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शीतकाल में यहां दर्शन देती हैं मां गंगा, परंपरागत शिल्प से तैयार मकान व भागीरथी का सम्मोहन खींचता है ध्‍यान

Gangotri Dham Winter Puja समुद्रतल से 8000 फीट की ऊंचाई पर बसे मुखवा को शीतकालीन प्रवास स्थल होने के कारण गंगा का मायका भी कहा जाता है। मां गंगा के दर्शन और उनकी नियमित पूजा-अर्चना शीतकालीन प्रवास स्थल मुखवा (मुखीमठ) में जारी।

By Shailendra prasadEdited By: Nirmala BohraUpdated: Sat, 10 Dec 2022 01:27 PM (IST)
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Gangotri Dham Winter Puja : मां गंगा के दर्शन और उनकी नियमित पूजा-अर्चना मुखवा (मुखीमठ) में जारी।

शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी : Gangotri Dham Winter Puja : गंगोत्री धाम के कपाट इन दिनों शीतकाल के लिए बंद हैं, लेकिन मां गंगा के दर्शन और उनकी नियमित पूजा-अर्चना शीतकालीन प्रवास स्थल मुखवा (मुखीमठ) में जारी है।

यहां सुरम्य वादियों के बीच श्रद्धालु इत्मिनान से मां गंगा की भोग मूर्ति के दर्शन और चरणपादुका का पूजन करते हैं। अगर आप भी प्राकृतिक सुंदरता के बीच मां गंगा के दर्शन करना चाहते हैं तो गंगा के मायके मुखवा चले आइए। यहां पहाड़ी लोकजीवन का अपनापन आपके मन को आल्हादित कर देगा।

भागीरथी का सम्मोहन हर किसी को अपनी ओर खींच लेता है

भागीरथी (गंगा) के किनारे और हिमालय की गगन चूमती सुदर्शन, बंदरपूंछ, सुमेरू और श्रीकंठ चोटियों की गोद में समुद्रतल से 8000 फीट की ऊंचाई पर बसे मुखवा को शीतकालीन प्रवास स्थल होने के कारण गंगा का मायका भी कहा जाता है।

यहां की खूबसूरत वादियां, देवदार के घने जंगल, चारों ओर बिखरा सौंदर्य, हिमाच्छादित चोटियां, पहाड़ों पर पसरे हिमनद और मुखवा की तलहटी में शांत भाव से कल-कल बहती भागीरथी का सम्मोहन हर किसी को अपनी ओर खींच लेता है।

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मुखवा गंगोत्री धाम के तीर्थ पुरोहितों का गांव भी है। शीतकाल में मां गंगा की भोगमूर्ति विराजमान होने के कारण मुखवा को मुखीमठ भी कहा जाता है। इस गांव में 450 परिवार रहते हैं। इनमें से अधिकांश परिवार शीतकाल के दौरान जिला मुख्यालय उत्तरकाशी के आसपास निवास करते हैं।

मुखवा गांव के परंपरागत शिल्प से तैयार लकड़ी के मकान अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध हैं। 19वीं शताब्दी में ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारी फेडरिक विल्सन के बनाए हुए मकान यहां आज भी विद्यमान हैं।

इन मंदिरों में भी करें दर्शन

  • मुखवा में गंगा मंदिर के अलावा नृर्सिंग व सोमेश्वर देवता के मंदिर भी हैं।
  • दोनों मंदिर गंगा मंदिर से 50 मीटर की परिधि में हैं।
  • जबकि 1.5 किमी की दूरी पर भागीरथी के किनारे मार्कंडेय ऋषि का मंदिर है।
  • यहां देवी अन्नपूर्णा विराजमान हैं।
  • मान्यता है कि मार्कंडेय ऋषि ने तप कर इसी गांव में अमरत्व का वरदान प्राप्त किया था।
  • मुखवा स्थित गंगा मंदिर में दैनिक पूजा अर्चना के लिए तीर्थ पुरोहित मार्कंडेय मंदिर के पास से ही गंगाजल भरते हैं।
  • मुखवा गांव से 500 मीटर की पैदल दूरी पर धराली गांव में कल्पकेदार मंदिर स्थित है।
  • हर्षिल घाटी के 240 मंदिर समूह में यह अकेला मंदिर है।
  • 19वीं सदी की शुरुआत में श्रीकंठ पर्वत से निकलने वाली खीर गंगा में आई बाढ़ से कई मंदिर मलबे में दब गए थे।

