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Autism Spectrum Disorder: आटिज्म पीड़ित बच्चों को शब्द, रंग और आकार की पहचान करने में मदद करेगा रोबोट ‘ब्रावो’

Autism Spectrum Disorder आटिज्म ग्रस्त बच्चों को कोई भी चीज सिखाना सबसे कठिन काम है। इसके लिए लगन मेहनत के अलावा निरंतरता व धैर्य भी चाहिए। यह आटिज्म पीड़ित बच्चों को शब्द रंग और आकार जैसी चीजों को समझने-सीखने में मदद करेगा। बंगाल के एक सेवानिवृत्त अस्पताल कर्मी ने अपने खर्च पर इस रोबोट को तैयार किया है। होटल-रेस्तरां में वेटर के रूप में भी काम कर सकता है।

By Jagran NewsEdited By: Prince SharmaUpdated: Sat, 09 Sep 2023 07:43 AM (IST)
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Autism Spectrum Disorder: आटिज्म पीड़ित बच्चों को शब्द, रंग और आकार की पहचान करने में मदद करेगा रोबोट ‘ब्रावो’

कोलकाता, पीटीआई। आटिज्म ग्रस्त बच्चों को कोई भी चीज सिखाना सबसे कठिन काम है। इसके लिए लगन, मेहनत के अलावा निरंतरता व धैर्य भी चाहिए। यही वजह है कि अधिकांश परिजन हताश निराश हो जाते हैं। खास तौर पर भारत जैसे विकासशील देशों में ऐसे बच्चे बहुत-सी सुविधाओं व प्रशिक्षणों से वंचित हैं। ऐसे बच्चों का साथी बनने आया है ‘ब्रावो’।

होटल-रेस्तरां में वेटर के रूप में भी काम कर सकता है।

यह आटिज्म पीड़ित बच्चों को शब्द, रंग और आकार जैसी चीजों को समझने-सीखने में मदद करेगा। बंगाल के एक सेवानिवृत्त अस्पताल कर्मी ने अपने खर्च पर इस रोबोट को तैयार किया है। हावड़ा के रहने वाले 62 वर्षीय अतनु घोष ने बताया यह रोबोट डेंगू जैसी बीमारियों के बारे में जागरूकता फैलाने और यहां तक होटल-रेस्तरां में वेटर के रूप में भी काम कर सकता है।

उन्होंने रोबोट डिजाइन करने की कला पिता नृपेंद्र नाथ घोष से सीखी, जो कलकत्ता विश्वविद्यालय के शरीर क्रियाविज्ञान (फिजियोलाजी) विभाग में बतौर अनुसंधान उपकरण डिजाइनर के तौर पर काम करते थे। घोष ने 1979 में 18 साल की उम्र में अपना पहला रिमोट-नियंत्रित रोबोट डिजाइन किया था, जिसके लिए उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से प्रशंसा मिली थी।

डेंगू जैसी बीमारियों के बारे में जागरुकता भी पैदा कर सकता है 

घोष के अनुसार उन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान अपने अगले रोबोट ‘कृति’ को बनाया था, जिसका इस्तेमाल मरीजों को दवा भिजवाने में किया गया। वर्ष 2023 में उन्होंने ब्रावो का निर्माण शुरू किया। इस रोबोट को उन्होंने डाक्टरों की देख-रेख में ही तैयार किया है। यह अपने डिस्प्ले के माध्यम से डेंगू जैसी बीमारियों के बारे में जागरुकता भी पैदा कर सकता है और वेटर के रूप में भी काम कर सकता है।