यहां सैनिकों के सपनों में आते हैं शहीद, हकीकत में इस तरह पिलाते हैं पानी
उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी में भारत-चीन सीमा पर एक जगह ऐसी है, जहां शहीद सैनिकों के लिए पानी रखा जाता है। जवान कहते ये शहीद सैनिक सपने में आते हैं और पानी मांगते हैं।
By sunil negiEdited By: Updated: Mon, 04 Jul 2016 06:00 AM (IST)
उत्तरकाशी, [शैलेंद्र गोदियाल]: विपरीत परिस्थितियों में भी सरहद पर तैनात जवान चौबीसों घंटे चौकन्ने रहते हैं, ताकि दुश्मन के इलाके से वहां कोई परिंदा भी पर न मार सके। लेकिन, कभी-कभी ये विपरीत परिस्थितियां ही इन जवानों की दुश्मन बन जाती हैं।
ऐसी ही एक घटना है 22 साल पहले की, जब उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी में भारत-चीन सीमा पर एफडी रेजीमेंट के तीन सैनिक पीने को पानी की तलाश में भटकते हुए ग्लेशियर के नीचे दबकर शहीद हो गए थे। सेना व अर्द्धसैनिक बलों के जवानों की शहीदों के प्रति आस्था देखिए कि आज भी सीमा पर आगे बढ़ने से पहले उनके स्मारक पर पानी से भरी बोतल रखना नहीं भूलते। इन जवानों का कहना है कि शहीद सैनिक कई बार उनके सपने में आते हैं और पीने को पानी मांगते हैं। पढ़ें-उत्तराखंड में अब पौधों पर नहीं, पेड़ पर उगेंगे टमाटर
उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर भैरव घाटी पड़ती है। यहीं से शुरू होता है भारत-चीन सीमा का संवेदनशील क्षेत्र। भैरवघाटी से 25 किलोमीटर दूर नेलांग क्षेत्र में सेना व आइटीबीपी की चौकी है। यह शीत मरुस्थलीय क्षेत्र है, जहां शीतकाल में रहना किसी चुनौती से कम नहीं। इस दौरान अत्याधिक बर्फबारी से यहां पानी के स्रोत पूरी तरह से बंद हो जाते हैं। ऐसे में जवानों को पीने का पानी बनाने के लिए ग्लेशियर काटकर उसे पिघलाना पड़ता है। लेकिन, जो सैनिक गश्त पर रहते हैं, उनके लिए ऐसा कर पाना संभव नहीं। ऐसे में उन्हें प्यास से अपनी जान तक गंवानी पड़ती है।पढ़ें:-यह है दुनिया का सबसे खतरनाक रास्ता, यहां से होता था भारत-तिब्बत व्यापार
22 साल पहले नेलांग घाटी में ऐसी ही घटना घटी थी। 6 अप्रैल 1994 को 64 एफडी रेजीमेंट के सैनिक हवलदार झूम प्रसाद गुरंग, नायक सुरेंद्र सिंह व दिन बहादुर हमल गश्त कर रहे थे। नेलांग से दो किलोमीटर पहले धुमका में ये सैनिक पानी पीने के लिए एक ग्लेशियर के पास गए। तभी अचानक ग्लेशियर टूट गया और तीनों सैनिक उसके नीचे दब गए। इन शहीद सैनिकों की याद में धुमका के पास उनका मेमोरियल बनाया गया। नेलांग सीमा पर तैनात आइटीबीपी व सेना के जवानों का दावा है कि शहीद सैनिक कई बार उनके सपने में आते हैं और पीने को पानी मांगते हैं। इसीलिए नेलांग घाटी में आते-जाते समय हर सैनिक व अफसर शहीद सैनिकों के मेमोरियल में पानी की बोतल भरकर रखता है।
उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर भैरव घाटी पड़ती है। यहीं से शुरू होता है भारत-चीन सीमा का संवेदनशील क्षेत्र। भैरवघाटी से 25 किलोमीटर दूर नेलांग क्षेत्र में सेना व आइटीबीपी की चौकी है। यह शीत मरुस्थलीय क्षेत्र है, जहां शीतकाल में रहना किसी चुनौती से कम नहीं। इस दौरान अत्याधिक बर्फबारी से यहां पानी के स्रोत पूरी तरह से बंद हो जाते हैं। ऐसे में जवानों को पीने का पानी बनाने के लिए ग्लेशियर काटकर उसे पिघलाना पड़ता है। लेकिन, जो सैनिक गश्त पर रहते हैं, उनके लिए ऐसा कर पाना संभव नहीं। ऐसे में उन्हें प्यास से अपनी जान तक गंवानी पड़ती है।पढ़ें:-यह है दुनिया का सबसे खतरनाक रास्ता, यहां से होता था भारत-तिब्बत व्यापार
22 साल पहले नेलांग घाटी में ऐसी ही घटना घटी थी। 6 अप्रैल 1994 को 64 एफडी रेजीमेंट के सैनिक हवलदार झूम प्रसाद गुरंग, नायक सुरेंद्र सिंह व दिन बहादुर हमल गश्त कर रहे थे। नेलांग से दो किलोमीटर पहले धुमका में ये सैनिक पानी पीने के लिए एक ग्लेशियर के पास गए। तभी अचानक ग्लेशियर टूट गया और तीनों सैनिक उसके नीचे दब गए। इन शहीद सैनिकों की याद में धुमका के पास उनका मेमोरियल बनाया गया। नेलांग सीमा पर तैनात आइटीबीपी व सेना के जवानों का दावा है कि शहीद सैनिक कई बार उनके सपने में आते हैं और पीने को पानी मांगते हैं। इसीलिए नेलांग घाटी में आते-जाते समय हर सैनिक व अफसर शहीद सैनिकों के मेमोरियल में पानी की बोतल भरकर रखता है।
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उत्तरकाशी में पर्यटन व्यवसाय से जुड़े तिलक सोनी बताते हैं कि नेलांग घाटी में जाने वाले पर्यटकों के लिए शहीद सैनिकों का मेमोरियल भी एक खास स्थल है। इन शहीद सैनिकों से जुड़ी जानकारी जब पर्यटकों को मिलती है तो उनकी आंखें भी नम हो उठती हैं। शहीद सैनिकों के प्रति सेना के जवानों की श्रद्धा भी यहां देखने को मिलती है। पढ़ें-केदारनाथ मंदिर इतने सौ सालों तक दबा रहा बर्फ के अंदर, जानने के लिए पढ़ें.
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