हिमालय की चोटियों से बर्फ गायब, नवंबर में चिंताजनक स्थिति; समझें इसका आप पर कैसे पड़ सकता है असर
हिमालय की चोटियों से बर्फ गायब होने से चिंता बढ़ गई है। चमोली रुद्रप्रयाग टिहरी पौड़ी और उत्तरकाशी जिलों के ऊंचे कस्बों से दिखने वाली हिमालय की ऊंची चोटियां बर्फ से विहीन होकर काली और शुष्क नजर आ रही हैं। नवंबर में बर्फबारी न होने से ग्लेशियरों के पिघलने का खतरा मंडरा रहा है। जानिए हिमालय में बर्फबारी कम होने का आप पर क्या असर पड़ सकता है।
शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी। उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र में इस वर्ष नवंबर का महीना चिंताजनक स्थिति लेकर आया है। चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी, पौड़ी और उत्तरकाशी जिलों के ऊंचे कस्बों से दिखने वाली हिमालय की ऊंची चोटियां बर्फ से विहीन होकर काली और शुष्क नजर आ रही हैं।
आमतौर पर, इस समय इन चोटियों पर मोटी बर्फ की परत चढ़ जाती थी, जो ग्लेशियर के लिए सुरक्षा कवच का काम करती थी। परंतु इस बार न केवल बर्फबारी में कमी आई है, बल्कि मानसून के बाद वर्षा भी नहीं हुई।
गंगोत्री हिमालय और यमुनोत्री के पहाड़ अब काले पत्थरों और मिट्टी के रूप में दिखाई दे रहे हैं। गंगोत्री मंदिर समिति के सचिव सुरेश सेमवाल ने कहा कि उन्होंने नवंबर के महीने में कभी ऐसी स्थिति नहीं देखी।
एवरेस्टर सतल सिंह पंवार ने कहा कि गंगोत्री हिमालय की चोटियां आमतौर पर इस समय तक पूरी तरह सफेद बर्फ की चादर में लिपटी होती थीं। परंतु इस बार तो पूरी तरह से जलवायु परिवर्तन का असर दिख रहा है।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग केंद्र देहरादून के निदेशक विक्रम सिंह ने स्थिति को जलवायु परिवर्तन और मौसम के असामान्य पैटर्न से जोड़ा। विक्रम सिंह ने कहा कि इस वर्ष अक्टूबर और नवंबर में वर्षा पूरी तरह से नदारद रही है।मानसून के बाद की वर्षा में कमी के कारण हिमालय की ऊंची चोटियों पर बर्फबारी शुरू नहीं हो सकी। आने वाले आठ से दस दिनों के बाद ही वर्षा और बर्फबारी की संभावना हो सकती है। इसी कारण नवंबर माह में तापमान सामान्य तौर कुछ अधिक रहा है।
पिछले एक दो दिन से तापमान में कुछ कमी दिखी है। परंतु इसका असर बर्फबारी व वर्षा पर पड़ता नहीं दिखाई दे रहा है। वाडिया भू विज्ञान संस्थान के पूर्व वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. डीपी डोभाल ने कहा कि वर्षा और बर्फबारी में 10 से 12 दिन देरी हो चुकी है।हिमालय में बर्फबारी की देरी और कमी ग्लेशियरों के पिघलने की प्रक्रिया को तेज कर सकती है। इसका सीधा असर ग्लेशियर के साथ ग्लेशियर पोषित नदियों पर पड़ेगा।
उत्तरकाशी के पूर्व जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी देवेंद्र पटवाल ने बताया कि पिछले 15 वर्षों के आंकलन के आधार देखे तो यह स्थिति केवल मौसम के असामान्य पैटर्न का नतीजा नहीं है, बल्कि वैश्विक स्तर पर बढ़ते तापमान का प्रभाव भी है।हिमालय जैसे संवेदनशील क्षेत्र में इस तरह की घटनाएं पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को असंतुलित कर सकती हैं। यह न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि वैश्विक पर्यावरण पर भी गंभीर प्रभाव डाल सकता है।
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