Uttarakhand Tunnel Rescue: सात मोर्चों पर हुई कसरत, 20 से अधिक एजेंसियां-1000 से ज्यादा सदस्यों ने रेस्क्यू में की मदद
उत्तरकाशी के सिलक्यारा टनल में 12 नवंबर को हादसे वाले दिन से ही शुरू हुए बचाव अभियान ने पीएमओ के दखल के बाद 20 नवंबर को तब गति पकड़ी जब विशेषज्ञों ने एक साथ सात मोर्चों पर राहत एवं बचाव के लिए कसरत शुरू की। केंद्र व राज्य सरकार की 20 से अधिक एजेंसियां पूरे मनोयोग से राहत एवं बचाव कार्य में जुटी रहीं।
By Jagran NewsEdited By: Vinay SaxenaUpdated: Tue, 28 Nov 2023 10:18 PM (IST)
जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी। Uttarkashi Silkyara Tunnel Update: सिलक्यारा सुरंग में 12 नवंबर को हादसे वाले दिन से ही शुरू हुए बचाव अभियान ने पीएमओ के दखल के बाद 20 नवंबर को तब गति पकड़ी, जब विशेषज्ञों ने एक साथ सात मोर्चों पर राहत एवं बचाव के लिए कसरत शुरू की। केंद्र व राज्य सरकार की 20 से अधिक एजेंसियां पूरे मनोयोग से राहत एवं बचाव कार्य में जुटी रहीं। आइये नजर डालते हैं अपने तरह के इस अनोखे अभियान में शामिल रही प्रमुख एजेंसियों और उनके योगदान पर।
एसजेवीएनएल: वर्टिकल ड्रिलिंग कर निकास सुरंग बनाने की जिम्मेदारी सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड (एसजेवीएनएल) को सौंपी गई। 24 नवंबर को सुरंग के मुहाने की तरफ से हारिजांटल निकास सुरंग बनाने के दौरान औगर मशीन के मलबे में फंसने के बाद एसजेवीएनएल ने इस दिशा में तेजी से काम शुरू किया और रविवार सुबह से मंगलवार सुबह तक 42 मीटर ड्रिलिंग कर दी। मगर आगे वर्टिकल ड्रिलिंग की जरूरत नहीं पड़ी। एसजेवीएनएल ने औगर मशीन से चल रही ड्रिलिंग में भी तकनीकी सहयोग दिया।
एनडीएमए: एनडीएमए (नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथारिटी) समन्वय एजेंसी की भूमिका में रही। एजेंसी रेस्क्यू की निगरानी करने के साथ ही बाधाओं को दूर करने में मददगार बनी। विशेषज्ञों को बुलाने की बात हो अथवा रेस्क्यू में आवश्यक सामग्री व उपकरणों की उपलब्धता, इन्हें सुनिश्चित कराने के लिए एनडीएमए ने तत्काल कदम उठाए।
एनएचआइडीसीएल: सिलक्यारा की तरफ से नेशनल हाइवेज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कारपोरेशन (एनएचआइडीसीएल) के निर्देशन में ही अमेरिकन औगर मशीन का संचालन ट्रेंचलेस इंजीनियरिंग सर्विस की 24-सदस्यीय टीम कर रही थी। यह टीम 20 नवंबर को उत्तरकाशी पहुंची थी।
ओएनजीसी: योजना के तहत तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम लिमिटेड (ओएनजीसी) की टास्क टीम को बड़कोट की ओर से 325 मीटर वर्टिकल ड्रिलिंग की जिम्मेदारी दी गई। ओएनजीसी की टीम ने ड्रिलिंग हेड पर पहुंचकर सर्वे किया। इसके बाद बीआरओ ने सड़क बनाकर टीम को कार्यस्थल तक पहुंचाया। हालांकि, ड्रिलिंग की आवश्यकता नहीं पड़ी।
आरवीएनएल: सिलक्यारा छोर पर दो स्थानों को वर्टिकल ड्रिलिंग के लिए चुना गया। इनमें से एक स्थान पर लाइफ लाइन सुरंग बनाने की योजना बनी, जिसका जिम्मा रेल विकास निगम लिमिटेड (आरवीएनएल) को सौंपा गया। हालांकि, सुरंग में छह इंच व्यास का 57 मीटर लंबा पाइप दाखिल कराने में सफलता मिलने के कारण यहां ड्रिलिंग की जरूरत महसूस नहीं हुई। आरवीएनएल को सिलक्यारा की ओर से भी 170 मीटर सुरंग निर्माण की जिम्मेदारी दी गई थी।
वायु सेना: 15 नवंबर को वायु सेना के हरक्यूलिस विमान ने सिलक्यारा से 32 किमी दूर चिन्यालीसौड़ हवाई पट्टी पर 25 टन भारी अमेरिकन औगर मशीन उतारी। बैकअप के लिए दो दिन बाद इंदौर से मंगाई गई नई औगर मशीन भी वायु सेना के हरक्यूलिस विमान ने जौलीग्रांट पहुंचाई। इसके बाद वायु सेना की टीम विभिन्न मशीनें और पाइप पहुंचाने में जुटी रही।टीएचडीसी: सिलक्यारा की ओर से औगर मशीन से ड्रिलिंग में सफलता नहीं मिलने पर अभियान रुके नहीं, इसके लिए बड़कोट की ओर सुरंग के दूसरे छोर पर टिहरी हाइड्रो विकास निगम (टीएचडीसी) को सुरंग के निर्माणाधीन 483 मीटर हिस्से में माइक्रो सुरंग बनाने का जिम्मा दिया गया। टीएचडीसी ने चार मीटर व्यास में 12 मीटर लंबाई तक ड्रिलिंग कर ली थी। इससे आगे सुरंग बनाने की जरूरत नहीं पड़ी।
सेना और पुलिस: 17 नवंबर को ड्रिलिंग के दौरान पहाड़ी दरकने की आवाज सुनाई देने के बाद काम बंद करना पड़ा था। श्रमिकों ने भी काम करने से मना कर दिया। ऐसे में ड्रिलिंग मशीन और श्रमिकों के लिए बीआरओ व सेना ने प्रोटक्शन कैनोपी का निर्माण किया। कानून व्यवस्था का जिम्मा पुलिस ने संभाला।बीआरओ: सिलक्यारा सुरंग के आसपास जिन स्थानों से बचाव अभियान शुरू किया गया। वहां तक टीम और मशीनों को पहुंचाने के लिए सड़क बनाने की जिम्मेदारी सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने निभाई। बीआरओ ने सिलक्यारा की ओर से सुरंग के ऊपर पहाड़ी तक वर्टिकल ड्रिलिंग के कार्यस्थल तक 1.2 किमी लंबी सड़क 48 घंटे में बना डाली। बड़कोट की ओर से भी बीआरओ की टीम चार किमी लंबी सड़क तैयार करने में जुटी थी। डीआरडीओ और आइआइटी रुड़की : रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और आइआइटी रुड़की की टीम ने भी अभियान में भरपूर सहयोग किया। डीआरडीओ की टीम ने सुरंग के अंदर श्रमिकों तक छह इंच मोटे पाइप के माध्यम से एंडोस्कोपिक कैमरा भेजा और माइक्रो ड्रोन से भूस्खलन क्षेत्र का निरीक्षण किया।
एनडीआरएफ: सुरंग से श्रमिकों को सकुशल बाहर निकालने की जिम्मेदारी राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) को दी गई। इसको लेकर घटनास्थल पर मौजूद एनडीआरएफ के जवान लगातार माक ड्रिल करते रहे। जैसे ही निकास सुरंग तैयार हुई, एनडीआरएफ के 80 जवान अंदर फंसे श्रमिकों को बाहर लाने के लिए मोर्चे पर डट गए।एसडीआरएफ: सुरंग के भीतर छह इंच मोटा पाइप पहुंचाने के बाद राज्य आपदा मोचन बल (एसडीआरएफ) ने आडियो कम्युनिकेशन सेटअप स्थापित किया। इसके जरिये अंदर फंसे श्रमिकों से बेहतर ढंग से बात होती रही। एसडीआरएफ के 50 जवान तैनात किए गए थे।
जिला आपदा प्रबंधन: दो कंट्रोल रूम से 26 कार्मिकों ने सूचना संकलन और हेलीकाप्टर का समन्वय बनाने, बाहर से आए विशेषज्ञों के ठहरने की व्यवस्था व कार्य प्रगति रिपोर्ट शासन को प्रेषित की।आइटीबीपी: सुरंग के आसपास 65 हिमवीर सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा संभाले रहे।स्वास्थ्य विभाग: घटना के अगले दिन ही घटनास्थल पर विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम तैनात कर दी गई। जो अंदर फंसे श्रमिकों से निरंतर वार्तालाप कर उन्हें हौसला देती रही और उनकी मनोस्थिति का आकलन भी करती रही। जरूरी दवाएं भी भेजी गईं। सिलक्यारा में अस्थायी अस्पताल बनाने के साथ ही उत्तरकाशी जिला अस्पताल और ऋषिकेश एम्स में व्यवस्था की। एयर एंबुलेंस की व्यवस्था भी की गई थी।
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान: वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के विशेषज्ञों ने चट्टानों और भूगर्भ की जांच से वर्टिकल ड्रिलिंग के नए विकल्प को आसान बनाने के साथ ही सुरंग के बाधित हिस्से पर हारिजांटल ड्रिलिंग की चुनौती को दूर करने में मदद की। संस्थान ने जियोलाजिकल मैप भी उपलब्ध कराया।कोल इंडिया: रविवार को नागपुर से कोल इंडिया लिमिटेड की चार सदस्यीय टीम भी आई। टीम को वर्टिकल ड्रिलिंग के बाद श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए स्टील के कैप्सूल बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी।
बीएसएनएल: बीएसएनएल ने सुरंग में दूरसंचार की व्यवस्था की, जिससे श्रमिकों के स्वजन को उनसे बात करने के लिए सुरंग के अंदर न जाना पड़े।
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