दयारा बुग्याल में मखमली घास बचाने की पहल, जूट के जाल का होगा कवच
हिमालय की गोद में फैले औषधीय पौधों और मखमली घास से लकदक मैदानों (बुग्याल) को बचाने के लिए नई पहल की जा रही है। भूस्खलन से नुकसान को बचाने के लिए यहां जूट के जाल का कवच बनेगा।
By BhanuEdited By: Updated: Thu, 28 Nov 2019 08:41 PM (IST)
उत्तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल। हिमालय की गोद में फैले औषधीय पौधों और मखमली घास से लकदक मैदानों (बुग्याल) को बचाने के लिए नई पहल की जा रही है। इसकी शुरुआत उत्तरकाशी जिले में समुद्रतल से 10,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित दयारा बुग्याल से हो रही है।
दरअसल, भू-क्षरण और कटाव के कारण बुग्यालों को खासा नुकसान पहुंच रहा है। आग से भी बहुत क्षति पहुंचती है। पारिस्थितिकी और पर्यटन के लिहाज से बुग्यालों का खासा महत्व है। इसीलिए इनके संरक्षण को सरकार खासा ध्यान दे रही है। हालांकि यह प्रयोग एकदम नया है। इसके लिए ओडिशा से जूट और नारियल के रेशों से तैयार जाल (केयर नेट) के 90 बंडल उत्तरकाशी पहुंच चुके हैं। साथ ही पिरुल (चीड़ की पत्ती) धरासू रेंज के सिलक्यारा से लाई जा रही है। कोटद्वार से बांस के खूंटे पहुंच रहे हैं। केयर चेक डैम और केयर नेट से बुग्याली क्षेत्र में कटाव को रोकने के लिए कमर कस ली गई है।
हिमालय का पारिस्थितिकी तंत्र बेहद संवेदनशील माना जाता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण हैं बुग्याल, जिनका संरक्षण वर्तमान में बेहद जरूरी हो गया है। दरअसल, बीते कुछ वर्षों में प्राकृतिक कारणों और मानवीय हस्तक्षेप के चलते बुग्यालों में भूस्खलन की रफ्तार बढ़ी है। इससे उनके अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है। ऐसे संकटग्रस्त बुग्यालों में सबसे ऊपर दयारा बुग्याल है। जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 50 किमी दूर दयारा बुग्याल 30 वर्ग किमी क्षेत्र फैला हुआ है। उत्तरकाशी वन विभाग के मंडल वन अधिकारी (डीएफओ) संदीप कुमार बताते हैं कि दयारा बुग्याल में मिट्टी के कटाव-क्षरण को लेकर एक सर्वे किया गया। इसमें सौ से अधिक स्थानों पर मिट्टी का कटाव मिला, जो भूस्खलन की ओर बढ़ रहा है।
इसलिए बुग्याल के ट्रीटमेंट को विशेषज्ञों की सलाह से केयर नेट और केयर चेक डैम की योजना बनाई गई। केयर नेट जूट और नारियल के रेसों से बनी एक प्रकार की मैट या जाल है। इसके 90 बंडल उत्तरकाशी पहुंच चुके हैं, जिन्हें उन स्थानों पर बिछाया जाना है, जहां मिट्टी का कटाव हो रहा और केयर चेक डैम नहीं बन सकते। साथ ही केयर चेक डैम (बाड़) पिरुल के बनाए जाएंगे। इनके लिए पत्थरों के स्थान पर बांस के खूंटों को गाड़ा जाएगा।
डीएफओ संदीप कुमार कहते हैं कि बुग्यालों का अति संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र होने के कारण दयारा बुग्याल में अनुरक्षण और संवर्धन का कार्य बुग्याल के पारिस्थितिकी तंत्र के अनुसार किया जा रहा है, ताकि उपचार के दौरान भी बुग्याल को किसी तरह का नुकसान न पहुंचे।दयारा बुग्याल के शुरुआती हिस्से धिनाड़ा के 300 मीटर हिस्से में बड़ा भूस्खलन सक्रिय है। इसकी चपेट में दयारा बुग्याल को जाने वाला रास्ता भी आ रहा है। बुग्याल में कुंती माता के सेरे (खेत) के ऊपरी हिस्से में भारी कटाव हो रहा है। इसके अलावा काणाताल के निकट भी बुग्याल का काफी अधिक कटाव हो रहा है।
पर्यटकों के लिए खास है दयाराहिमालय के पारिस्थितिकी तंत्र में जहां बुग्यालों की अहम भूमिका है, वहीं पर्यटकों के लिए भी ये बेहद खास हैं। शीतकाल में दिसंबर से लेकर अप्रैल तक बुग्याल की ढलानों पर बर्फ की चादर बिछी रहती है। शीतकालीन खेलों के लिए भी यहां आदर्श स्थितियां हैं। स्कीइंग विशेषज्ञ सतल सिंह पंवार बताते हैं कि दयारा बुग्याल में स्कीइंग के लिए गुलमर्ग से बेहतर स्थितियां हैं। मई से लेकर नवंबर तक यहां पर्यटक प्रकृति का आनंद लेते हैं।
यह भी पढ़ें: वादियों के बीच बहता ये झरना है प्रकृति का नूर, लेकिन फिर भी पर्यटकों से दूर कटाव की ये हे वजह उत्तरकाशी के जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी देवेंद्र पटवाल के मुताबिक, कमजोर भौगोलिक गठन, भूमि संरचना, भूकंपीय सक्रियता, अधिक बरसात और बादलों के फटने जैसी प्राकृतिक घटनाएं बुग्याली क्षेत्र में मिट्टी के कटाव का प्रमुख कारण होती हैं। हालांकि बुग्यालों में अत्याधिक मानवीय हस्तक्षेप भी मिट्टी के कटाव का कारक है। इसके अलावा बुग्यालों में एक ही स्थान पर पशुओं को चराना भी इसकी एक वजह है।
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