेस्क्यू कोर्स कराने वाला यह एशिया का इकलौता संस्थान है। केदारनाथ में पुनर्निर्माण के चुनौतीपूर्ण कार्य को भी विपरीत हालात में कर्नल अजय कोठियाल (सेनि) के नेतृत्व में निम ने बखूबी से अंजाम दिया।

निम से निकले प्रख्यात पर्वतारोही

निम से प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले देश के प्रमुख पर्वतारोहियों में महिला एवरेस्टर सुश्री बछेंद्री पाल, वरिष्ठ पर्वतारोही चंद्रप्रभा ऐतवाल, संतोष यादव, डा. हर्षवंती बिष्ट, अर्जुन वाजपेयी, कृष्णा पाटिल, सुमन कुटियाल, सरला नेगी, अरुणिमा सिन्हा, जुड़वा बहनें नुंग्शी व ताशी, पूनम राणा, सविता कंसवाल आदि शामिल हैं।

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