यहां लाकडाउन और कोविड कर्फ्यू में आमजन का मंच बना 'जनमंच', कुछ इस तरह की मदद
2020 में प्रभावी लॉकडाउन और 2021 में कोविड कर्फ्यू के दौरान सामाजिक सरोकारों की असल तस्वीरें सामने आई है जो निश्चित तौर पर सुकून और सीख देने वाली है। इसमें उत्तरकाशी आपदा प्रबंधन जनमंच का अभिनव प्रयोग रहा।
By Raksha PanthriEdited By: Updated: Tue, 31 Aug 2021 11:43 AM (IST)
शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी। वैश्विक महामारी कोरोना की चेन को तोड़ने के लिए 2020 में प्रभावी लॉकडाउन और 2021 में कोविड कर्फ्यू के दौरान सामाजिक सरोकारों की असल तस्वीरें सामने आई है, जो निश्चित तौर पर सुकून और सीख देने वाली है। इसमें उत्तरकाशी आपदा प्रबंधन जनमंच का अभिनव प्रयोग रहा है, जिसमें किसानों के उत्पादों को उपभोक्ताओं तक पहुंचाने से लेकर आमजन की मदद को जनमंच के 80 से अधिक स्वयं सेवक 24 घंटे तैयार रहे। कोरोना संक्रमण पर नियंत्रण और आमजन की परेशानी दूर करने को लेकर जनमंच की जिला प्रशासन के साथ 17 बार बैठकें भी हुई हैं, जो जनमंच की सक्रियता को दर्शाती है।
उत्तरकाशी आपदा प्रबंधन जनमंच ने उत्तराखंड राज्य में सबसे पहले गांव-गांव में स्वैच्छिक कोविड निगरानी समिति का गठन किया, जो आमजन के साथ प्रशासन के लिए भी मददगार बनी। इसी से प्रेरित होकर अन्य जनपदों में भी प्रशासन ने कोविड निगरानी समितियां बनाई गई। उत्तरकाशी आपदा प्रबंधन जनमंच के अध्यक्ष द्वारिका सेमवाल कहते हैं कि स्वैच्छिक कोविड निगरानी समितियों के सदस्यों ने कोविड कर्फ्यू के दौरान आमजन परेशानियों को जाना। बाजार और दवाई से संबंधित परेशानियों को दूर किया।
द्वारिका सेमवाल कहते हैं कि ग्रामीणों को कोविड जांच के लिए प्रेरित किया। बाहर से आने वाले व्यक्तियों को गांव में आइसोलेट किया। गांवों में कुछ ऐसे भी व्यक्ति थे, जिनमें कोविड के लक्षण होने के बाद भी जांच कराने से बच रहे थे। उनकी सूचना प्रशासन को दी, जिसके बाद जांच टीमें ऐसे व्यक्तियों के घर तक पहुंची। जनमंच के सदस्यों ने ग्रामीणों को वैक्सीनेशन लगाने के लिए प्रेरित किया है। गांवों में जो वैक्सीन को लेकर जो भ्रांतियां फैली थी। उसे भी दूर किया। इन्हीं सभी कार्यों के कारण उत्तराखंड शासन ने इस वर्ष जनमंच के संस्थापक संस्था हिमालय पर्यावरण जड़ी बुटी एग्रो संस्थान जाड़ी को नोडल नामित किया गया।
2010 में हुआ था गठनजनमंच का गठन वर्ष 2010 में जाड़ी संस्था के अध्यक्ष द्वारिका सेमवाल ने किया, जिसका उद्देश्य प्रभावितों की मदद और उनकी समस्याओं का त्वरित समाधान हो सके। इस मंच में उत्तकराशी के कई सामाजिक संगठनों के कार्यकर्त्ता जुड़े हैं। 2010, 2012, 2013 और आराकोट की आपदा में भी सक्रिय रूप में आपदा प्रबंधन जनमंच फ्रंट लाइन में दिखा। सबसे खास बात ये भी है कि इस मंच का सिस्टम के साथ बेहतर समन्वय है। जिससे समस्या का समाधान और त्वरित मदद भी पहुंच जाती है।
पुल की तरह किया कामजनमंच के संरक्षक गोपाल थपलियाल व कमलेश गुरुरानी कहते हैं कि लॉकडाउन और कोविड कर्फ्यू के दौरान गांव के किसानों के उत्पादों को उपभोक्ताओं तक पहुंचाने में जनमंच एक लिफ्ट की तरह काम किया। इस बार साढ़े तीन लाख रुपये से अधिक की सब्जी और आडू पुलम की बिक्री करवायी। गांव तक बीज खाद पहुंचाया गया। जनमंच ने जिला प्रशासन और आमजन के बीच एक पुल का काम किया है। जनमंच का एक वाट्सएप ग्रुप है । जिसमें प्रत्येक दिन के कामों की अपडेट होती है। जहां पर किसी भी प्रकार के सहयोग, राहत आदि की आवश्यकता होती है एक बार जब वो ग्रुप में आती है उसका समाधान उसी वक्त हो जाता है।
जारी करवाए हेल्प लाइन नंबरजनमंच के सचिव संदीप उनियाल कहते हैं कि कोविड की दूसरी लहर के दौरान जब मरीज अस्पताल में भर्ती थे तो ऐसे स्थिति में स्वजन अपने मरीज के करीब भी नहीं जा पा रहे थे। मरीज का हालचाल किससे जानना है इसके लिए स्वजन खासे परेशान थे। उत्तरकाशी आपदा प्रबंधन जनमंच ने प्रशासन के सामने इस समस्या को रखा। नतीजन उत्तरकाशी अस्पताल प्रशासन ने हेल्प लाइन नंबर जारी किए। जनमंच के उपाध्यक्ष अजय पंवार कहते हैं कि इस बार कोविड कर्फ्यू के दौरान 12 सौ परिवारों को राशन, तीन सौ परिवारों को ऑक्सीमीटर व जरूरी दवा उपलब्ध कराई,1500 परिवारों को हाइजीन किट दी गई। आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के खाते में कासा संस्था के सहयोग से तीन-तीन हजार रुपये डाले गए।
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