सिर्फ एक कॉल पर तैयार हुए रैट माइनर्स, ना मांगे पैसे न देखा जोखिम; ऑपरेशन को अंजाम तक पहुंचाने वाले नायकों की कहानी
Uttarkashi Tunnel Collapse उत्तरकाशी टनल हादसे में फंसे 41 मजदूरों ने जब पहली बार किसी बाहरी को देखा तो खुशी से नाचने लगे। ये बाहरी थे वो रैट माइनर्स जो बस एक फोन कॉल पर दिल्ली से सिलक्यारा पहुंच चुके थे। 12 लोगों की टीम उत्तरकाशी पहुंची और उन्होंने 16 दिन से चल रहे रेस्क्यू ऑपरेशन को अंजाम तक पहुंचाया।
By Swati SinghEdited By: Swati SinghUpdated: Thu, 30 Nov 2023 01:47 PM (IST)
सुमन सेमवाल, उत्तरकाशी। हौसला मजदूर का था, टूटना मंजूर न था। मशीनें टूटती रहीं, पर रुकना मंजूर न था। कुछ इसी तरह सुरंग में पसरे भारी मलबे और लोहे के अवरोधों को चीरकर जब रैट माइनर्स श्रमिकों तक पहुंचे तो उनकी आस को जैसे सांस मिल गई। क्योंकि, 17 दिनों से जिंदगी की जंग लड़ रहे श्रमिकों को इस बात का एहसास होने लगा था कि उन्हें बाहर निकालने के लिए किस तरह एक के बाद एक चुनौती खड़ी हो रही हैं, लेकिन उम्मीद और नाउम्मीदी की जंग के बीच दाखिल हुए रैट माइनर्स।
जब एस्केप टनल से रैट माइनर्स दाखिल हुए तो उहें देख श्रमिकों के पहले बोल में ही उनकी पूरी भावना बाहर निकल आई। श्रमिकों ने कहा कि 'आपको हम अपनी जान दे दें या भगवान बना दें'। सिलक्यारा की जंग को अंजाम तक पहुंचाने वाले रैट माइनर्स की भूमिका का अंदाजा भी भीतर फंसे श्रमिकों को नहीं था, लेकिन उनकी पहली झलक ही उन्हें यह बताने के लिए काफी थी कि ये किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं।