Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

Uttarkashi Tunnel Rescue: सिल्क्यारा घटना के बाद टनल SOP की कवायद तेज, घटना के सभी पहलुओं के अध्ययन में जुटा आपदा प्रबंधन

Uttarkashi Tunnel Rescue उत्तराखंड में सुरंग निर्माण में सुरक्षा और सुरंग के ढहने जैसी घटनाओं में खोज बचाव अभियान के लिए सेफ्टी स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) तैयार नहीं है। सिलक्यारा सुरंग में सुरक्षा मानक क्या थे इसको लेकर एनएचआइडीसीएल के अधिकारी ही जानकारी दे सकेंगे। सिलक्यारा सुरंग में 12 नवंबर को हुई घटना सुरंग निर्माण करवाने वाले विभागों और निर्माण करने वाली कंपनियों के लिए एक बड़ा सबक है।

By Shailendra prasadEdited By: Prince SharmaUpdated: Tue, 05 Dec 2023 06:30 AM (IST)
Hero Image
Uttarkashi Tunnel Rescue: सिलक्यारा सुरंग में सुरक्षा मानक क्या

शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी। हिमालयी राज्य उत्तराखंड में सड़क और रेलवे के आधारभूत ढांचे का निर्माण तेजी से हो रहा है। सड़क व रेलवे लाइन के लिए सुरंग का जाल बिछ रहा है। परंतु, अभी तक राज्य में सुरंग निर्माण में सुरक्षा और सुरंग के ढहने जैसी घटनाओं में खोज बचाव अभियान के लिए सेफ्टी स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) तैयार नहीं है।

तय हो सुरक्षा मानक

भले ही सिलक्यारा सुरंग घटना के बाद एसओपी को लेकर अब उत्तराखंड शासन स्तर पर कवायद शुरू हुई है। उत्तराखंड शासन में आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत सिन्हा कहते हैं कि सिलक्यारा घटना के सभी पहलुओं का पूरा अध्ययन किया जा रहा है। निर्माण के दौरान सुरक्षा से लेकर खोज बचाव की बारीकियों को भी देखा जा रहा है। सुरंग निर्माण में सुरक्षा मानकों में क्या होना चाहिए। यह रिपोर्ट भविष्य के लिए अच्छी होगी। सिलक्यारा सुरंग में सुरक्षा मानक क्या थे, इसको लेकर एनएचआइडीसीएल के अधिकारी ही जानकारी दे सकेंगे।

सिलक्यारा सुरंग में 12 नवंबर को हुई घटना सुरंग निर्माण करवाने वाले विभागों और निर्माण करने वाली कंपनियों के लिए एक बड़ा सबक है। सिलक्यारा सुरंग में 17 दिनों तक चले खोज बचाओ अभियान में देश विदेश की विभिन्न एजेंसियां युद्ध स्तर पर जुटी रही। अपनी ओर से सभी ने 41 श्रमिकों को बचाने के लिए प्रयास किया। परंतु खोज बचाव अभियान के दौरान कुछ कमियां भी सामने आई। सिलक्यारा खोज बचाओ अभियान में नेतृत्व को लेकर भी करीब आठ दिनों तक बड़ी असमंजस की स्थिति रही।

श्रमिकों की संख्या 40 बताई गई

पीएमओ की दखल के बाद अभियान में कुछ स्थिति सुधरी। अगर एसओपी बनी होती तो अभियान को लीड करने, विशेषज्ञों से समन्वय स्थापित करने में गतिरोध की स्थिति न बनती। दूसरी खामी यह रही कि कार्यदायी संस्था और निर्माण कंपनी के पास सुरंग में सुरक्षा व ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए कोई भी योजना नहीं थी। यहां तक कंपनी के पास श्रमिकों की सही संख्या, श्रमिकों का बायोडाटा भी कंपनी के पास भी उपलब्ध नहीं था। जब सिलक्यारा की घटना हुई थी तो 12 नवंबर से लेकर 16 नवंबर तक कंपनी श्रमिकों की संख्या 40 बताती रही। जबकि 17 नंवबर को श्रमिकों की संख्या 41 बतायी गई।

कंपनी के पास श्रमिकों के नाम पते भी सही नहीं थे। इसके अलावा एनएचआइडीसीएल व नवयुग कंपनी ने इस सुरंग में सेफ्टी अधिकारी का नाम भी नहीं बताया। साथ ही उसकी जिम्मेदारी भी तय नहीं की। इसी कारण सबसे बड़ी खामी सुरंग में सुरक्षा इंतजामों को लेकर सामने आई। एनएचआइडीसीएल के एक जिम्मेदार अधिकारी ने कहा कि उन्हें मीडिया में बयान देने से मना किया गया है। सवाल के जवाब को टालते हुए इतना ही कहा जब इतनी बड़ी परियोजना बन रही हो तो सुरक्षा अधिकारी रहे होंगे।

उत्तराखंड शासन ने गठित की कमेटी

खैर सिलक्यारा घटना घटित होने पर उत्तराखंड शासन की ओर से विस्तृत अध्ययन के लिए जांच कमेटी गठित की गई। जिसमें सर्वे आफ इंडिया तथा वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के विज्ञानियों को शामिल किया गया है। लेकिन, जब 4.531 किलोमीटर लंबी सिलक्यारा सुरंग निर्माण को लेकर जब सर्वे किया गया था तब कार्यदायी संस्था और कंपनी ने अपनी पसंद की कंसलटेंसी एजेंसी के भूूविज्ञानी पर भरोसा किया। जबकि वाडिया संस्थान और जीएसआइ के भूविज्ञानियों की मदद ली जा सकती थी। जिनके मुख्यालय सिलक्यारा सुरंग से महज 140 किलोमीटर की दूरी पर देहरादून में स्थित हैं। साथ ही इन नामी संस्थानों के भूविज्ञानी हिमालय के नए पहाड़ों की संवेदनशीलता को भी बखूबी जानते हैं।

यह भी पढ़ें- UP Holiday List: यूपी में साल 2024 का अवकाश कैलेंडर जारी, एक साथ मिलेंगी इतनी छुट्टियां, पढ़ें पूरी जानकारी

यह भी पढ़ें- Assembly Results: राज्यों के चुनाव में बढ़ा भाजपा का वोट प्रतिशत लोकसभा चुनाव में विपक्ष की बढ़ाएगा सिरदर्दी