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हिमालय की गोद में बसा केदारकांठा टॉप, बेहद मनमोहक है सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा; रोमांचित कर देगा यहां का एडवेंचर

केदारकांठा ट्रेक की शुरुआत सांकरी और सौड़ गांव के पारंपरिक होम स्टे से होती है। यहां अतिथि सत्कार पर्यटकों के लिए यादगार बन जाता है। फिर बुग्याली क्षेत्र में छोटी-छोटी झीलों के आसपास कैंपिंग और केदारकांठा टाप तक की ट्रेकिंग पर्वतारोहण की सी अनुभूति कराती है। केदारकांठा ट्रेक के बेस कैंप सांकरी और सौड़ गांव में ग्रामीण जनजीवन की झलक देखने को मिलती है।

By Jagran News Edited By: Nitesh Srivastava Updated: Fri, 05 Apr 2024 06:23 PM (IST)
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चिरस्मरणीय है हिमालय में प्रकृति का शृंगार और लोक का सत्कार
शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी। चारों ओर बर्फ की चादर ओढ़े गगन चूमते शिखरों से घिरा केदारकांठा टाप आनंद की अनुभूति कराने वाला बुग्याली क्षेत्र है। उत्तरकाशी जिले में समुद्रतल से 3800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित केदारकांठा टाप से सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा बेहद मनमोहक होता है।

हिमालय की धवल चोटियां सुबह-शाम के वक्त यहां से स्वर्ण आभा बिखेरती नजर जाती हैं। पिछले कुछ वर्षों से नववर्ष के मौके पर बड़ी संख्या में पर्यटक यहां सूर्योदय के दीदार को पहुंच रहे हैं। केदारकांठा ट्रेक की शुरुआत सांकरी और सौड़ गांव के पारंपरिक होम स्टे से होती है।

यहां अतिथि सत्कार पर्यटकों के लिए यादगार बन जाता है। फिर बुग्याली क्षेत्र में छोटी-छोटी झीलों के आसपास कैंपिंग और केदारकांठा टाप तक की ट्रेकिंग पर्वतारोहण की सी अनुभूति कराती है।

केदारकांठा ट्रेक के बेस कैंप सांकरी और सौड़ गांव में ग्रामीण जनजीवन की झलक देखने को मिलती है। इन गांवों में पर्यटकों का स्वागत-सत्कार खास अंदाज में होता है। पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन पर पर्यटकों को होम स्टे तक पहुंचाया जाता है।

दोनों गांवों में करीब 3,000 पर्यटकों के ठहरने के लिए होटल व होम स्टे उपलब्ध हैं। सभी होम स्टे देवदार की लकड़ी के बने हैं। गांवों के अधिकांश युवा पर्यटन से जुड़े हैं। गोविंद वन्यजीव विहार राष्ट्रीय पार्क क्षेत्र में होने के कारण केदारकांठा जाने के लिए प्रतिदिन 150 पर्यटकों को अनुमति दी जाती है।

दिवस विशेष पर पर्यटकों की संख्या में छूट दी जाती है। सांकरी से चार किमी दूर जूड़ाताल है। यहां रस्सियों के सहारे ताल को आर-पार करने सहित राक क्लाइंबिंग, रैपलिंग जैसी साहसिक खेल गतिविधियां भी होती हैं। जूड़ाताल से तीन किमी दूर समुद्रतल से 2800 मीटर की ऊंचाई पर तालखेत्रा में केदाकांठा का एडवांस कैंप है। यहां से बुग्याली क्षेत्र शुरू हो जाता है, जिसमें ग्रामीणों की छानियों के अलावा कैंपिंग साइड भी हैं।

छानियों में रहने वाले ग्रामीण पर्यटकों के लिए पारंपरिक भोजन बनाते हैं। तालखेत्रा से केदारकांठा टाप की दूरी चार किमी है। सूर्योदय का नजारा देखने के लिए पर्यटक तालखेत्रा से रात दो-तीन बजे के आसपास केदारकांठा टाप की ट्रेकिंग शुरू करते हैं। सूर्योदय का नजारा पर्यटकों को आल्हादित कर देता है।

