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यहां कंप्यूटर की-बोर्ड पर थिरक रहीं दिव्यांग बच्चों की अंगुलियां, इनको जाता है श्रेय

उत्तरकाशी जिले के तुनाल्का स्थित विजयलक्ष्मी पब्लिक व दृष्टिबाधितार्थ आवासीय विद्यालय के दिव्यांग बच्चों की अंगुलियां कंप्यूटर के की बोर्ड पर बड़ी ही तेजी से दौड़ती हैं।

By Edited By: Updated: Sat, 09 Mar 2019 09:00 AM (IST)
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यहां कंप्यूटर की-बोर्ड पर थिरक रहीं दिव्यांग बच्चों की अंगुलियां, इनको जाता है श्रेय
उत्तरकाशी, शैलेंद्र गोदिया। दृष्टिबाधित दिव्यांग भले ही दिन और रात के बीच भेद न कर पाते हों, लेकिन थोड़ा भी सहारा मिले तो उनकी उमंगें उड़ान भर सकती हैं। इसकी बानगी पेश कर रहे हैं उत्तरकाशी जिले के तुनाल्का स्थित विजयलक्ष्मी पब्लिक व दृष्टिबाधितार्थ आवासीय विद्यालय के दिव्यांग नौनिहाल। इनकी अंगुलियां कंप्यूटर के की-बोर्ड पर ऐसे दौड़ती हैं, जैसे सामान्य बच्चों की। यह सब संभव हो पाया तुनाल्का निवासी 44-वर्षीय विजयलक्ष्मी जोशी के प्रयासों से। एमए-बीएड शिक्षित विजयलक्ष्मी दिव्यांगों के लिए अपना जीवन समर्पित कर चुकी हैं। 

नौगांव ब्लॉक का तुनाल्का गांव जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 95 किमी दूर विकासनगर-बड़कोट हाइवे पर पड़ता है। यह गांव इसलिए भी खास है, क्योंकि यहां आठवीं तक का विजयलक्ष्मी पब्लिक एवं दृष्टिबाधितार्थ आवासीय विद्यालय है। वर्ष 2007 में विजयलक्ष्मी जोशी ने इस विद्यालय की स्थापना की थी। वर्तमान में यहां 40 दृष्टिबाधित और 65 सामान्य बच्चे एक साथ पढ़ते हैं। दृष्टिबाधित बच्चों की भावनाएं आहत न हों, इसलिए दृष्टिबाधित और सामान्य बच्चों को एक साथ पढ़ाया जाता है। 

विजयलक्ष्मी बताती हैं कि जब बच्चों को कंप्यूटर के बारे में जानकारी दी गई तो दृष्टिबाधित बच्चों ने कंप्यूटर सीखने की इच्छा व्यक्त की। उन्होंने दिल्ली के एक सामाजिक कार्यकर्ता कबीर के सामने यह बात रखी तो उन्होंने ब्रेल लिपि वाले दो कंप्यूटर विद्यालय को भेंट किए। सात अक्टूबर 2018 से विद्यालय में इन कंप्यूटर का संचालन शुरू किया गया। वर्तमान में पांचवीं से लेकर आठवीं कक्षा तक के 20 दिव्यांग बच्चे विद्यालय में कंप्यूटर सीख रहे हैं। सातवीं में पढ़ रही दिव्यांग छात्रा प्रियंका रावत कहती है, उसने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन वह कंप्यूटर के की-बोर्ड पर अपनी अंगुलियां चला पाएगी। अब वह पढ़ाई के साथ अच्छी तरह कंप्यूटर का ज्ञान अर्जित कर बैंक में नौकरी करना चाहती है।

विजयलक्ष्मी की प्रेरणा बनी अनुराधा 

विजयलक्ष्मी बताती हैं कि वर्ष 2002 में वह पुरोला के एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती थीं। स्कूल के पास ही अनुराधा नाम की लड़की का घर था, जो मूक-बधिर होने के साथ एक आंख से देख भी नहीं पाती थी। अनुराधा रोजाना स्कूल की बाउंड्री पर बैठकर वहां पढ़ने और खेलने वाले बच्चों को निहारा करती थी। तभी उनके मन में विचार आया कि ऐसे बच्चों के लिए कुछ किया जाना चाहिए। यह बात उन्होंने पिता, भाई व पति को बताई तो वे भी सहयोग के लिए तैयार हो गए। पिता भगतराम बिजल्वाण ने तुनाल्का में भूमि उपलब्ध कराई तो भाई आनंद बिजल्वाण ने स्कूल बनाकर दिया। पति विरेंद्र जोशी का भी पूरा सहयोग मिला और वर्ष 2007 से स्कूल की शुरुआत हो गई। 

खुद वहन करती हैं खर्चा 

विजयलक्ष्मी बताती हैं कि कि सभी दृष्टिबाधित बच्चे विद्यालय परिसर में ही रहते हैं। इनकी पढ़ाई व रहने के लिए भारत सरकार के एनआइवीटी से कुछ अनुदान तो मिल रहा है, लेकिन वर्ष में केवल दस माह के लिए। जबकि, सभी दृष्टिबाधित छात्र सालभर विद्यालय में ही रहते हैं। ऐसे में उनका खर्चा वह खुद वहन करती हैं।

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