कृष्ण जन्माष्टमी के 15 दिन बाद राधा अष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है। इस साल यह पर्व 23 सितंबर को मनाया जाता है।
श्रीकृष्ण का नाम राधा जी के बिना अधूरा है। इसलिए राधा जी का नाम कृष्ण जी के साथ लिया जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी की तरह राधा अष्टमी का पर्व भी धूम-धाम से मनाया जाता है।
राधा अष्टमी का प्रारंभ 22 सितंबर को दोपहर 1 बजकर 35 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 23 सितंबर 12 बजकर 17 मिनट तक है।
राधा अष्टमी का बहुत महत्व होता है। इस दिन व्रत का पालन करने से सभी पापों का नाश होता है।
इस दिन महिलाएं संतान सुख और अखंड सुख की प्राप्ति के लिए व्रत का पालन करती हैं। राधा जी का व्रत करने से श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।
प्रातः काल स्नानादि से निवृत्त होकर मंडप बनाकर उसमें मिट्टी या फिर तांबे का कलश स्थापित करें। कलश पर तांबे का पात्र रखें।
इसके बाद राधा जी की मूर्ति की स्थापना करें और फिर षोडशोपचार से राधा जी की पूजा करें।
व्रत आदि का पालन करने के बाद अगले दिन ब्राह्माणों को भोजन कराएं तथा भोजन के बाद दान दें।
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