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Uttarkashi Tunnel Collapse: गलत निकली थी नवयुग की जीपीआर रिपोर्ट, कंपनी के कर्मचारियों को जान-जोखिम में डालनी पड़ी

ट्रेंचलेस इंजीनियरिंग के मैकेनिकल इंजीनियर शंभू मिश्रा कहते हैं कि 23 नवंबर को जीपीआर के जरिये मलबे को स्कैन किया गया। फिर 24 नवंबर को नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी ने उन्हें जीपीआर की रिपोर्ट दी जिसमें बताया गया था कि सुरंग में 5.4 मीटर तक कोई भी मैटल व सरिया नहीं है। लेकिन ड्रिल करने के दौरान ही कटर लोहे के जाल में फंस गए।

By Jagran NewsEdited By: Jeet KumarUpdated: Fri, 01 Dec 2023 06:56 AM (IST)
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गलत निकली थी नवयुग की जीपीआर रिपोर्ट
 जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी। चारधाम आलवेदर रोड परियोजना की सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों को बचाने के लिए चलाए गए बचाव अभियान में अमेरिकन औगर मशीन की महत्वपूर्ण भूमिका रही। 48 मीटर तक ड्रिलिंग करने के साथ औगर के जरिये 60 मीटर तक पाइप भी सुरंग में पहुंचाया गया।

अभियान पूरा होने के बाद औगर मशीन की संचालक कंपनी ट्रेंचलेस इंजीनियरिंग सर्विस के मैकेनिकल इंजीनियर ने ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) पर सवाल उठाए हैं। अभियान के दौरान जब यह रिपोर्ट आई थी, तब बचाव दल में उत्साह का संचार हुआ था और रिपोर्ट के बारे में अधिकारियों ने मीडिया को भी जानकारी दी थी।

कंपनी के कर्मचारियों को जान-जोखिम में डालनी पड़ी

ट्रेंचलेस इंजीनियरिंग के मैकेनिकल इंजीनियर शंभू मिश्रा कहते हैं कि 23 नवंबर को जीपीआर के जरिये मलबे को स्कैन किया गया। फिर 24 नवंबर को नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी ने उन्हें जीपीआर की रिपोर्ट दी, जिसमें बताया गया था कि सुरंग में 5.4 मीटर तक कोई भी मैटल व सरिया नहीं है।

इसी रिपोर्ट पर विश्वास करते हुए आपरेटर ने अमेरिकन औगर मशीन को संचालित किया, लेकिन करीब एक मीटर ड्रिल करने के दौरान ही मशीन का हेड-बिट और उसके कटर लोहे के जाल में फंस गए। इसके बाद ड्रिल के कटर, हेड व बिट को काटकर बाहर निकालना पड़ा। सिर्फ इसी से एक करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है। ड्रिल के कटर, हेड व बिट को काटकर निकालने के दौरान कंपनी के कर्मचारियों को जान-जोखिम में डालनी पड़ी।

मिश्रा कहते हैं कि सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने अमेरिकन औगर मशीन के लिए ट्रेंचलेस इंजीनियरिंग सर्विस कंपनी से संपर्क किया था। इस मशीन के पार्ट्स वायु सेना के तीन हरक्यूलिस विमान के जरिये चिन्यालीसौड़ पहुंचाए गए थे।

साथ ही मशीन को संचालित करने के लिए कर्मचारियों का 30 सदस्यीय दल भी दल आया था। अब सुरंग में स्थापित इस मशीन को निकालने का कार्य किया जा रहा है। शुक्रवार तक इसे निकाल लिया जाएगा। इसके बाद ट्राला के जरिये मशीन दिल्ली पहुंचाई जाएगी।

सुरंग में वर्टिकल ड्रिलिंग के छेद किया बंद नहीं होगा

सीपेज सुरंग में वर्टिकल ड्रिलिंग के दौरान किए गए 44 मीटर लंबे और 1.2 मीटर चौड़े छेद को सतलुज जलविद्युत निगम लिमिटेड (एसजेवीएनएल) ने बंद कर दिया है। कंपनी के महाप्रबंधक जसवंत कपूर के मुताबिक, बैकपुल तकनीक से छेद को बंद कर दिया गया है। इसके तहत छेद में पहले रेत, फिर मिट्टी और बाद में कंक्रीट की परत बिछाई गई। अब यह स्थल पूर्व की भांति दुरुस्त हो गया है।

300 से 305 के बीच वर्टिकल ड्रिलिंग शुरू की थी

विदित हो कि सुरंग में फंसे श्रमवीरों को बाहर निकालने की राह जब मुश्किल हो गई तो विभिन्न विकल्पों पर काम शुरू हुआ। इसमें एक विकल्प वर्टिकल (लंबवत) ड्रिलिंग कर निकास सुरंग बनाने का था। इसके लिए एसजेवीएनएल ने 26 नवंबर को सुरंग के ऊपर चैनेज 300 से 305 के बीच वर्टिकल ड्रिलिंग शुरू की थी।

28 नवंबर की सुबह जब तय हो गया कि रैट माइनर्स की टीम निकास सुरंग की राह खोल देगी तो वर्टिकल ड्रिलिंग को बंद करा दिया गया। मंगलवार सुबह साढ़े नौ बजे तक 86 मीटर में से 44 मीटर ड्रिलिंग की जा चुकी थी। वर्टिकल ड्रिलिंग के लिए भारी-भरकम मशीनरी को पहुंचाने के लिए बीआरओ ने 1200 मीटर से अधिक लंबी सड़क तैयार की।

सबसे बड़ी मशीन वर्टिकल ड्रिलिंग की है

मशीनों को वापस ले जाना चुनौती बचाव कार्य के लिए देश के विभिन्न स्थानों से मंगाई गई मशीनों को वापस ले जाना बड़ी चुनौती है। इन मशीनों को कार्यस्थल पर पहुंचाने के लिए यमुनोत्री और गंगोत्री राजमार्ग पर ग्रीन कारिडोर बनाए गए। हारिजांटल (क्षैतिज) ड्रिलिंग के लिए पांच मशीनें व उनके उपकरण, जबकि वर्टिकल ड्रिलिंग के लिए चार मशीनें व उनके उपकरण पहुंचाए गए। इनमें औगर मशीन भी शामिल है।

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सबसे बड़ी मशीन वर्टिकल ड्रिलिंग की है, जिसकी क्षमता एक मीटर से अधिक व्यास और 100 मीटर गहराई तक बोरवेल करने की है। यह मशीन ऋषिकेश से सिलक्यारा तक 160 किलोमीटर चार दिन में पहुंची। अब यमुनोत्री और गंगोत्री राजमार्ग कई जगह बदहाल है। कई जगहों पर हाईवे बेहद संकरा है। भूस्खलन का मलबा भी गिरता रहता है।

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