गांव लौटे प्रवासियों के लिए मिसाल बने हरदेव सिंह, बेहतर ढंग से स्वरोजगार चलाने पर मिला प्रथम पुरस्कार
उत्तरकाशी के हरदेव सिंह राणा ने स्वरोजगार की पठकथा लिखी है। बेहतर ढंग से स्वरोजगार चलाने पर उन्हें उद्योग विभाग उत्तरकाशी से प्रथम पुरस्कार मिल चुका है।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Tue, 04 Aug 2020 10:04 AM (IST)
उत्तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल। बीते 15 वर्षों तक सामाजिक संस्था सिद्ध मसूरी में काम करने के बाद 2006 में नौगांव ब्लाक के खांशी गांव लौटे हरदेव सिंह राणा ने स्वरोजगार की पठकथा लिखी। बेहतर ढंग से स्वरोजगार चलाने पर उद्योग विभाग उत्तरकाशी की ओर से उन्हें प्रथम पुरस्कार मिल चुका है।
हरदेव सिंह राणा ने अपने 15 वर्ष के सामाजिक अनुभवों को धरातल उतरने की ठानी। गांव से पलायन न हो इसके लिए उन्होंने ग्रामीण स्तर पर ही स्थानीय उत्पादों को खरीदना शुरू किया। और नौगांव में हिमालय रवाईं हाट के नाम से दुकान खोली। स्थानीय उत्पादों को बेचकर कर बाजार बनाना शुरू किया। शुरुआत में मांग कम रही, लेकिन हरदेव सिंह राणा ने धैर्य नहीं छोड़ा। आज हरदेव सिंह राणा 30 से 40 हजार रुपये कमा लेते हैं। इसके साथ ही गांव के लोगों को भी रोजगार दे रहे हैं।हरदेव सिंह राणा ने बताया कि रोजगार पाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों के बेरोजगार युवा हमेशा रोजगार की तलाश में भटकते रहते हैं। इसके लिए वे लोग शहरों की ओर पलायन कर जाते हैं। क्योंकि उनके पास अपने गांव या आसपास के क्षेत्रों में आजीविका के अवसरों के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। अगर सही जानकारी मिल जाए तो घर पर बैठकर सभी को रोजगार मिल सकता है।
ये स्थानीय उत्पाद उपलब्ध है दुकान में
हरदेव सिंह राणा की नौगांव स्थित दुकान में झंगोरा, कौंणी, मंडुवा, जौं, राजमा, गहत, छेमी, मसूर, सोयाबीन, जख्या, तिल, धनिया, मिर्च, मेथी, मक्की के अलावा बुरांश, गुलाब, पुदीना, आंवाला, नींबू, माल्टा, अनार, सेब का जूस और आम, मिक्स अचार, लहसुन, करेला आदि के अचार उपलब्ध है। दलहन बीज में राजमा, छेमी, लोबिया, गहत, सोयाबीन, काले सोयाबीन, बीन समेत बेलदार सब्जियों के बीज भी उपलब्ध हैं। जिससे ग्रामीणों को बीज की परेशानी न हो। अन्य उत्पादों में स्थानीय स्तर पर तैयार किए गए रिंगाल की टोकरी, सुप, फूलदान, घिलडे आदि सामान उपलब्ध है।
महिलाओं को मिल रहा रोजगार हरदेव सिंह राणा बताते है कि उनके इस स्वरोजगार में उनकी पत्नी कमला राणा समेत सुशील चौहान को भी रोजगार मिल रहा है। इसके अलावा मौसम वार फसलों के आने पर उनकी सफाई, कटिंग आदि के लिए स्थानीय महिलाओं को भी रोजगार उपलब्ध हो रहा है। इन महिलाओं में पुष्पा देवी, मनकली देवी, कुमारी देवी शामिल है।
व्यवहारिक ज्ञान होना जरूरी हरदेव सिंह राणा कहते हैं कि सरकार बेरोजगारी से निपटने के प्रयास कर रही है, लेकिन ये सरकारी प्रयास क्रियान्वयन में असफल साबित हो रहे हैं। स्थानीय स्तर के उत्पादों की अनदेखी, जरूरी सही कौशल प्रशिक्षण से रोजगार आगे नहीं बढ़ पा रहा। ग्रामीण युवा तकनीकी रूप से इतने सक्षम नहीं है। ऐसे युवाओं में बेरोजगारी दूर करने में कौन-कौन से प्रयास मददगार साबित हो सकते हैं, लेकिन इस तरह प्रयास होना जरुरी भी है। ग्रामीण युवा की ताकत उसका व्यवहारिक ज्ञान है। वह खेती, पशुपालन, पर्यावरण टूरिज्म पर अच्छा काम कर रोजगार पा सकते हैं। डिग्री का मकसद नौकरी नहीं ज्ञान होना चाहिए। अगर सही ज्ञान मिल जाए तो ग्रामीण युवा अपने गांवों में आकर भी सही रोजगार पा सकता है।
पोस्ट ग्रेजुएट हैं हरदेव हरदेव सिंह राणा अर्थशास्त्र से पोस्ट ग्रेजुएट हैं। 1988 से 1992 तक सरस्वती शिशु मंदिर नौगांव में अध्यापक रहे। 1992 से लेकर 2006 तक सिद्ध संस्था मसूरी में कार्य किया। करीब 40 गांवों के ग्रामीणों के साथ शिक्षा, महिला उत्थान, कृषि, आजीविका बढ़ाने को लेकर कार्य किया।
यह भी पढ़ें: आत्मनिर्भर भारत की प्रेरणा दे रहीं सिद्दीकी बहनें, कई घरेलू महिलाओं को दिया रोजगारस्वच्छता के प्रति रहे हैं जागरूक हरदेव सिंह राणा अपने गांव खांशी में पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने 1994 में शौचालय बनाया। साथ ही ग्रामीणों को भी स्वच्छता के लिए प्रेरित किया। खांशी गांव में आज सभी परिवारों के पास शौचालय हैं। हरदेव ने गांव में वर्ष जल संरक्षण के लिए टैंक का निर्माण भी किया हुआ है।
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