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स्वर्गारोहण के समय कुश कल्याण बुग्‍याल से गुजरे थे पांडव, पढ़िए पूरी खबर

उत्‍तरकाशी में मखमली घास के मैदान फैले हुए हैं। इन्हीं ताल-बुग्यालों में शामिल है उत्तरकाशी का बेलक-कुश कल्याण बुग्याल। स्वर्गारोहण के समय पांडव इन्हीं बुग्याल से गुजरे थे।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Sat, 28 Sep 2019 01:00 PM (IST)
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स्वर्गारोहण के समय कुश कल्याण बुग्‍याल से गुजरे थे पांडव, पढ़िए पूरी खबर
उत्तरकाशी, जेएनएन। हिमालय का आंचल ताल और बुग्याल (मखमली घास के मैदान) की सुंदर वादियों में फैला हुआ है। पर इनमें अधिकांश वादियां पर्यटकों की नजर से ओझल है। इन्हीं ताल-बुग्यालों में शामिल है उत्तरकाशी का बेलक-कुश कल्याण बुग्याल। कहा जाता है कि स्वर्गारोहण के समय पांडव इन्हीं बुग्याल से गुजरे थे। 

करीब 13500 फीट की ऊंचाई पर स्थिति बेलक-कुश कल्याण बुग्याल क्षेत्र 25 किलोमीटर वर्ग क्षेत्र में फैला हुआ है। एक समय यह भी था जब यह क्षेत्र चारधाम के तीर्थयात्रियों से गुलजार रहता था। जब से सड़क संसाधन की सुविधा मिली तब से यह क्षेत्र केवल किस्से-कहानियों तक ही सीमित है।

बेलक और कुश कल्याण बुग्याल को पहुंचने के लिए उत्तरकाशी जनपद से पांच रास्ते हैं। जबकि एक रास्ता टिहरी के बूढाकेदार से शामिल है। चारों ओर से रास्ते होने के बावजूद बेलक और कुश-कल्याण बुग्याल का पर्यटन क्षेत्र के रूप में कल्याण नहीं हो सका है। इन रास्तों में एक रास्ता लाटा-सिल्ला, दूसरा लाटा सौरा-बेलक जौराई, तीसरा रास्ता नलूड़ा-स्याबा-बेलक, चौथा रास्ता ठांडी-कमद-बेलक जौराई, पांचवां रास्ता चौरंगी हरूंता-बेलक शामिल है। जबकि एक रास्ता बूढ़ाकेदार से होकर जाता है। इन सभी मार्गों पर 12 से लेकर 15 किलोमीटर का पैदल ट्रैक है। जिला मुख्यालय से भी यह बुग्याली क्षेत्र 60 किलोमीटर की रेंज में है, लेकिन पर्यटन विकास की दृष्टि से यह क्षेत्र उपक्षित है। पर्यटन विभाग के पास न तो इस क्षेत्र का कोई मैप है और न इस क्षेत्र से संबधित कुछ जानकारी। अगर कुछ जानकारी हो तो कुश कल्याण और बेलक के निकट पडऩे वाले दर्जन भर गांवों के लोगों को है।

प्रसिद्ध फोटोग्राफर 62 वर्षीय गुलाब सिंह नेगी कहते हैं कि कुश कल्याण से करीब 20 किलोमीटर आगे सहस्त्रताल है। वह भी पर्यटन और तीर्थाटन की उपेक्षा का दंश झेल रहा है। वे कहते कि एक समय ऐसा था जब सड़क मार्ग नहीं थे, तब चारधाम यात्री गंगोत्री से लाटा होते हुए बेलक पहुंचते थे। पुराने समय में इसे बेलक चट्टी भी कहते थे। बेलक से बुढ़ाकेदार, घुत्तू, पंवाली कांठा होते हुए यात्री त्रिजुगीनारायण पहुंचते थे।

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जाड़ी संस्थान के अध्यक्ष द्वारिका सेमवाल कहते हैं कि बेलक, जौराई-कुश कल्याण क्षेत्र में कदम-कदम पर बुग्याल और ताल हैं, लेकिन ये सब पर्यटकों की नजर से ओझल है। इस क्षेत्र की पौराणिक मान्यता भी है। कहते हैं कि स्वर्गारोहण के दौरान पांडवों ने भी इस बुग्याल में विश्राम किया था और उसके बाद वह यहां से होते हुए केदारनाथ की ओर रवाना हुआ। इसी के तर्ज पर इस बुग्याल की चोटी को पांडव चोटी भी कहा जाता है। 

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