अपराध के कई मामलों में आरोपी के झूठ बोलने या सच्चाई छिपाने के कारण पुलिस की जांच में बाधा उत्पन्न होती है, ऐसे में आरोपी व्यक्ति का नार्को टेस्ट कराया जाता है।
जांच अधिकारियों और वैज्ञानिकों की मानें तो नार्को टेस्ट से अपराधी या फिर संदिग्ध अपराधी से सच उगलवाने की पूरी संभावना रहती है।
इस टेस्ट में व्यक्ति को एक इंजेक्शन दिया जाता है और वह अर्धचेतना की स्थिति में प्रश्नों का सही उत्तर देता चला जाता है।
पुलिस किसी भी संदिग्ध या आरोपी का स्वतः नार्को टेस्ट नहीं करा सकती, इसके लिए उसे स्थानीय अदालत की अनुमति लेनी पड़ती है।
नार्को टेस्ट एक परीक्षण प्रक्रिया है जिसमें एक व्यक्ति को एक साइकोएक्टिव दवा दी जाती है जिसे ट्रुथ ड्रग के रूप में जाना जाता है, कुछ मामलों में सोडियम पेंटोथोल का इंजेक्शन भी लगाया जाता है।
इंजेक्शन लगाने के बाद यह दवा खून में पहुंच जाती है और व्यक्ति अर्धचेतना की स्थिति में पहुंच जाता है, इसके बाद एक्सपर्ट अर्धबेहोशी की अवस्था में पहले से तय सवाल किए जाते हैं।
पुलिस नार्को टेस्ट के जरिए जांच में मदद ले सकती है लेकिन टेस्ट के दौरान दिए गए बयान को अदालत में कानूनी तौर पर स्वीकार नहीं किया जाता है।