Magh Mela Uttarkashi: यहां सीटी बजाने पर अवतरित होते हैं भगवान, अनोखी है दो भाइयों की परंपरा
Magh Mela Uttarkashi उत्तरकाशी का प्रसिद्ध माघ मेला (बाड़ाहाट कु थौलू) का आयोजन किया जा रहा है। धार्मिक मान्यताओं में यह मेला महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। मेले में हरिमहाराज की पूजा अर्चना और उनका आह्वान किया जाता है।
By Jagran NewsEdited By: Nirmala BohraUpdated: Tue, 17 Jan 2023 02:00 PM (IST)
टीम जागरण, उत्तरकाशी: Magh Mela Uttarkashi: इन दिनों उत्तराखंड के कई इलाकों में माघ मेले का आयोजन किया जा रहा है। उत्तरकाशी का प्रसिद्ध माघ मेला (बाड़ाहाट कु थौलू) का आयोजन किया जा रहा है। इस मेले में बाड़ागडी पट्टी के अराध्य देव हरिमहाराज की पूजा अर्चना और उनका आह्वान किया जाता है।
महाभारत काल से जुड़ा हुआ है यह मेला
उत्तरकाशी के माघ मेले का अपना धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है। धार्मिक मान्यताओं में यह मेला महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। जबकि ऐतिहासिक महत्व यह है कि यह मेला भारत और तिब्बत के व्यापार का साक्षी रहा है।
भगवान शिव-पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का रूप हैं हरिमहाराज
ग्रामीणों का कहना है हरिमहाराज भगवान शिव-पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का रूप हैं। यह बाडागड़ी स्थित हरिगिरी पर्वत पर कुज्ब नामक स्थान पर निवास करते हैं। यह बाड़ागडी पट्टी के अराध्य देव हैं। हरिमहाराज का भाई हुणेश्वर देव को माना जाता है।दोनों भाई सीटी बजाकर देते थे एक दूसरे को संकेत
मान्यता है कि कालांतर में यह दोनों भाई सीटी बजाकर ही एक दूसरे को संकेत देते थे। तब से लेकर अब तक सीटी बजाने की परंपरा चली आ रही है। मान्यता है कि बिना सीटी बजाए हरिमहाराज अपने पाश्वा पर अवतरित नहीं होते, ग्रामीण श्रद्धालु सीटी बजाकर ही अपने देव को प्रसन्न करते हैं।
माघ मेले (बाड़ाहाट कु थौलु) में बाड़ागडी पट्टी के अराध्य देव हरिमहाराज की झांकी भी निकली गई। जिसमें बाड़ागड़ी के मुस्टिकसौड़, कुरोली, बोंगाड़ी, कंकराड़ी, मस्ताड़ी, बोंगा, भेलुड़ा, डांग, पोखरी, कंसैंण, कोटियाल गांव, लदाड़ी, जोशियाड़ा, थलन, मंगलपुर, साड़ा समेत कई गांव ग्रामीणों ने प्रतिभाग किया।
अराध्य देव को प्रसन्न किया और शोभा यात्रा निकाली
डांग गांव की थात से हरिमहाराज का ढौल, खंडद्वारी माता और नागदेवता डोली के साथ माघ मेला खेला। इस दौरान श्रद्धालुओं ने सीटी बजाकर अपने अराध्य देव को प्रसन्न किया और शोभा यात्रा निकालकर चमाला की चौंरी में पहुंचे। यहां ग्रामीण श्रद्धालुओं ने अपने अराध्य देव की विधिविधान से पूजा अर्चना कर रासों नृत्य किया।
डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।