पहाड़ी माल्टा पर भारी पड़ रहा है पंजाब का कीनू, जानिए वजह
पंजाब का कीनू पहाड़ी माल्टा पर भारी पड़ रहा है और इसकी वजह माल्टा का सही तरीके से संरक्षण न हो पाना है।
By Edited By: Updated: Sat, 14 Dec 2019 04:36 PM (IST)
उत्तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल। पहाड़ का माल्टा अपने रसीलेपन के लिए खास पहचान रखता है। लेकिन, इस पहचान का सही ढंग से संरक्षण न होने के कारण पहाड़ में पंजाब का कीनू कब्जा जमा रहा है। अकेले उत्तरकाशी जिले में रोजाना दो टन कीनू की खपत हो रही है।
उत्तरकाशी जिले के पुरोला, भटवाड़ी, चिन्यालीसौड़, डुंडा और नौगांव क्षेत्र में माल्टा का अच्छा-खासा उत्पादन होता है, जबकि पूरे जिले में माल्टा का औसत उत्पादन 469.64 मीट्रिक टन है। सबसे अधिक उत्पादन चिन्यालीसौड़ में होता है। लेकिन, सही दाम न मिल पाने के कारण माल्टा गांवों से बाजार नहीं आ पा रहा, जो माल्टा बाजार में उपलब्ध है भी, उसे बेहद छोटा होने के कारण लोग पसंद नहीं कर रहे। इस वजह से बाजार में कीनू की मांग बढ़ गई है।
उत्तरकाशी में कीनू 50 रुपये किलो के भाव बिक रहा है। शहर के प्रमुख फल-सब्जी विक्रेता तस्दीक खान ने बताया कि केवल उत्तरकाशी जिले में ऋषिकेश से रोजाना दो टन कीनू पहुंच रहा है। कीनू की पैदावार सबसे अधिक पंजाब और हरियाणा के निचले हिस्से में होती है। माल्टा की तरह की कीनू भी खट्टा-मीठा होता है, लेकिन माल्टा की तरह अधिक रसीला नहीं। हां, कीनू के बाहरी छिलके को हटाने में आसानी जरूर होती है।
विपणन की सुविधा न गांवों से उठाने को इंतजाम
सरकार ने माल्टा का समर्थन मूल्य सात रुपये प्रति किलो घोषित किया है। लेकिन, न माल्टा को गांव-गांव में खरीदने की कोई व्यवस्था है, न काश्तकारों के पास मंडी तक पहुंचाने के साधन। इससे माल्टा गांवों में ही सड़ रहा है। भटवाड़ी ब्लॉक की प्रमुख विनीता रावत और बनचौरा निवासी रतनमणी नेगी कहते हैं कि कुछ सालों से उद्यान विभाग माल्टा के उत्पादन पर ध्यान नहीं दे रहा। इससे उसके आकार और क्वालिटी में भी कमी आई है।
मुख्य उद्यान अधिकारी प्रभाकर सिंह का कहना है कि आने वाला समय माल्टा का है। माल्टा की उन्नत किस्म की पौध तैयार की जा रही है। पहले चरण में डुंडा के पांच गांवों को लिया जा रहा है। गुणवत्ता के साथ अच्छा उत्पादन लक्ष्य है, जिससे काश्तकारों को उचित मूल्य मिल सके।
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