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स्वतंत्रता के सारथी: दवा कंपनी में नौकरी छोड़ी, गांव में जगाई रोजगार और विकास की उम्मीद

उत्तरकाशी के उम्मेद सिंह कलूड़ा ने एक मिसाल कायम की है। वे थोड़ी-बहुत नई तकनीकी सीख और कुछ पारंपरिक तरीके अपनाकर खुद भी कमा रहे हैं और 42 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं।

By Raksha PanthariEdited By: Updated: Fri, 09 Aug 2019 08:56 PM (IST)
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स्वतंत्रता के सारथी: दवा कंपनी में नौकरी छोड़ी, गांव में जगाई रोजगार और विकास की उम्मीद
उत्तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल। रोजगार के लिए पहाड़ से पलायन की कहानी किसी से छिपी नहीं है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो गांव में ही स्वरोजगार और उन्नति की राह बनाकर मिसाल कायम कर रहे हैं। ऐसी ही मिसाल कायम की है उत्तरकाशी जिले के सिंगोठ गांव निवासी 50-वर्षीय उम्मेद सिंह कलूड़ा ने। गांव में ही थोड़ी-बहुत नई तकनीकी सीख और कुछ पारंपरिक तरीके अपनाकर वह खुद भी कमा रहे हैं और गांव के 42 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। किसी को मछली पालन में लगाया हुआ है तो किसी को बेमौसमी सब्जी उत्पादन में। उन्होंने गांव की गरीब विधवा महिलाओं से लेकर घोड़ा-खच्चर वालों को भी रोजगार से जोड़ा है। 

सिंगोठ जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 20 किमी की दूरी पर सड़क से जुड़ा गांव है। गांव को जोड़ने वाली सड़क नाकुरी-सिंगोठ की स्थिति भले ही खस्ताहाल हो, लेकिन सुरम्य घाटी में बसा सिंगोठ गांव समृद्धि की चहल-पहल से गुलजार है। यहीं के एक अधेड़ उम्मेद सिंह कलूड़ा ने गांव में ही रोजगार और विकास की उम्मीदों को पंख लगाए हैं। वर्ष 2010 में चंडीगढ़ स्थित एक कंपनी की अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर वे गांव लौटे और यहां स्वरोजगार की नई इबादत लिख डाली। बकौल उम्मेद सिंह, 'मैंने वर्ष 1984 में दसवीं पास की और नौकरी की तलाश में चंडीगढ़ चला गया। कुछ सालों तक इधर-उधर भटकने के बाद एक प्रसिद्ध दवा कंपनी में नौकरी मिली। मैं जब-जब छुट्टी पर घर आता, गांव के लोग अपने बेरोजगार बेटों को साथ में चंडीगढ़ ले जाकर नौकरी लगवाने का आग्रह करते। शुरुआत में मैंने काफी युवाओं को चंढीगढ़ ले जाकर होटल वऔर कंपनियों में नौकरी दिलवाई। लेकिन, फिर मेरे मन में विचार आया कि आखिर ऐसा कब तक चलता रहेगा। कब तक रोजी के लिए पहाड़ के युवा मैदानों की ओर भागते रहेंगे। आखिरकार वर्ष 2010 में नौकरी छोड़कर मैं गांव लौट आया।'

इसके बाद उम्मेद सिंह ने नाकुरी के पास एक होटल खोला और वहां गांव के युवाओं को काम देना शुरू किया। साथ ही गांव में भी भेड़-बकरी पालन के साथ बागवानी शुरू की। इसके अलावा मछली पालन करने के लिए मत्स्य विभाग से प्रशिक्षण भी लिया। उम्मेद सिंह के अनुसार इसी बीच वर्ष 2012-13 में जब असी गंगा में बाढ़ आई तो ट्राउड मछली के बारे में जानकारी मिली। वर्ष 2014 में गांव के गदेरे के पानी से ही ट्राउड पालन के लिए तीन तालाब बनाए। वर्ष 2016 से ट्राउड का उत्पादन मिलने लगा। अब हर साल सात से आठ क्विंटल ट्राउड का उत्पादन हो जा रहा है। जबकि, कॉमन क्रॉप, ग्रास क्रॉप, सिल्वर क्रॉप, चाइनीज क्रॉप प्रजाति की मछलियों के लिए आठ तालाब बनाए हैं। 

इन मछलियों का हर साल नौ से दस क्विंटल उत्पादन हो रहा है। बताते हैं कि मछली के तालाब तैयार करने में मत्स्य विभाग ने भी उनका सहयोग किया।

अपने बेटों के साथ ग्रामीणों को भी दिया रोजगार 

उम्मेद सिंह के दो बेटे हैं। बड़े बेटे नीरज कलूड़ा ने पोस्ट ग्रेजुएट तक पढ़ाई की है और मछली पालन का कार्य देखते हैं। जबकि, दूसरे बेटे विनय सिंह कलूड़ा ने सिविल इंजीनियरिंग की है और होटल का व्यवसाय देख रहे हैं। उम्मेद सिंह ने गांव के 42 लोगों को भी रोजगार दिया है। जो मछली व पशु पालन, फल-सब्जी उत्पादन और होटल व्यवसाय से जुड़े हैं। इसके अलावा गाड़ी और खच्चर वालों को भी रोजगार मिला हुआ है। 

फल और सब्जी उत्पादन 

उम्मेद सिंह ने गांव में करीब एक हेक्टेयर क्षेत्र में आडू, अखरोट, खुबानी, नींबू और नाशपाती का बागीचा लगाया हुआ है। साथ ही आलू, अरबी, अदरक, हल्दी, मशरूम आदि सब्जियों का भी अच्छा-खासा उत्पादन करते हैं। बेमौसमी सब्जी उत्पादन के लिए उन्होंने पॉली हाउस बनाए हुए हैं। इसके अलावा नाकुरी के पास वे होटल भी संचालित कर रहे हैं। 

पशु पालन का भी है मॉडल 

उम्मेद सिंह ने सिंगोठ गांव में पशुपालन का भी मॉडल तैयार किया है। उनके पास 300 भेड़-बकरी, दो गाय, बैल व दो भैंस भी हैं। दूध-घी बेचने के अलावा वे इन पशुओं के गोबर से जैविक खाद भी तैयार कर रहे हैं। 

ट्राउड की मांग है अधिक 

उम्मेद सिंह बताते हैं कि ट्राउड मछली पालन के लिए साफ रनिंग वाटर चाहिए। पानी का तापमान भी कम होना चाहिए। साल में दो बार ट्राउड का उत्पादन होता है। इसकी देहरादून, मसूरी और चंडीगढ़ से बहुत अधिक मांग है और प्रति किलो 800 रुपये कीमत भी मिल जाती है।

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