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Uttarkashi Tunnel Rescue: पहाड़ के देवता का आभार जताने पहुंचे अर्नाल्ड डिक्स, कहा- देवताओं के साथ मेरा एक समझौता...

सिलक्यारा सुरंग में 17 दिन तक चले बचाव अभियान के पहले दिन से ही स्थानीय बौखनाग देवता का मंदिर बनाने को लेकर चर्चा शुरू हो गई थी। बचाव अभियान में 20 नवंबर को शामिल हुए इंटरनेशनल टनलिंग एंड अंडरग्राउंड स्पेस एसोसिएशन के अध्यक्ष अर्नाल्ड डिक्स में भी बौखनाग देवता के प्रति पूरी श्रद्धा दिखी। स्थानीय लोग आसपास की भूमि को बौखनाग देवता की भूमि मानते हैं।

By Jagran NewsEdited By: Paras PandeyUpdated: Fri, 01 Dec 2023 03:00 AM (IST)
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पहाड़ के देवता का आभार जताने बौखनाग टाप पहुंचे अर्नाल्ड डिक्स

शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी। सिलक्यारा सुरंग में 17 दिन तक चले बचाव अभियान के पहले दिन से ही स्थानीय बौखनाग देवता का मंदिर बनाने को लेकर चर्चा शुरू हो गई थी। बचाव अभियान में 20 नवंबर को शामिल हुए इंटरनेशनल टनलिंग एंड अंडरग्राउंड स्पेस एसोसिएशन के अध्यक्ष अर्नाल्ड डिक्स में भी बौखनाग देवता के प्रति पूरी श्रद्धा दिखी। अभियान के सफल होने के बाद अर्नाल्ड बुधवार को सिलक्यारा से 25 किमी दूर बौखनाग टाप पहुंचे और बौखनाग देवता के पौराणिक मंदिर में पूजा-अर्चना की। उन्होंने स्थानीय लोगों और एसडीआरएफ जवानों के साथ गढ़वाली भक्ति गीत पर नृत्य भी किया।

‘दैनिक जागरण’ से बातचीत में अर्नाल्ड ने कहा, पहाड़ के देवता (बौखनाग) के साथ मेरा एक समझौता था अब जबकि उन्होंने श्रमिकों को सुरक्षित बाहर लाकर उसे पूरा किया है, मैं उनका आभार जताने आया हूं। विशेषज्ञ अर्नाल्ड डिक्स जब सिलक्यारा पहुंचे तो श्रमिकों को निकालने की चिंता और चुनौती थी। 

पिछले आठ दिन से किए जा रहे प्रयास सिरे नहीं चढ़ रहे थे। निकास सुरंग बनाने में लगी मशीनें लगातार क्षतिग्रस्त हो रही थी। सिलक्यारा पहुंचे सुरंग में फंसे श्रमिकों के स्वजन का धैर्य भी जवाब देने लगा था। हताशा के बादल गहरे होते जा रहे थे। इस सबके बीच सुरंग में पानी के पाइप से श्रमिकों के लिए खाने-पीने का जो सामान भेजा जा रहा था, उससे निकास सुरंग बनाने वाले विशेषज्ञों को हौसला मिल रहा था।

इन्हीं विशेषज्ञों में शामिल अर्नाल्ड ने सबसे पहले सुरंग के पास स्थापित बौखनाग देवता के मंदिर में मत्था टेका और फिर सुरंग में प्रवेश किया। इसके बाद जितनी बार भी अर्नाल्ड सुरंग में गए पहले मंदिर में मत्था टेका। वहां पूजा-अर्चना के साथ ध्यान भी लगाया। 

पहाड़ के देवता के साथ मेरा एक समझौता था 

28 नवंबर को अभियान पूरा होने के बाद वह 29 नवंबर को फिर सुरंग के पास बने मंदिर में गए और पुजारी, एसडीआरएफ व स्थानीय ग्रामीणों के साथ राड़ी टाप होते हुए बौखनाग टाप पहुंचे। यहां फिर उन्होंने बौखनाग देवता के प्रति अपनी आस्था प्रदर्शित की। अर्नाल्ड ने बताया कि सिलक्यारा सुरंग से श्रमिकों को सुरक्षित बाहर निकालने में मशीनरी और मानव शक्ति की अहम भूमिका रही। यह घटना इच्छाशक्ति का एक अनुपम उदाहरण है। औगर मशीन और रैट-होल माइनर्स दोनों ने ही अभियान को मंजिल तक पहुंचाया। हिमालय जैसे अत्यधिक जटिल पहाड़ों को संभालने में रैट माइनर्स सबसे प्रभावी तरीका साबित हुआ। फंसे श्रमिकों को बचाने में औगर मशीन व रैट माइनर्स टीम के साथ विभिन्न एजेंसी व विशेषज्ञों ने भी अहम भूमिका निभाई। 

अनुष्ठान भी हुए आयोजित बौखनाग देवता सिलक्यारा क्षेत्र के ईष्ट देव हैं 

स्थानीय लोग आसपास की भूमि को बौखनाग देवता की भूमि मानते हैं। सौंद निवासी नवीन कुमार बिजल्वाण कहते हैं कि वर्ष 2018 में जब चारधाम आलवेदर रोड परियोजना की सिलक्यारा सुरंग का निर्माण शुरू हुआ तो उसमें कुछ अड़चन आई। देवता के पश्वा ने कंपनी प्रबंधन को सिलक्यारा सुरंग के निकट एक मंदिर बनाने को कहा, लेकिन फिर बात आई-गई हो गई। 12 नवंबर को सुरंग में हुए भूस्खलन से 17 दिन तक 41 श्रमिक उसमें फंसे रहे। इस घटना को स्थानीय ग्रामीणों ने दैवीय प्रकोप से जोड़कर देखा और सुरंग के मुहाने पर अनुष्ठान भी चलते रहे। इन अनुष्ठान में अर्नाल्ड डिक्स व केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह ने भी भाग लिया। 

बौखनाग देवता की चौखट पर नवयुग के अधिकारी-कर्मचारी सिलक्यारा सुरंग में फंसे श्रमिकों को सकुशल निकालने का कार्य संपन्न होने के बाद गुरुवार को नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी के अधिकारी और कर्मचारी बौखनाग टाप स्थित मंदिर में पहुंचे और वहां विधिवत पूजा-अर्चना की। कंपनी ने सिलक्यारा सुरंग के पास भव्य मंदिर बनाने का भी आश्वासन दिया। सुरंग निर्माण फिर शुरू होने को लेकर नवयुग कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि फिलहाल सुरंग के निर्माण का काम रोका गया है।

जब शुरू होगा तो सबसे पहले शाट क्रीटिंग के साथ कैविटी भरी जाएगी। इसमें लंबा समय लग सकता है। सुरंग के अंदर जमा है फूड स्टाक सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों के लिए अंदर फूड स्टाक किया गया था, ताकि आपात स्थिति में उन्हें भूखा न रहना पड़े। फूड स्टाक के लिए 50 किलो संतरा, 80 किलो सेब, ड्राई फूड, रस, बिस्कुट व सत्तू के लड्डू भेजे गए थे। श्रमिकों के अनुसार सारा फूड स्टाक सुरंग में ही है।

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