भारत को साधु-संतों की भूमि कहा जाता है। इन्हीं संत-महात्माओं को भगवान के सबसे निकट माना जाता है।
साधु-संतों के जीवन पर जब बात की जाती है तो एक बार नागा साधुओं के जीवन पर चर्चा जरूर होती है। लेकिन एक नागा साधु को इन परिक्षाओं से गुजरना होता है।
जब कोई आम आदमी नागा साधु बनने की इच्छा प्रकट करता है, तब अखाड़ा समिति अपने स्तर पर यह छान-बीन करती है और इसके बाद ही अखाड़े में प्रवेश दिया जाता है।
इसके बाद ब्रह्मचर्य की परीक्षा से गुजरना पड़ता है, इसमें 6 महीने से 1 साल का समय लग सकता है।
नागा साधु बनने से पहले अपने बीते हुए सांसारिक जीवन का त्याग करने के लिए नागा साधु अध्यात्मिक जीवन में कदम रखने से पहले स्वयं का पिंडदान करते हैं।
नागा साधुओं को आजीवन निर्वस्त्र रहना होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि वस्त्र को सांसारिक जीवन और आडंबर का प्रतीक माना जाता है।
नागा साधु किसी अन्य व्यक्ति के समक्ष सिर नहीं झुकाते हैं और ना ही किसी की निंदा करते हैं। लेकिन उनका सिर आशीर्वाद लेने के लिए केवल वरिष्ठ सन्यासियों के समक्ष ही झुकता है।