संस्कृत दुनिया की सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक मानी जाती है। चारों वेद, महापुराण, उपनिषद और अन्य प्राचीन ग्रंथ इसी भाषा में लिखे गए हैं।
इस भाषा में कई श्लोक लिखे गए हैं जो जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। ऐसे ही कुछ श्लोकों के बारे में बताएंगे, जिनसे जीवन में सतत प्रयास करते रहने की प्रेरणा मिलती है।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
गीता में यह श्लोक भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं कि कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, फल पर नहीं। इसलिए, कर्म करो, फल की चिंता न करो।
न चोरहार्य न राजहार्य न भ्रतृभाज्यं न च भारकारि। व्यये कृते वर्धति एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्।।
इस श्लोक में विद्या की महत्ता के बारे में बताया गया है। विद्या को ऐसा धन बताया गया है, जिसे न तो कोई चोरी कर सकता है, न कोई बांट सकता है। यह खर्च करने से और भी अधिक बढ़ती है और संचय करने से घटती जाती है।
उद्यमेन ही सिद्धयन्ति कार्याणि न मनोरथैः। नहीं सुपतस्य सिंहस्य प्रविशंति मुखे मृगाः ।।
इस श्लोक में कर्म के बारे में बताया गया है। इसका अर्थ है कि सपनों को पूरा करने के लिए कठिन परिश्रम की आवश्यकता होती है। जिस प्रकार सोते हुए सिंह के मुंह में हिरण प्रवेश नहीं कर सकता, उसी प्रकार सफलता पाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है।
ये श्लोक जीवन में आगे बढ़ने को प्रेरित करते हैं। ऐसी ही अन्य खबरों के लिए पढ़ते रहें JAGRAN.COM