मुंबई की युवती श्रद्धा मर्डर केस की तह तक जाने के लिए दिल्ली पुलिस नार्को टेस्ट से पहले आफताब का पॉलीग्राफ टेस्ट कराएगी।
नार्को टेस्ट और पॉलीग्राफ टेस्ट का मकसद किसी व्यक्ति से सच बाहर निकालना होता है, हालांकि दोनों टेस्ट की प्रक्रिया एक दूसरे से बिल्कुल अलग होती है।
पॉलीग्राफ टेस्ट को आसान भाषा में लाई डिटेक्टर टेस्ट भी कहा जाता है, यह एक खास तकनीक है जिसमें मशीनों के जरिए सच और झूठ का पता लगाया जाता है।
इसमें आरोपी या संबंधित शख्स से सवाल पूछे जाते हैं, फिर सवाल का जवाब देते हुए मशीन के स्क्रीन पर ग्राफ के जरिए मानव शरीर के आंतरिक व्यवहार जैसे पल्स रेट,हार्ट बीट, ब्लड प्रेशर आदि का आकलन किया जाता है।
पॉलीग्राफ टेस्ट में व्यक्ति को कोई दवा या इंजेक्शन नहीं दिया जाता है, वह पूरे होश में सवालों के जवाब देता है।
लाई डिटेक्टर टेस्ट के दौरान इंसान के शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर तार लगाए जाते हैं, जिसके जरिए मशीन उसके हाव-भाव पर नजर रखती है।
नार्को टेस्ट पॉलीग्राफ टेस्ट से कई मायनों में अलग है, नार्को ग्रीक शब्द है जिसका मतलब एनेस्थीसिया होता है।
नार्को टेस्ट में व्यक्ति को एक इंजेक्शन लगाया जाता है जिसमे डॉक्टर ट्रुथ सिरप ड्रग्स का इस्तेमाल करते हैं, जिसके बाद व्यक्ति न तो पूरी तरह होश में होता है और न ही बेहोश होता है।
नार्को टेस्ट से पहले यह जानने के लिए कुछ रूटीन टेस्ट किए जाते हैं कि व्यक्ति का शरीर एनेस्थीसिया झेलने में सक्षम है या नहीं।