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2023 तक बनेगी उत्तराखंड की सबसे लंबी डबल लेन सुरंग, ये होगी देश की पहली अत्याधुनिक टनल

सिलक्यारा और जंगल चट्टी के बीच उत्तराखंड की सबसे लंबी डबल लेन सड़क सुरंग का निर्माण युद्धस्तर पर चल रहा है। 4.5 किमी लंबी इस अत्याधुनिक सुरंग के निर्माण से गंगोत्री और यमुनोत्री के बीच की दूरी 31.5 किमी कम हो जाएगी।

By Raksha PanthriEdited By: Updated: Wed, 18 Aug 2021 04:46 PM (IST)
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2023 तक बनेगी उत्तराखंड की सबसे लंबी डबल लेन सुरंग।
शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी। यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर सिलक्यारा और जंगल चट्टी के बीच उत्तराखंड की सबसे लंबी डबल लेन सड़क सुरंग का निर्माण युद्धस्तर पर चल रहा है। 4.5 किमी लंबी इस अत्याधुनिक सुरंग के निर्माण से गंगोत्री और यमुनोत्री के बीच की दूरी 31.5 किमी कम हो जाएगी। राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (एनएचआइडीसीएल) के जनरल मैनेजर कर्नल दीपक पाटिल कहते हैं कि न्यू आस्टियन टनलिंग मेथड (एनएटीएम) से बनाई जा रही यह डबल लेन सुरंग देश की पहली अत्याधुनिक सुरंग होगी। इसका निर्माण जुलाई 2023 तक पूरा हो जाएगा।

चारधाम यात्रा के मुख्य पड़ाव धरासू से यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग शुरू होता हैं। धरासू से यमुनोत्री के अंतिम सड़क पड़ाव जानकीचट्टी की दूरी 106 किमी है। सर्दियों में बर्फबारी के कारण समुद्रतल से सात हजार फीट की ऊंचाई वाले राड़ी टाप क्षेत्र में यमुनोत्री राजमार्ग बाधित हो जाता है, जिससे यमुना घाटी के तीन तहसील मुख्यालयों बड़कोट, पुरोला और मोरी का जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से संपर्क कट जाता है। चारधाम यात्रा को सुगम बनाने और राड़ी टाप में बर्फबारी की समस्या से निजात पाने के लिए यहां आलवेदर रोड परियोजना के तहत डबल लेन सुरंग बनाने की योजना बनी।

वर्ष 2017 में इस डबल लेन सुरंग का निर्माण एनएचआइडीसीएल के देखरेख में नवयुगा कंपनी ने शुरू किया। सुरंग का 50 फीसद निर्माण पूरा हो चुका है और निर्माण कार्य की देखरेख रोडिक कंसल्टेंट्स कंपनी कर रही है। कंपनी के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर राजकुमार कहते हैं, 'मुझे फक्र है कि मैं इस ड्रीम प्रोजेक्ट का हिस्सा हूं। अभी तक 2.5 किमी सुरंग का निर्माण हो चुका है। इस सुरंग के निर्माण से चारधाम यात्रा सुलभ होने के साथ उत्तरकाशी की गंगा व यमुना घाटी में सामाजिक-आर्थिक विकास की संभावनाएं बढ़ेंगी।'

आगजनी पर सुरंग के अंदर छूटेगी पानी की फुहार

एनएचआइडीसीएल के जनरल मैनेजर कर्नल दीपक पाटिल कहते हैं कि इस सुरंग में आने-जाने के लिए अलग-अलग लेन होगी। इससे दुर्घटना का खतरा नहीं होगा। अगर सुरंग के अंदर प्रदूषण अधिक बढ़ जाए तो धुएं को बाहर फेंकने के लिए पंखे स्वत: चलने लगेंगे। साथ ही संवेदक यंत्रों के जरिये सूचना कंट्रोल रूप तक पहुंचेगी। जबकि, आगजनी की स्थिति में कंप्यूटर और संवेदक सिस्टम से स्वत: पानी की फुहार छूटने लगेगी और पंखे भी हवा देना बंद कर देंगे। इसका संदेश कंट्रोल रूम के साथ अन्य वाहन चालकों को भी एफएम के जरिये मिलेगा। सिर्फ सुरंग में प्रवेश करते समय वाहन चालकों को अपने वाहन का स्पीकर एफएम मोड में आन रखना होगा। सुरंग के अंदर आधुनिक ढंग से लाइटिंग की जाएगी। सुरंग में अन्य कई अत्याधुनिक सुविधाएं भी होंगी।

सुरंग निर्माण का न्यू आस्टियन टनलिंग मेथड

एनएचआइडीसीएल के प्रोजेक्ट मैनेजर ले. कर्नल दीपक पाटिल के अनुसार एनएटीएम वर्तमान में सुरंग बनाने की विश्व प्रचलित पद्धति है। इसमें चट्टान तोड़ने के लिए डिलिंग और ब्लास्टिंग दोनों की जाती है। लेकिन, खोदाई के दौरान चट्टानों का अध्ययन और निगरानी कंप्यूटराइज्ड मशीनों के जरिए होती है। इससे इंजीनियरों को सुरंग के अंदर आने वाली अगली कोमल व कठोर चट्टान की स्थिति मालूम पड़ जाती है और वो सुरंग निर्माण के लिए प्राथमिक सपोर्ट की पहले ही तैयारी कर लेते हैं। इस पद्धति में चौबीसों घंटे काम चलता है और सुरंग निर्माण में कम समय लगने के साथ लागत भी कम आती है। रोहतांग में अटल सुरंग भी इसी पद्धति से बनी हुई है।

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