Bengal News: जानें सौरव गांगुली के नाम पर बंगाल में क्यों नहीं थम रही राजनीति, तृणमूल-भाजपा के बाद अब माकपा की एंट्री
Bengal News सौरव के नाम पर तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच जुबानी जंग चल ही रही थी कि अब इस में माकपा की भी एंट्री हो गई है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी व विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने अपने-अपने राजनीतिक दल की ओर से मोर्चा संभाल रखा है।
By Jagran NewsEdited By: Vinay Kumar TiwariUpdated: Wed, 19 Oct 2022 05:53 PM (IST)
कोलकाता, राज्य ब्यूरो। Bengal News: भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली उर्फ दादा का बीसीसीआइ (BCCI) अध्यक्ष पद से हटने के बाद से बंगाल (Bengal) में शुरू हुई राजनीति फिलहाल थम नहीं रही है। सौरव के नाम पर तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच जुबानी जंग चल ही रही थी कि अब इस में माकपा की भी एंट्री हो गई है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी व विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने अपने-अपने राजनीतिक दल की ओर से मोर्चा संभाल रखा है।
शुरुआत ममता ने की, जब उन्होंने बीसीसीआइ (BCCI) के अध्यक्ष की कुर्सी से सौरव को हटाने के औचित्य पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) के बेटे जय शाह (Jai Shah) बीसीसीआइ (BCCI) सचिव के रूप में बने रह सकते हैं तो भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान को बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में दूसरा कार्यकाल देने में क्या हर्ज है।
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) से बात करेंगी ताकि गांगुली अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आइसीसी, ICC) के अध्यक्ष के लिए चुनाव लड़ सके और भारत का प्रतिनिधित्व कर सकें।
17 अक्टूबर को मुख्यमंत्री के उपरोक्त बयान के कुछ घंटों बाद सुवेंदु अधिकारी ने अपनी प्रतिक्रिया में गांगुली को बंगाल के ब्रांड एंबेसडर के रूप में नियुक्त करने और बालीवुड स्टार (Bollywood Star) शाह रुख खान (Shah Rukh Khan) की जगह देने की मांग की।
विपक्ष के नेता ने यह भी कहा कि गांगुली बंगाल का गौरव हैं, इसे समझने में मुख्यमंत्री ने विलंब कर दिया, नहीं तो वह उन्हें बहुत पहले राज्य का ब्रांड एंबेसडर (Brand Ambassdor)बना देतीं। इस मुद्दे पर माकपा के वरिष्ठ नेता और वाम मोर्चा सरकार के दौरान नगरपालिका मामलों और शहरी विकास मंत्री रहे अशोक भट्टाचार्य, जिनके साथ सौरव गांगुली के आत्मीय संबंध है, ने कहा कि तृणमूल और भाजपा दोनों को गांगुली को राजनीतिक मोहरा बनाने के प्रयास से दूर रहना चाहिए।
भट्टाचार्य ने कहा कि मैं भाजपा और तृणमूल दोनों से अनुरोध करता हूं कि वे सौरव को इस तरह से घसीटना बंद करें। वह राजनीति से परे हैं। हालांकि मैं मानता हूं कि सौरव आइसीसी में प्रतिनिधित्व करने के लिए सबसे योग्य व्यक्ति हैं और मुझे उन्हें वहां अध्यक्ष के रूप में देखकर बेहद खुशी होगी।
अब इस राजनीतिक रस्साकशी के बीच यह सवाल पूछा जा रहा है कि राजनीति में सीधे शामिल हुए बिना पार्टी लाइन से परे सभी राजनीतिक दलों के साथ एक अच्छा संतुलन बनाए रखने वाले गांगुली क्या खुद ही सियासी कीचड़ उछालने का खिलौना बन गए हैं।
बंगाल में खेल में खूब होती रही है राजनीतिराजनीतिक पर्यवेक्षकों को लगता है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि बंगाल में, जहां हर मुद्दे पर राजनीतिक लाभ लेने की प्रवृत्ति है, यहां तक कि खेल और खिलाड़ियों को भी नहीं बख्शा गया है। एक अनुभवी राजनीतिक विश्लेषक ने कहा कि यह पहली बार नहीं है, जब क्रिकेट और सौरव गांगुली को राज्य की राजनीति में घसीटा गया है।
जुलाई 2006 में पश्चिम बंगाल में क्रिकेट ने पहली बार बंगाल क्रिकेट संघ (सीएबी) के अध्यक्ष के चुनाव में एक कड़वी राजनीतिक लड़ाई देखी गई, जब वरिष्ठ क्रिकेट प्रशासक और बीसीसीआइ के पूर्व अध्यक्ष दिवंगत जगमोहन डालमिया के खिलाफ तत्कालीन कोलकाता पुलिस आयुक्त प्रसून मुखर्जी को खड़ा किया गया था। उन्हें उस समय के राज्य के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का खुला समर्थन प्राप्त था।
इसके लिए बुद्धदेव भट्टाचार्य की न केवल तत्कालीन विपक्षी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने आलोचना की थी, बल्कि अपनी ही पार्टी, माकपा के अनेक वर्गो ने भी आलोचना की थी। यहां तक कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री व दिग्गज वाम नेता ज्योति बसु ने भी प्रसून मुखर्जी के नामांकन का विरोध किया था। तृणमूल कांग्रेस ने सीधे तौर पर बुद्धदेव भट्टाचार्य पर तत्कालीन शहर पुलिस आयुक्त का इस्तेमाल कर बंगाल क्रिकेट संघ यानी कैब पर कब्जा करने का प्रयास करने का आरोप लगाया था।
2007 में फिर से, जब गांगुली को राष्ट्रीय एकदिवसीय टीम से हटा दिया गया, तो बंगाल के राजनेताओं के एक बड़े वर्ग ने कहा कि बंगाली होने के कारण गांगुली के खिलाफ साजिश की गई। मामले को लेकर हुए विरोध प्रदर्शन में बांग्ला सिनेमा जगत के कई लोकप्रिय अभिनेता शामिल हुए थे।
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