उच्च हिमालय में हिम तेंदुओं पर रखी जाएगी नजर, लगाए गए कैमरे
जल्द ही हिमालयी क्षेत्र में हिम तेंदुओं की असल तादाद दुनिया के सामने आ जाएगी। इसके लिए गोविंद वन्य जीव विहार में कैमरे लगा दिए गए हैं।
By BhanuEdited By: Updated: Wed, 29 May 2019 08:16 PM (IST)
उत्तरकाशी, राधेकृष्ण उनियाल। जल्द ही हिमालयी क्षेत्र में हिम तेंदुओं की असल तादाद दुनिया के सामने आ जाएगी। सिक्योर हिमालय परियोजना के तहत उच्च हिमालय में स्थित गोविंद वन्य जीव विहार में कैमरे लगा दिए गए हैं।
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पहली बार यह प्रयोग किया जा रहा है। प्रोजेक्ट के तहत गंगोत्री नेशनल पार्क से लेकर कुमाऊं की अस्कोट सेंचुरी तक के क्षेत्र में हिम तेंदुओं के संरक्षण एवं वासस्थल विकास पर खास फोकस किया जा रहा है।गोविंद वन्य जीव विहार के उप निदेशक धीरजधर बंछुवाण ने बताया कि पार्क में ग्लेशियर वाले क्षेत्र, हिमाचल-उत्तराखंड की सीमा से सटे चाईंशिल, केदारकांठा, बराडसर, सरूताल, देवक्यारा क्षेत्र में कस्तूरी मृग, जंगली भेड़ और हिम तेंदुओं की मौजूदगी के प्रमाण हैं।
इनकी संख्या को लेकर अभी तक पुष्ट जानकारी नहीं है। उन्होंने बताया कि सिक्योर हिमालय प्रोजेक्ट के तहत पार्क की विभिन्न रेंज में 10 कैमरा ट्रैप लगा दिए गए हैं। उन्होंने बताया कि दो सप्ताह से कैमरा ट्रैप की निगरानी की जा रही है।
गौरतलब है कि सिक्योर हिमालय प्रोजेक्ट संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के सहयोग से देश के चार हिमालयी राज्यों उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और सिक्किम में चलाया जा रहा है। उत्तराखंड में इस मुहिम के लिए राज्य सरकार ने यूएनडीपी से 3.16 करोड़ की धनराशि मांगी है। परियोजना के तहत उच्च हिमालयी क्षेत्र में पड़ने वाले 60 गांवों में आजीविका विकास के कार्यक्रम भी संचालित किए जाएंगे।
प्रदेश में परियोजना के लिए गंगोत्री नेशनल पार्क व गोविंद वन्य जीव विहार और अस्कोट वाइल्डलाइफ सेंचुरी के दारमा-व्यास घाटी क्षेत्र को शामिल किया गया है। जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध इन क्षेत्रों में हिम तेंदुओं का भी बसेरा है।
उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक वन्यजीव आरके मिश्रा के अनुसार हिम तेंदुओं की वास्तविक संख्या सामने आने से इनके संरक्षण के लिए योजना बनाई जाएगी। उन्होंने बताया कि इन इलाकों में कैमरा ट्रैप की संख्या बढ़ाई जाएगी, जो सुरक्षा के साथ ही इनकी संख्या का पता लगाने में कारगर होंगे।यह भी पढ़ें: हिमालय में फ्लाईकैचर की नई प्रजाति की खोज, जानिए इसके बारे में
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