सड़क पर टूटा सब्र का बांध, महिलाओं ने गले में डाला फंदा, पुलिस के छूटे पसीने
उत्तरकाशी में सड़क निर्माण की मांग कर रहे ग्रामीणों के सब्र का बांध टूट गया है। प्रदर्शन कर रही महिलाओं गले में फंदा डाल छत के सहारे लटक गर्इं।
By Raksha PanthariEdited By: Updated: Sat, 29 Sep 2018 09:35 PM (IST)
उत्तरकाशी, [जेएनएन]: 250 दिन से सड़क की मांग को लेकर धरना दे रहे ग्रामीणों के सब्र का बांध टूटा तो पुलिस के पसीने भी छूट गए। उन्होंने न केवल जिला मुख्यालय में कनस्तर बजाकर प्रदर्शन किया, बल्कि एक पूर्व सैनिक कलेक्ट्रेट के प्रेक्षागृह की छत पर चढ़ रस्सी के सहारे झूल गया और तीन महिलाओं ने गले में रस्सी का फंदा डाल दिया। बामुश्किल पुलिस ने किसी तरह उन्हें रोका। पूर्व सैनिक को भी बलपूर्वक छत से उतारा गया। पुलिस ने प्रदर्शन करने वाले ग्रामीणों को हिरासत में लेकर शांति भंग में चालान किया।
दरअसल, पोखरी गांव जिला मुख्यालय से तीन किलोमीटर दूर है। यहां करीब 40 परिवार रहते हैं। ग्रामीण लंबे समय ये नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के मोड़ से गांव तक सड़क बनाने की मांग कर रहे हैं। वर्ष 2004 में यह सड़क स्वीकृत हुई थी। वर्ष 2006 में वन भूमि भी हस्तांतरित भी कर दी गई, लेकिन इसके बाद मामला एलाइनमेंट में फंस गया। यह विवाद इतना लंबा चला कि वर्ष 2015 में भारत सरकार ने सड़क निर्माण की स्वीकृति यह कहते हुए निरस्त कर दी कि लंबे समय से सड़क का निर्माण नहीं किया गया। इस पर लोक निर्माण विभाग और प्रशासन से जवाब भी मांगा गया। बाद में किसी तरह मामला सुलझा तो इसी साल मई में पड़ोस के गांव के लोगों ने सड़क निर्माण के खिलाफ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में याचिका दायर की। याचिका में कहा गया है कि सड़क निर्माण के लिए चीड़ के पेड़ काटे जाएंगे।
शनिवार सुबह गांव के करीब चालीस लोग थाली और कनस्तर बजाते हुए कलेक्ट्रेट पहुंचे। इसी बीच पूर्व सैनिक शूरवीर सिंह नेगी कलक्ट्रेट परिसर में स्थित प्रेक्षागृह की छत पर चढ़े और रस्सी के सहारे झूलने लगे। कुछ ही देर में उषा देवी, बबली नेगी, रामी नेगी ने प्रेक्षागृह की छत पर बंधी रस्सी का फंदा गले में डाल लिया। किसी तरह पुलिस ने इन लोगों को रोका। ग्रामीणों की मांग थी कि जिलाधिकारी उनसे मिलें और उचित आश्वासन दें। ग्रामीणों के आवेश को देखते हुए पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया।
जिलाधिकारी आशीष चौहान ने बताया कि पोखरी गांव की सड़क का मामला एनजीटी में चल रहा है। इसलिए अभी इसमें कोई कार्यवाही संभव नहीं है। ग्रामीण शांतिपूर्वक आंदोलन कर सकते हैं। आंदोलन उग्र करेंगे तो कार्रवाई करनी पड़ेगी।
मैं बेकरार हूं आवाज में असर के लिए
'वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता, मैं बेकरार हूं आवाज में असर के लिए' प्रसिद्ध कवि दुष्यंत कुमार का यह शेर सीमांत जनपद उत्तरकाशी के पोखरी गांव के ग्रामीण और तंत्र पर सटीक बैठता है। दरअसल सड़क की मांग को लेकर पोखरी के ग्रामीणों का धरना कलक्ट्रेट में पिछले 250 दिनों से चल रहा है। स्थिति ऐसी है कि न तो ग्रामीण पीछे हटने को तैयार हैं और न प्रशासन इस समस्या का समाधान ढूंढ पर रहा है। यहां तक संबंधित विभाग व प्रशासन ग्रामीणों को संतुष्ट भी नहीं कर रहा है।दरअसल पोखरी गांव की सड़क का आंदोलन आज से नहीं बल्कि 15 साल से चल रहा है। 2013 में हुए आंदोलन के बाद जिला मुख्यालय के निकट डांग पोखरी गांव के लिए वर्ष 2004 में करीब एक किलोमीटर सड़क की स्वीकृति हुई थी। इसके लिए उस समय 11 लाख रुपये की धनराशि भी शासन ने स्वीकृत की थी। वर्ष 2006 में सड़क के लिए वन भूमि हस्तांतरण की स्वीकृति भी मिली। लेकिन, सड़क का निर्माण उसके बाद भी शुरू नहीं हुआ।
सड़क निर्माण की जद में आने वाले चीड़ के पेड़ों को काटने से बचाने के लिए पोखरी के निकट डांग गांव के ग्रामीणों ने आंदोलन किया। कुछ वर्ष तो इस पर विवाद होता रहा। वर्ष 2015 में केंद्र सरकार ने सड़क निर्माण न होने पर लोनिवि व प्रशासन से इसका जवाब मांगा। लेकिन, तत्कालीन अधिकारियों ने केंद्र सरकार के पत्र का जवाब देना भी मुनासिब नहीं समझा। जिस कारण केंद्र सरकार ने इस सड़क के लिए भूमि हस्तांतरण की प्रक्रिया को निरस्त कर दिया। फरवरी 2018 से पोखरी गांव के ग्रामीणों ने कलक्ट्रेट में धरना-प्रदर्शन शुरू किया। पेड़ों को काटने से बचाने को लेकर अप्रैल 2018 में डांग गांव के ग्रामीण एनजीटी में पहुंचे।एनजीटी से अभी तक इस मामले में कोई निर्णय नहीं आया है। लेकिन, प्रशासन आंदोलित पोखरी गांव के ग्रामीणों को सड़क निर्माण को लेकर संतोषजनक जवाब नहीं दे रहा है। धरना-प्रदर्शन कर रहे ग्रामीणों ने अपनी मांगों को मनवाने के लिए कई तरह के हथकंडे भी अपना लिए हैं। लेकिन, इसके बाद भी ग्रामीणों की समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं। पोखरी गांव निवासी पूर्व ब्लाक प्रमुख सुधा कैंतुरा कहती हैं कि जब तक सड़क नहीं बनी, तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा। सड़क के लिए जेल भी जाना होगा तो वे जाने को तैयार हैं। प्रशासन के पास वन अधिनियम का तो केवल एक बहाना है। पोखरी गांव के लिए सड़क निर्माण में जितने पेड़ कटेंगे, उनसे कई गुना पौध ग्रामीण लगा चुके हैं।
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