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आराकोट की त्रासदी: जमीन बची न घर, कैसे होगी जिंदगी बसर, पढ़ि‍ए पूरी खबर

त्रासदी के बाद आराकोट गांव के छह परिवारों के 28 सदस्यों को राजकीय इंटर कॉलेज आराकोट के एक हॉल में रातें गुजारनी पड़ रही हैं जबकि लकड़ी का चूल्हा जलाना पड़ रहा है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Fri, 20 Sep 2019 09:46 AM (IST)
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आराकोट की त्रासदी: जमीन बची न घर, कैसे होगी जिंदगी बसर, पढ़ि‍ए पूरी खबर
उत्‍तरकाशी, जेएनएन। आराकोट की त्रासदी में अपना सब-कुछ गंवाने वाले छह परिवार खानाबदोश की सी जिंदगी जीने को मजबूर है। आराकोट गांव के इन छह परिवारों के 28 सदस्यों को राजकीय इंटर कॉलेज आराकोट के एक हॉल में रातें गुजारनी पड़ रही हैं।  जबकि, भोजन के इंतजाम के लिए खुले आसमान के नीचे लकड़ी का चूल्हा जलाना पड़ रहा है। सबसे बुरा असर इन परिवारों के स्कूल जाने वाले नौनिहालों पर पड़ रहा है। बावजूद इसके प्रशासन की ओर से इन परिवारों के लिए अभी तक कोई वैकल्पिक अथवा स्थायी व्यवस्था नहीं की गई है।

एक माह पहले आराकोट त्रासदी में आराकोट गांव के सोहन लाल, मोहन लाल, होशियारू, जोबन दास, राधा देवी व रेगू देवी के मकान सहित सब-कुछ तबाह हो गया था। इस त्रासदी में सोहन लाल की बहू अंजना को अपना दस माह का बेटा भी खोना पड़ा था। प्रशासन ने इन परिवारों के 28 सदस्यों को राइंका आराकोट के राहत कैंप में शिफ्ट किया। तब से ये परिवार यहींएक हॉल में रह रहे हैं। पहले तो खाने की व्यवस्था राहत कैंप से चल रही थी। लेकिन, राहत कैंप बंद होने के बाद रसोई गैस आदि भी हटा दिए गए। सोहन लाल कहते हैं कि उनके पास राशन की व्यवस्था तो है, लेकिन खाना पकाने के लिए न तो पर्याप्त बर्तन हैं, न रसोई गैस ही। ऐसे में उन्हें हॉल के बाहर परिसर में बनाए गए लकड़ी के चूल्हे पर खाना पकाना पड़ रहा है।

परिवार की सदस्य रक्षा, जो बीएड कर रही हैं, कहती हैं कि सबसे अधिक परेशानी रात के समय और बारिश के दौरान हो रही है। बारिश में तो चूल्हा जल ही नहीं पाता। इसके अलावा एक ही हॉल होने के कारण पढ़ाई भी नहीं हो पा रही। कहती हैं, खानाबदोश की तरह कब तक ऐसे ही जिंदगी गुजारनी पड़ेगी, कुछ नहीं मालूम। आपदा के दौरान परिवार के जो सदस्य घायल हुए थे, वे भी अभी मजदूरी करने की स्थिति में नहीं हैं। 

डॉ. आशीष चौहान (जिलाधिकारी, उत्तरकाशी) का कहना है कि आराकोट के छह परिवारों को स्थायी व्यवस्था देने के लिए पुनर्वास नियम के तहत कार्रवाई की जा रही है। इसके लिए एसडीएम को निर्देश दिए गए हैं कि प्रभावित परिवारों को भवन निर्माण आदि के लिए पट्टे की भूमि उपलब्ध कराई जाए। हालांकि, अभी उनके पास एसडीएम स्तर से प्रस्ताव नहीं आया है।

 

आराकोट क्षेत्र के दर्जनों गांव पानी को तरसे

आराकोट त्रासदी के बाद क्षेत्र के 15 से अधिक गांवों में लोग पीने के पानी को लेकर तरस रहे हैं। एक माह पहले आए जलजले ने यहां प्राकृतिक जल स्रोतों को खत्म कर दिया है। वैकल्पिक व्यवस्था के तहत जल संस्थान ने इन गांवों में पेयजल के लिए जिन बरसाती स्रोतों से इंतजाम किए थे, वे स्रोत सूखने लगे हैं। आपदा से सबसे अधिक प्रभावित माकुड़ी गांव में पिछले एक सप्ताह से पानी का संकट बन गया है। अन्य गांव भी पेयजल संकट से जूझ रहे हैं।

बीती 18 अगस्त की सुबह आराकोट क्षेत्र में भारी अतिवृष्टि होने से जलजला आया था। जिससे आराकोट, टिकोची, दुचाणु, किराणू, सरतली, माकुड़ी, गोकुल, कलीच, नगवाड़ा, बरनाली, डगोली, बलावट, चिवां, मोंडा, मोल्डी, खकवाड़ी, सनेल, मोल्डी, झोंटाड़ी आदि गांवों में भारी नुकसान हुआ। इन गांवों में पेयजल लाइन बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हुई। राहत रेस्क्यू के दौरान प्रशासन ने प्लास्टिक के पाइपों के जरिए बरसाती स्रोतों से गांवों में पानी की आपूर्ति को सुचारू किया लेकिन, एक माह बाद अब बरसाती स्रोत सूखने लगे हैं। माकुड़ी गांव के एमएस रावत कहते हैं कि पिछले एक सप्ताह से उनके गांव में पानी का घोर संकट बना हुआ है। गांव के पास जो प्राकृतिक स्रोत थे। वे स्रोत आपदा के दौरान खत्म हो चुके हैं। जो स्रोत बचे हैं वे दूर कहीं जंगलों में हैं। उन्होंने बताया कि जल संस्थान को स्थाई व्यवस्था से पहले वैकल्पिक व्यवस्था करनी चाहिए। यदि पानी का इंतजाम नहीं होता है तो ग्रामीण गांव छोडऩे के लिए विवश हो जाएंगे। माकुडी जैसी स्थिति टिकोची, बरनाली, चिवां, नगवाड़ा समेत दर्जनों गांवों में भी बननी शुरू हो गई हैं।

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डॉ. आशीष चौहान (जिलाधिकारी, उत्तरकाशी) का कहना है कि जल संस्थान को स्थाई व्यवस्था के लिए बजट आवंटित किया गया है। जल्द ही योजनाओं का प्रस्ताव बनाकर काम शुरू कराया जाएगा। जिन गांवों में पानी का अधिक संकट है, उन गांवों में वैकल्पिक व्यवस्था कराने के निर्देश जल संस्थान को निर्देश दिए गए हैं। 

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