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Uttarkashi : रोजगार देकर होम स्टे विलेज रोक रहा पहाड़ी गांवों से पलायन, युवा हर महीने कमा रहे हैं 40-50 हजार

Uttar Kashi वर्ष 2015-16 में एकीकृत आजीविका सहयोग परियोजना के तहत बालाजी सेवा संस्थान ने ग्रामीणों को होम स्टे के लिए प्रेरित किया। साथ ही गांव के युवाओं को होम स्टे के बारे में प्रशिक्षण दिया गया। जो पर्यटक एक बार होम स्टे में ठहरा उसने फिर अपने मित्र-परिचितों को भी यहां भेजा। धीरे-धीरे पर्यटकों के होम स्टे में ठहरने का सिलसिला चल पड़ा।

By Jagran NewsEdited By: Nitesh SrivastavaUpdated: Tue, 03 Oct 2023 06:57 PM (IST)
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रैथल गांव के होम स्टे पर्यटकों की खास पसंद बन रहे हैं। जागरण
 शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी। पहाड़ से पलायन रोकने के साथ ही बेरोजगारी दूर करने में होम स्टे योजना बेहद कारगर साबित हो रही है। इसका उदाहरण हैं उत्तरकाशी जिले के ग्राम रैथल निवासी 12 युवा, जिन्होंने होम स्टे शुरू कर अपने घर में ही सम्मानजनक रोजगार पा लिया।

आज ये युवा हर माह 40 से 50 हजार रुपये कमा रहे हैं। इनसे प्रेरित होकर गांव के अन्य युवाओं ने भी होम स्टे शुरू किए और धीरे-धीरे रैथल होम स्टे विलेज के रूप में प्रसिद्धि पा रहा है। गांव में अभी 20 से अधिक होम स्टे संचालित हो रहे हैं।

रैथल के पास नटीण, बंद्राणी, द्वारी और भटवाड़ी गांव में भी युवाओं ने होम स्टे बनाए हैं। इसके लिए पर्यटन विभाग ने इन युवाओं को प्रोत्साहित किया। साथ ही इनके होम स्टे पंजीकृत भी किए हैं।

जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 42 किमी दूर स्थित रैथल गांव प्रसिद्ध दयारा बुग्याल का बेस कैंप भी है। इस गांव में 175 परिवार रहते हैं, जिनकी आर्थिकी का मुख्य स्रोत पशुपालन और खेती है। हालांकि, इससे उनका गुजारा नहीं हो पाता होता था।

यही देख वर्ष 2015-16 में एकीकृत आजीविका सहयोग परियोजना के तहत बालाजी सेवा संस्थान ने ग्रामीणों को होम स्टे के लिए प्रेरित किया। साथ ही गांव के युवा पृथ्वीराज सिंह राणा, सुमित रतूड़ी, अरविंद रतूड़ी, देवेंद्र पंवार, यशवीर राणा, यशवीर प्रताप राणा, सोबत सिंह राणा, अभिमन्यु रावत, मनवीर रावत, जयराज रावत, अनिल रावत व रविंद्र राणा को होम स्टे के बारे में प्रशिक्षण दिया गया।

इसके बाद इन युवाओं ने अपने पुश्तैनी घर में ही एक-एक, दो-दो कमरों की साफ-सफाई कर उन्हें होम स्टे के लिए तैयार किया। शुरुआत में दयारा बुग्याल आने-जाने वाले पर्यटकों से संपर्क किया गया।

जो पर्यटक एक बार होम स्टे में ठहरा, उसने फिर अपने मित्र-परिचितों को भी यहां भेजा। धीरे-धीरे पर्यटकों के होम स्टे में ठहरने का सिलसिला चल पड़ा।

पर्यटकों का अतिथि जैसा सत्कार

होम स्टे संचालक पृथ्वीराज सिंह राणा बताते हैं कि उन्होंने एमकाम की पढ़ाई के दौरान ही अपने पुश्तैनी घर को होम स्टे के लिए तैयार किया। पारंपरिक घर में रुकना, पहाड़ के पारंपरिक व्यजंनों का आनंद लेना पर्यटकों को सबसे अधिक भाता है।

होम स्टे से प्रतिवर्ष छह से आठ लाख रुपये की आय हो जाती है। होम स्टे संचालन में माता-पिता भी पूरा सहयोग करते हैं। स्नातक तक पढ़े 35-वर्षीय सुमित रतूड़ी कहते हैं कि पहाड़ में होम स्टे से बेहतर कोई रोजगार नहीं है। इसमें पर्यटकों को वही भोजन परोसना है, जिसे आप अपने लिए रोज बनाते हैं।

बस! आवास के साथ शौचालय की सुविधा होनी चाहिए। अगर घर पुराना है तो पर्यटकों के लिए उसका आकर्षण बढ़ जाता है। सुमित कहते हैं अब गांव के अन्य बेरोजगार भी होम स्टे शुरू करने के लिए प्रेरित हो रहे हैं।

सोबत सिंह राणा बताते हैं कि होम स्टे में देशी-विदेशी पर्यटकों को पहाड़ की संस्कृति, सभ्यता, खानपान और रहन-सहन से अवगत कराया जाता है। साथ ही यह भी ध्यान रखा जाता है कि पर्यटक पहाड़ के दूरदराज के गांवों में पहुंचें तो उन्हें कोई परेशानी नहीं हो और वे ग्रामीणों के बीच उनके अतिथि बनकर रहें।

अतिथियों के खानपान का पूरा ध्यान

सुमित रतूड़ी बताते हैं कि होम स्टे में ठहरने के लिए दो तरह के पर्यटक आते हैं। कुछ पर्यटक कई दिनों तक ठहरना पसंद करते हैं, जबकि कुछ एक-दो दिन के लिए ही आते हैं। अतिथियों के खानपान का पूरा ध्यान रखा जाता है।

खाने में घर का दूध, दही व मक्खन के अलावा गहत की दाल, फाणू, चैंसू, सोयाबीन के छोले, कंडाली की काफली, मडुंवा की रोटी, लाल चावल, झंगोरा, राजमा की दाल सहित कई स्थानीय सब्जी, चटनी, पिसा हुआ नमक दिया जाता है।

पर्यटन विभाग कर रहा प्रचार-प्रसार

पृथ्वीराज बताते हैं कि होम स्टे में ठहरने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। पर्यटन विभाग भी होम स्टे को प्रचारित-प्रसारित कर रहा है। मुख्य सचिव व पर्यटन सचिव भी उनके होम स्टे में आ चुके हैं।

उन्होंने सभी होम स्टे संचालकों का मनोबल भी बढ़ाया। होम स्टे में पर्यटकों के लिए स्थानीय उत्पाद भी रखे गए हैं, जिन्हें वह बड़ी मात्रा में खरीदकर लेकर जाते हैं।

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