दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहे अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'वोकल फॉर लोकल, लोकल टू ग्लोबल' अभियान की बानगी हर हॉल और मंडप में देखी जा सकती है।
इस अभियान में उत्तराखंड के कलाकार भी भाग ले रहे हैं, जंगलों में उगने वाले बिच्छू घास यानी हिमालयन नेटल (स्थानीय भाषा में कंडाली) से जैकेट, शॉल और स्टॉल तैयार कर रहे हैं।
घास से बनी जैकेट मेले में लोगों को खूब आकर्षित भी कर रही हैं।
पहाड़ों में पाई जाने वाली कंडाली (बिच्छू घास) एक ऐसी घास है जिसे छूने से लोग डरते हैं लेकिन कलाकार इससे कई चीजें बनाकर अपनी कमाई का जरिया बना रहे हैं।
कंडाली (बिच्छू घास) घास प्राकृतिक रूप से उगती है, इसके तने को सुखाने के बाद इसे मशीन में प्रोसेस किया जाता है, इसके बाद धागा बनाया जाता है, चार से पांच किलो घास से एक किलो धागा निकलता है।
कंडाली घास के रेशे से बनी जैकेट की कीमत 35 सौ रुपये से शुरू होती है भांग के पौधे के तने के रेशे से बनी जैकेट की कीमत 62 सौ रुपये है। यह जैकेट 7 डिग्री तापमान में भी गर्माहट का अहसास कराएगी।
उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में कंडाली और मुंज घास काफी मात्रा में पाई जाती है, पहाड़ी इलाकों में इन घासों की पत्तियों को हरी सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है।