भगवान धन्वंतरि की जयंती प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के मौके पर मनाई जाती है।
काशी से धन्वंतरि का विशेष संबंध माना जाता है। धन्वंतरि का संबंध काशी से रहा है और वह विष्णु अंश के अवतार देव के तौर पर धनतेरस के मौके पर पूजे जाते हैं।
काशी में उनसे जुड़े धन्वंतरि कूप की मौजूदगी काशी से उनके संबंध का प्रमाण माना जाता है।
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार वह आयुर्वेद के जनक भी माने जाते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पृथ्वी में उनका अवतरण समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश हाथ में लेकर हुआ था।
इसी प्रकार शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी के मौके पर कामधेनु गाय और त्रयोदशी को धन्वंतरि और चतुर्दशी को काली मां और अमावस्या को महालक्ष्मी का समुद्र मंथन के दौरान उत्पत्ति हुई थी।
दीपावली के दो दिन पूर्व ही धन्वंतरि के अमृत कलश लेकर धरती पर अवतरित होने की मान्यता के अनुसार ही भगवान धन्वंतरि का जन्म धनतेरस पर्व के तौर पर मनाया जाता है।
भगवान धन्वंतरि की देश की अकेली अष्टधातु की मूर्ति करीब 325 साल पुरानी है। साल में सिर्फ एक दिन धनतेरस पर आम दर्शन के लिए मंदिर के पट खुलते हैं।