Ambubachi Mela: मान्यता है कि देवी के रजस्वला वाले कपड़े पास रखने से सभी मनोकामना पूरी होती है
51 शक्तिपीठों में सबसे प्रसिद्ध मां कामाख्या पावन धाम पर प्रत्येक वर्ष लगने वाला अंबुबासी मेला इस वर्ष भी 22 जून से प्रारंभ हुआ। मेला 26 जून तक चलेगा।
By Preeti jhaEdited By: Updated: Mon, 24 Jun 2019 10:39 AM (IST)
सिलीगुड़ी, अशोक झा। 51 शक्तिपीठों में सबसे प्रसिद्ध मां कामाख्या पावन धाम पर प्रत्येक वर्ष लगने वाला अंबुबासी मेला इस वर्ष भी 22 जून से प्रारंभ हुआ। मेला 26 जून तक चलेगा। पूवरेत्तर के इस कुंभ को दिव्य और भव्य बनाने की तैयारी शासन और प्रशासन की ओर से की गयी है।
इसमें शामिल होने के लिए अभी से श्रद्धालु, साधु संत और तांत्रिकों की टोली गुवाहाटी के लिए रवाना हो गयी है। मंदिर के पुजारी मिहिर शर्मा ने बताया कि 22 जून को मेले का उद्घाटन असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने किया। उन्होंने कहा कि इस मौके पर आने वाले लाखों श्रत्रलुओं, नगा साधु सन्यासी, तांत्रिक और आम भक्तों को किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होने दी जाएगी। यहां देश ही नहीं बल्कि हजारों की संख्या में विदेश भी भक्त मां के दर्शन को आते है। मेला 26 जून तक चलेगा। 27 जून को दर्शन के लिए मंदिर के पट खोले जाएंगे। इस वर्ष दर्शन के लिए 501 रूपये की विशेष टिकट भी जारी हुआ है।
क्या है अंबुबासी महापर्व : अंबुबाचि शब्द अंबु और बासी दो शब्दों को मिलाकर बना है। जिसमें अंबु का अर्थ है पानी और बाचि का अर्थ है उत्फूलन। यह शब्द स्त्रियों की शक्ति और उनके जन्म क्षमता को दर्शाता है। प्रतिवर्ष जून के माह में यह मेला लगता है। यह मेला उस समय लगता है जब मां कामाख्या ऋतुमति रहती है। अंबुबाचि योग पर्व के दौरान मां भगवती के गर्भगृह के कपाट स्वत: ही बंद हो जाते है। उनके दर्शन निषेध हो जाते है। तीन दिनों के बाद मां भगवती की रजस्वला समाप्ति पर उनकी विशेष पूजा एंव साधना की जाती है। चौथे दिन ब्रह्म मुहूर्त में देवी को स्नान करवाकर श्रृंगार के उपरांत ही मंदिर श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है।
देवी का योनिमुद्रापीठ दस सीढ़ी नीचे एक गुफा में स्थित है। यहां हमेशा अखंड दीपक जलता रहता है। यहां आने जाने का मार्ग भी अलग बना है। इस मेला के दौरान भक्तों को प्रसाद के रूप में एक गीला कपड़ा दिया जाता है। इसे अंबुबाचि वस्त्र कहते है।कहते है कि देवी रजस्वला होने से पूर्व गर्भगृह स्थित महामुद्रा के आसपास सफेद वस्त्र बिछा दिए जाते है। तब यह वस्त्र माता के रज से रक्तवर्ण हो जाता है। उसी को भक्त प्रसाद के रूप में ग्रहण करते है। इस वस्त्र को धारण करके उपासना करने से भक्तों की सभी मनोकामना पूरी होती है। आश्चर्य की बात है कि इन तीन दिनों में ब्रह्मपुत्र का जल भी लाल हो जाता है। इस मेले में सैकड़ों तांत्रिक अपने एकांतवास से बाहर आते है और अपनी शक्तियों का प्रदर्शन करते है। इसी दिन से यहां के कृषक भी अपने खेतों में काम प्रारंभ करते है।
सुरक्षा के व्यापक प्रबंधकामाख्या देवालय समिति की ओर से मेले को लेकर 400 स्वयंसेवक, 400 स्काउट एंड गाइड, 140 अर्धसुरक्षा बल, 120 स्थायी सुरक्षाकर्मी तैनात किए गये हैं। सभी आने जाने वाले श्रद्धालुओं पर नजर रखने के लिए 300 सीसीटीवी लगाए गये है। सभी व्यवस्था की निगरानी स्वयं मुख्यमंत्री कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।