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बूंद-बूंद सहेजने की सारथी बनीं गंगा और आस्था, ग्रामीणों को भी कर रहीं प्रेरित

Water Conservation पर्वतीय क्षेत्र में ज्यादातर कृषि भूमि सिंचाई के लिए बारिश पर ही निर्भर होती है। इसलिए पहाड़ की महिलाएं बारिश की एक-एक बूंद का महत्व जानती हैं। क्योंकि यहां खेती-किसानी की मुख्य रीढ़ महिलाएं ही हैं।

By Edited By: Updated: Fri, 16 Apr 2021 04:24 PM (IST)
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बूंद-बूंद सहेजने की सारथी बनीं गंगा और आस्था।
शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी। Water Conservation पर्वतीय क्षेत्र में ज्यादातर कृषि भूमि सिंचाई के लिए बारिश पर निर्भर होती है। इसलिए पहाड़ की महिलाएं बारिश की एक-एक बूंद का महत्व जानती हैं। क्योंकि यहां खेती-किसानी की मुख्य रीढ़ महिलाएं ही हैं। इन्हीं महिलाओं में शामिल है उत्तरकाशी के डुंडा गांव की अतरा देवी और भड़कोट गांव की गंगा राणा, जो वर्षा जल संचयन के लिए ग्रामीणों को प्रेरित कर रही हैं। इससे इनके गांवों की तस्वीर भी बदल रही है। इस अभियान में कृषि विज्ञान केंद्र चिन्यालीसौड़ ने तकनीकी सहयोग दिया। 

वर्ष 2013 में डुंडा ब्लॉक के डुंडा गांव में कृषि विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञ पहुंचे। तब डुंडा गांव की 65 वर्षीय अतरा देवी ने कृषि विज्ञान केंद्र के अधिकारियों के सामने सिंचाई के लिए पानी की समस्या रखी। केंद्र के विशेषज्ञों ने बारिश के पानी को एकत्र करने की तकनीक बताई। अतरा देवी ने गांव की महिलाओं को जागरूक किया। बारिश के पानी को एकत्र करने के लिए पॉलीथिन टैंक और अन्य छोटे-छोटे टैंक बनाए। अतरा देवी कहती हैं कि गांव में चार परिवारों ने उनके कहने पर खेत के एक कोने पर गड्ढा तैयार किया। उस गड्ढे में पानी संग्रह करने के लिए पॉलीथिन कृषि विज्ञान केंद्र ने उपलब्ध कराई। बारिश में घर की छत और आंगन का पानी इस पॉलीथिन टैंक में एकत्र होता है। 

आज भी इस पानी का उपयोग ग्रामीण सब्जी उत्पादन में कर रहे हैं। डुंडा गांव में बारिश के पानी का सफल उपयोग हुआ तो चिन्यालीसौड़ ब्लॉक के भड़कोट की महिलाएं कहां पीछे रहती। भड़कोट गांव में भी सिंचाई के पानी का संकट है। यहां डुंडा गांव की तरह ही खेती के लिए बारिश ही सिंचाई का एकमात्र साधन है। भड़कोट की गंगा राणा ने कृषि विज्ञान केंद्र चिन्यालीसौड़ का सहयोग लेकर बारिश की एक-एक बूंद सहेजने के लिए ग्रामीणों को प्रेरित किया। वर्ष 2019 में भड़कोट गांव की पंचमा देवी, भवनी देवी और सरिता देवी ने वर्षा जल संचय के लिए पॉलीथिन टैंक बनाए और खेती बागवानी करनी शुरू की। वर्षा जल एकत्र कर नगदी फसलों की खेती करने के लिए गंगा राणा ने खुशी स्वयं सहायता समूह बनाया। 

आपने साथ गांव की सुशीला देवी, शीला देवी, ज्ञाना देवी, सरोजनी देवी देवकी देवी और माला देवी को जोड़ा। गंगा राणा ने कोरोना काल के दौरान अपने खेत और सुशीला देवी के खेत में पॉलीथिन टैंक बनाया, जिससे सामूहिक खेती करनी शुरू की। नगदी फसल उत्पादन में आया सुधार स्नातक स्तर तक शिक्षा प्राप्त गंगा राणा कहती हैं कि बारिश के पानी के उपयोग से उन्होंने तीस हजार की पत्ता गोभी, 50 हजार रुपये के कद्दू, 40 हजार रुपये का खीरा बेचा है।

इसी तरह से भिंडी, स्टाबेरी, फूलगोभी, शिमला मिर्च, राई का भी अच्छा उत्पादन किया है। अब उनके ग्रुप की सभी महिलाएं बारिश के पानी को एकत्र करने के लिए पॉलीथीन टैंक बना रहे हैं, जिससे नगदी फसलों की सिंचाई करने में किसी तरह के परेशानी न हो। सुविधा मिलने से नगदी फसल उत्पादन में सुधार भी आया है। 

कृषि विज्ञान केंद्र प्रधान के प्रधान डॉ. चित्रांगद सिंह राघव का कहना है कि डॉ. चित्रांगद सिंह वर्षा जल संचय करने का यह सबसे आसान तरीका है। इसमें केवल गड्ढा खोदने और पॉलीथिन का ही खर्चा होता है। काफी कम धनराशि में यह टैंक तैयार किया जाता है। सिंचाई के लिए यह वर्षा जल उपयुक्त है। 

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