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बर्फ की चादर ओढ़कर भी खामोश है दयारा, परवान नहीं चढ़ पाई हिमक्रीड़ा की योजना

उत्तरकाशी का दयारा बुग्याल बर्फ की चादर ओढ़े हुए है। बावजूद इसके दयारा में हिमक्रीड़ा की योजनाएं आज तक परवान नहीं चढ़ पाईं। यही वजह है कि पर्यटक यहां स्कीइंग का मजा नहीं ले पा रहे।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Mon, 11 Feb 2019 03:02 PM (IST)
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बर्फ की चादर ओढ़कर भी खामोश है दयारा, परवान नहीं चढ़ पाई हिमक्रीड़ा की योजना
उत्‍तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल। हिमक्रीड़ा (बर्फ पर खेले जाने वाले खेल) के लिए आदर्श स्थितियों वाला उत्तरकाशी का दयारा बुग्याल बर्फ की चादर ओढ़े इस बार भी खामोश है। दयारा बुग्याल में इन दिनों पांच से सात फीट मोटी बर्फ की चादर बिछी हुई है। स्कीइंग और पर्वतारोहण के प्रशिक्षक ऑनरेरी कैप्टन सतल सिंह पंवार कहते हैं कि दयारा बुग्याल जैसे ढलान न तो गुलमर्ग में हैं और न औली में ही। दयारा में शून्य से लेकर 60 डिग्री तक के लंबे व खूबसूरत ढलान हैं। इन पर हर तरह की स्कीइंग प्रतियोगिताएं आयोजित की जा सकती हैं। बावजूद इसके दयारा में हिमक्रीड़ा की योजनाएं आज तक परवान नहीं चढ़ पाईं। यही वजह है कि पर्यटक यहां स्कीइंग का मजा नहीं ले पा रहे। 

समुद्रतल से 3500 मीटर की ऊंचाई पर 28 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले दयारा बुग्याल में शीतकालीन खेलों के लिए आदर्श स्थितियां मौजूद हैं। दयारा को विंटर गेम्स डेस्टिनेशन बनाने के लिए पर्यटन विभाग ने इसके आधार शिविर के गांवों को पर्यटन सर्किट योजना से जोडऩे की तैयारी तो की, लेकिन उसे आज तक अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। जबकि, दयारा बुग्याल में 15 मार्च तक तक बर्फबारी जारी रहती है। इससे यहां बर्फ की मोटी परत जम जाती है, जो अप्रैल के बाद ही पिघलती है। ऐसे में यहां फरवरी आखिर से लेकर अप्रैल तक शीतकालीन खेलों के आयोजन की भरपूर संभावनाएं रहती हैं।

 

धरातल पर नहीं उतरी रोपवे की योजना

2001 में दयारा बुग्याल को रोपवे से जोड़ने की योजना बनी थी, जो आज तक धरातल पर नहीं उतर पाई। इसके अलावा दयारा में हिमक्रीड़ा को लेकर भी कोई व्यवस्था नहीं की गई है। दयारा जाने वालों के लिए आधार शिविर गांव बार्सू व रैथल में हिमक्रीड़ा का पर्याप्त सामान उपलब्ध कराया जाना था। लेकिन, इन सुविधाओं को देने वाला पर्यटन विभाग अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ रहा है।

रोमांचभरा ट्रैकिंग रूट है दयारा बुग्याल

दयारा जाने के लिए दो रास्ते हैं। पहला बार्सू गांव से होकर जाता है, जबकि दूसरा रैथल गांव से। दोनों ही ट्रैकिंग रूट बेहद रोमांचकारी हैं। रैथल या बार्सू पहुंचने के लिए जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 45 किमी का सफर तय करना पड़ता है। दोनों गांवों तक सड़क सुविधा उपलब्ध है। बार्सू से दयारा जाने के लिए सात किमी की चढ़ाई है, जबकि बार्सू से यह दूरी आठ किमी है। 

हिमालय की चोटियों और गंगा घाटी का दीदार

दयारा से गिडारा बुग्याल, बंदरपूंछ, काला नाग पर्वत, द्रोपदी का डांडा प्रथम व द्वितीय, श्रीकांठ पर्वत सहित कई प्रमुख चोटियां साफ नजर आती हैं। साथ ही गंगा घाटी का मनोहारी दृश्य भी देख सकते हैं।

बोले अधिकारी

प्रकाश खत्री (जिला पर्यटन अधिकारी, उत्तरकाशी) का कहना है कि दयारा बुग्याल के लिए अभी हिमक्रीड़ा से संबंधित कोई योजना नहीं है। हालांकि, इस शीतकाल केदारकांठा क्षेत्र में हिमक्रीड़ा की तैयारी की जा रही है। दयारा बुग्याल के बेस कैंप गांवों में हिमक्रीड़ा से संबंधित सुविधाएं जुटाने की जिम्मेदारी किसकी है, यह भी देखा जा रहा है।

बोले विधायक

गोपाल रावत (विधायक, गंगोत्री) का कहना है कि दयारा बुग्याल में रोपवे तैयार करने के लिए कोई आगे नहीं आया है। इसलिए अब दयारा का रूट तैयार करने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। दयारा बुग्याल में हिमक्रीड़ा आदि मांगों को लेकर मैं स्वयं पर्यटन मंत्री से मुलाकात करूंगा।

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