पारंपरिक पहाड़ी पकवानों का लें स्वाद

पर्यटन व्यवसायी भगत सिंह रावत कहते हैं कि सौड़ और सांकरी के होम स्टे में रामदाने का हलुवा, मंडुवे और रामदाने की रोटी, कंडाली की सब्जी, लाल छेमी (राजमा) की दाल, पहाड़ी आलू के गुटके, लाल चावल, फाफरे की रोटी, भेतू की खीर (भेत्वाड़ी), मंडुवा और चावल के आटे के पकवान (जग्लाड़ी), चौलाई को उबालकर बनाया जाने वाला पकवान (लिमड़ी), स्थानीय मशरूम, दाल के पकौड़े, मीठी रोटी व घी जैसे पकवान पर्यटकों को परोसे जाते हैं। इनका पर्यटक जी-भरकर आनंद लेते हैं।

खास होता है अतिथि सत्कार

पर्यटकों के स्वागत के बाद उन्हें स्थानीय पोशाक पहनाई जाती है, जिसे वह खास पसंद करते हैं। पारंपरिक पोशाक में पर्यटक स्थानीय निवासियों के साथ रांसो, तांदी, छौंपति, लामेण, बाजू और छोड़ा जैसा लोकनृत्य करते हैं। इसके अलावा गांव की सैर भी उन्हें पारंपरिक पोशाक में ही कराई जाती है। इस पारंपरिक पोशाक को पर्यटक खरीद भी सकते हैं।

इन चोटियों का होता है दीदार

केदारकांठा ट्रेक से हिमालय की अधिकांश चोटियों का दीदार होता है। इनमें बंदरपूंछ, व्हाइट माउंटेन, हाटा-मंडिंडा, रंगलाना, देवक्यारा, हरकीदून, गरुड़ पर्वत, कालानाग, स्वर्गारोहिणी और गंगोत्री रेंज की चोटियां शामिल हैं। इसके अलावा केदारकांठा टाप से पुरोला की रामा सिराई घाटी, सर बडियार घाटी और हनोल के महासू देवता मंदिर का भी विहंगम नजारा दिखाई देता है।

समर और विंटर, दोनों मौसम में अनुकूल

केदारकांठा की विशेषता है कि यह क्षेत्र समर और विंटर, दोनों मौसम में सैर के लिए अनुकूल है। दिसंबर से फरवरी तक केदारकांठा बर्फ की चादर ओढ़े रहता है। सुरक्षित ट्रेक होने के कारण शीतकाल में बर्फ के बीच ट्रेकिंग करने के लिए पर्यटक सबसे अधिक उत्साहित होते हैं। जबकि, अप्रैल से लेकर जून तक बुग्याल हरे-भरे हो जाते हैं। जुलाई और अगस्त में बरसात के चलते पर्यटक यहां कम आवाजाही करते हैं। सितंबर और अक्टूबर में यह पूरा क्षेत्र फूलों से गुलजार हो जाता है।

भगवान शिव से जुड़ी है मान्यता

लोक मान्यता के अनुसार पांडव भगवान शिव के दर्शन को हिमालयी क्षेत्र में आए, लेकिन भगवान शिव उन्हें चकमा देते रहे। फिर पांडव केदारकांठा भी पहुंचे, जहां शिव ने बैल का रूप धारण किया था। केदारकांठा को स्थानीय ग्रामीण बाबा केदार का ठौर भी मानते हैं। ग्रामीणों के अनुसार बाबा केदार पहले केदारकांठा में विराजमान रहे हैं, इसलिए हर वर्ष 15 जुलाई को यहां मेला लगता है, जिसमें ग्रामीण बड़ी संख्या में शामिल होते हैं।

ये हैं सुविधाएं

केदारकांठा के बेस कैंप गांव सौड़-सांकरी में 15 से अधिक होटल हैं और 150 से अधिक होम स्टे। यहां पहाड़ी पकवान भी उपलब्ध हो जाते हैं। इन दोनों गांव के युवा ट्रेकिंग से जुड़े हैं, इसलिए ट्रेकिंग के लिए टेंट, स्लीपिंग बैग व अन्य सामान सहित गाइड व पोर्टर भी यहां उपलब्ध हैं। सांकरी और सौड़ गांव के होटल व होम स्टे में 5,000 से अधिक पर्यटक एक साथ ठहर सकते हैं।

ऐसे पहुंचें

केदारकांठा जाने के लिए देहरादून से मसूरी, पुरोला व मोरी होते हुए 200 किमी की दूरी तय कर सांकरी और सौड़ गांव पहुंचना पड़ता है। यहां होटल, होम स्टे व ट्रेकिंग एजेंसी उपलब्ध हैं। सांकरी-सौड़ से 11 किमी का पैदल ट्रेक है। इस ट्रेक को करने में दो से तीन दिन का समय लगता है।

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