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टेबल टेनिस के मक्का को लगी बुरी नजर!

-हर किसी का सवाल अब कब लौटेगा भारत में टेबल टेनिस के मक्का सिलीगुड़ी का जलवा? -वह ि

By JagranEdited By: Updated: Fri, 27 May 2022 07:24 PM (IST)
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टेबल टेनिस के मक्का को लगी बुरी नजर!
-हर किसी का सवाल, अब कब लौटेगा भारत में टेबल टेनिस के मक्का सिलीगुड़ी का जलवा?

-वह दिन दूर नहीं कि लोग भूल ही जाएंगे टेबल टेनिस की दुनिया में सिलीगुड़ी का इतिहास 03

अर्जुन पुरस्कार सिलीगुड़ी के खिलाड़ियों को

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शीर्ष टेटे खिलाड़ियों में पांच बंगाल के होते थे

इरफान-ए-आजम, सिलीगुड़ी : पूर्वोत्तर भारत के प्रवेशद्वार सिलीगुड़ी के वह भी क्या दिन थे जब इसे टेबल टेनिस का मक्का कहा जाता था। देश के टॉप-10 टेबल टेनिस खिलाड़ियों में पांच अकेले बंगाल से और उनमें भी दो-चार अकेले सिलीगुड़ी से ही हुआ करते थे। मगर, अब कहां वो दिन? अब तो हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। वरना, सिलीगुड़ी ऐसा शहर रहा जिसने टेबल टेनिस में एक-दो नहीं बल्कि पूरे तीन अर्जुन पुरस्कार विजेताओं, मांतू घोष (2002), शुभोजीत साहा (2006) व सौम्यजीत घोष (2016) को पैदा किया। इन तीनों के साथ ही साथ कस्तूरी चक्रवर्ती व अंकिता दास भी ऐसे नाम हैं जिन्होंने टेबल टेनिस की दुनिया में राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय, कॉमनवेल्थ, एशियन गेम्स व ओलम्पिक्स आदि में एक से एक उपलब्धियों से सिलीगुड़ी का नाम जग में रौशन किया। सीनियर के अलावा जूनियर व सब-जूनियर श्रेणी में भी यहां के अनेक खिलाड़ियों ने अपना लोहा मनवाया व परचम लहराया। सिलीगुड़ी का ऐसा जलवा चंद बरस पहले तक भी बरकरार था।

मगर, अब मानो भारत में टेबल टेनिस के इस मक्का को किसी की बुरी नजर लग गई है। इधर, कुछ वर्षो से वह जलवा नहीं रहा। अब वैसे टेबल टेनिस सितारे यहां से पैदा नहीं हो रहे। आखिर, क्यों? इस बारे में यहां की सबसे वरिष्ठ व दिग्गज टेबल टेनिस कोच भारती घोष कहती हैं कि 'अब पहले जैसा समर्पण नहीं रहा। वही एक कमी है जो अब यहां से चमकते सितारे जन्म नहीं ले रहे'। वहीं, सिलीगुड़ी से उभरे व राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छाए टेबल टेनिस जगत में सिलीगुड़ी के पहले स्टार रहे गणेश कुंडू ने भी यह सवाल उठाया है कि, 'क्यों बहुत दिनों से उत्तर बंगाल से टेबल टेनिस के नेशनल चैम्पियन नहीं उभर रहे हैं?' इस दिशा में वह आधारभूत संरचनात्मक कमी को भी रेखांकित करते हैं। उनका कहना है कि, 'सिलीगुड़ी व उत्तर बंगाल को भी गुजरात, महाराष्ट्र व तमिलनाडु जैसी एकेडमी आधारित कोचिंग की जरूरत है। वहां की राज्य सरकारें टेबल टेनिस की उन्नति के लिए रुपये खर्च करती हैं। यहां भी वैसी ही जरूरत है। जहां एक ही छत के नीचे 15 टेबल हों, बॉल मशीन हो, फ्लोर मैट हो, स्टेडियम का महौल हो, अच्छे-अच्छे कोच हों। प्रैक्टिस की ऐसी सुविधाएं मिलें तो फिर जलवा ही जलवा होगा।'

ऐसी ही राय सुब्रत रॉय की भी है। वह सिलीगुड़ी के ही हैं और टेबल टेनिस के राष्ट्रीय स्तर के कोच, बंगाल टेबल टेनिस एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष व टेबल टेनिस फेडेरेशन ऑफ इंडिया के उपाध्यक्ष हैं। वह कहते हैं कि, यह मसअला केवल सिलीगुड़ी व उत्तर बंगाल ही नहीं बल्कि पूरे पश्चिम बंगाल के साथ है। यहां से जो भी उभरे उनमें से ज्यादातर कहीं और जा बसे। वे वहीं सरकारी-गैर सरकारी संगठनों में नौकरी करते हैं। उन्हीं के लिए खेलते हैं, उन्हीं के लिए कोच करते हैं। सो, यहां अच्छे कोच की कमी हो गई। ऊपर से आधारभूत संरचनात्मक कमी तो सर्वोपरि है ही। अब वह जमाना नहीं रह गया कि कोई क्लब स्तर के सीमित संसाधनों द्वारा प्रशिक्षण लेकर राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अत्याधुनिक माहौल में अपना जलवा बिखेर आए।

बदलते जमाने के अनुसार हो तैयारी तो बने बात

अब टेबल टेनिस की चैम्पियनशिप विशाल इंडोर स्टेडियम में होती है। जहां सिंथेटिक फ्लोर मैट पर चकाचौंध रौशनी के बीच, अत्याधुनिक टेबल पर प्रतियोगिता होती है। जहां बॉल की स्पीड व बाउंस भी ज्यादा होती है। ऐसे में मामूली क्लब स्तर के संसाधनों से प्रशिक्षित हो कर कोई वहां कैसे टिक पाएगा। इसके लिए जरूरी है कि बदलते जमाने के अनुसार आवश्यक साधन-संसाधन मुहैया कराए जाएं। राजधानी कोलकाता में तो यह फिर भी ठीक-ठाक है। मगर, सिलीगुड़ी व उत्तर बंगाल में इसका घोर अभाव है। हम लोग लगभग दो दशक से प्रयास कर रहे हैं कि सिलीगुड़ी में सरकारी स्तर पर तमाम अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस इंडोर स्टेडियम युक्त टेबल टेनिस एकेडमी हो। पर, वह सपना साकार ही नहीं हो पा रहा है। इस दिशा में समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो वह दिन दूर नहीं कि लोग भूल ही जाएंगे कि देश में कभी सिलीगुड़ी टेबल टेनिस का मक्का भी हुआ करता था।

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