माहात्म्य

  • तीर्थ पुरोहित रजनीकांत सेमवाल कहते हैं कि गंगा के शीतकालीन प्रवास स्थल मुखवा का भी वही माहात्म्य है, जो कि गंगोत्री धाम का।
  • स्कंद पुराण के केदारखंड में उल्लेख है कि तीर्थ यात्रियों को गंगोत्री और मुखवा में गंगा दर्शन का समान पुण्य मिलता है।
  • यहां सुबह की शुरुआत मां अन्नपूर्णा की पूजा से होती है।
  • फिर सुबह साढ़े सात बजे गंगा मंदिर में आरती होती है।
  • जबकि, संध्या आरती शाम छह बजे संपन्न होती है।

गंगा को बेटी की तरह करते हैं विदा

गंगोत्री धाम के कपाट खुलने तक मुखवा गांव का माहौल खुशियों से भरा रहता है। मां गंगा का निवास होने के कारण शीतकाल के दौरान यहां पहुंचने वाले तीर्थ यात्रियों की चहल-कदमी ग्रीष्मकालीन यात्रा जैसा एहसास कराती है।

अक्षय तृतीय के दिन गंगोत्री धाम के कपाट खुलते हैं। इससे एक दिन पूर्व गंगाजी की डोली मुखवा से गंगोत्री के लिए विदा की जाती है। मुखवा के ग्रामीण गंगा को बेटी की तरह विदा करते हैं।

हर्षिल की सुंदरता को भी निहारें

मुखवा के निकट स्थित हर्षिल कस्बा विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता बेहद खास है। यहां ठहरने के लिए दस से अधिक होटल और होम स्टे हैं। हर्षिल में भगवान हरि का मंदिर है, जिसे लक्ष्मी-नारायण मंदिर के रूप में जाना जाता है।

यहां भागीरथी और जलंध्री नदी के संगम पर एक शिला भी है, जिसे हरि शिला कहते हैं। चीन सीमा के नजदीक होने के कारण यहां सेना की छावनी भी है। वर्षभर सेना के जवानों की चहल-कदमी यहां तीर्थ यात्रियों और पर्यटकों में देशभक्ति का जोश भी भरती है।

बगोरी जाना न भूलें

मुखवा से चार किमी की दूरी पर बगोरी गांव पड़ता है। बगोरी में लकड़ी के बने घरों की सुंदरता देखते ही बनती है। आप इन घरों में होम स्टे के तहत ठहर सकते हैं। इस गांव के बीच में लाल देवता का मंदिर और एक बौद्ध स्मारक भी है।

गांव के लोग पहले भारत-चीन सीमा के नजदीकी जादूंग व नेलांग गांव में रहते थे। वर्ष 1962 के युद्ध के दौरान जब ये दोनों गांव खाली कराए गए तो यहां के ग्रामीणों ने बगोरी में अपना नया ठिकाना बनाया। ये ग्रामीण जाड़, भोटिया और बौद्ध समुदाय के हैं।

स्थानीय उत्पादों का आनंद लीजिए

अधिक ठंडा क्षेत्र होने के कारण हर्षिल व बगोरी के घर-घर में भेड़ की ऊन के वस्त्र तैयार होते हैं। आप यहां पारंपरिक वस्त्र थुलमा, पंखी, शाल, स्वेटर, कोट, दन्न, कालीन व चुटका की खरीदारी भी कर सकते हैं।

इसके अलावा हर्षिल की राजमा का स्वाद जरूर लें। पतला छिलका होने के कारण बिना सोडा डाले ही आसानी से पकने वाली राजमा हर्षिल की मुख्य पहचान है। स्वाद की दृष्टि से भी हर्षिल की राजमा का कोई जवाब नहीं है।

ऐसे पहुंचें

  • सड़क मार्ग से मुखवा पहुंचने के लिए ऋषिकेश से चंबा होते हुए 160 किमी उत्तरकाशी आना पड़ता है।
  • जबकि, देहरादून से सुवाखोली होते हुए उत्तरकाशी की दूरी 140 किमी है।
  • उत्तरकाशी से मुखवा 78 किमी की दूर पर है।
  • गांव सड़क से जुड़ा है।
  • मुखवा जाने के पहले हर्षिल जाना पड़ता है।
  • हर्षिल से मुखवा की दूरी तीन किमी है।

बर्फबारी का लें आनंद

शीतकाल के दौरान मुखवा व हर्षिल क्षेत्र में अधिकतम तापमान पांच से 15 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम तापमान दो से माइनस आठ डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है। 15 दिसंबर से 30 जनवरी तक यह क्षेत्र बर्फ की चादर ओढ़े रहता है।

बर्फबारी का आनंद लेने के लिए इस दौरान सबसे अधिक पर्यटक यहां पहुंचते हैं, जो मुखवा में मां गंगा के भी दर्शन करते हैं। सीमांत क्षेत्र होने के कारण यहां बर्फबारी से अवरुद्ध सड़क तत्काल शुरू हो जाती है। बस! यहां ठंड से बचने के लिए आपके पास गर्म कपड़ों का होना बेहद जरूरी है।

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