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...जब ममता ने अचानक से सुवेंदु को विधानसभा स्थित अपने दफ्तर में चाय पर किया आमंत्रित

Bengal Politics ममता ने सुवेंदु को क्यों बुलाया? सुवेंदु ममता से मिलने क्यों गए? दोनों में से किसी ने इसका ब्योरा नहीं दिया। हालांकि सत्ता पक्ष और विपक्ष के दो अहम नेताओं के बीच अचानक हुई मुलाकात से राज्य की राजनीति में तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं।

By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Wed, 30 Nov 2022 12:44 PM (IST)
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Bengal Politics: मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (बाएं) और नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी। फाइल फोटो
कोलकाता, जयकृष्ण वाजपेयी। Bengal Politics पिछले दो वर्षों से बंगाल की मुख्यमंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी नेता प्रतिपक्ष एवं भाजपा विधायक सुवेंदु अधिकारी का नाम लेना तो दूर, उनसे बात करना और उनका चेहरा तक देखना पसंद नहीं कर रही थीं। एक बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बैठक में उन्हें जब आमंत्रित किया गया तो उसमें न खुद गईं, न ही राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव अलापन बंद्योपाध्याय को जाने दिया। गत दिनों नए राज्यपाल सीवी आनंद बोस के शपथग्रहण समारोह में भी सुवेंदु अधिकारी को सम्मानजनक स्थान नहीं दिया गया। उसके चलते उन्होंने शपथग्रहण समारोह का बहिष्कार कर दिया। यहां तक कि तृणमूल नेताओं की ओर से सुवेंदु के खिलाफ दो दर्जन से अधिक मुकदमे दर्ज कराए गए हैं। वे एक-दूसरे पर जमकर जुबानी हमले भी करते रहे हैं, पर इधर अचानक ऐसा क्या हुआ कि ममता बनर्जी जिससे इतनी नफरत और घृणा करती थीं उसी को अपने कक्ष में चाय पर बुला लिया।

18 दिसंबर, 2020 तक नंदीग्राम भूमि अधिग्रहण के खिलाफ हुए आंदोलन के पोस्टर ब्वाय कहे जाने वाले सुवेंदु अधिकारी ममता के करीबी नेताओं में से एक थे, लेकिन वह जैसे ही तृणमूल छोड़कर भाजपा में शामिल हुए उनके दुश्मन बन गए। कहा जाता है कि जब पिछले वर्ष विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम विधानसभा सीट पर सुवेंदु ने ममता को हरा दिया तो दुश्मनी के साथ वह उनसे घृणा भी करने लगीं। यही नहीं तृणमूल के शीर्ष नेताओं समेत ममता के भतीजे तथा पार्टी महासचिव अभिषेक बनर्जी के साथ उनका टकराव तो सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। इसी वर्ष विधानसभा के बजट सत्र के दौरान उन्हें पूरे वर्ष के लिए निलंबित कर दिया गया, पर बाद में निलंबन वापस ले लिया गया।

ऐसे में जब पिछले शुक्रवार को ममता ने अचानक से सुवेंदु को विधानसभा स्थित अपने दफ्तर में चाय पर आमंत्रित किया तो सवाल उठना लाजिमी है। भले ही मुलाकात चार मिनट की ही रही। मुख्यमंत्री ने कहा-'मैंने चाय के लिए फोन किया था।’ वहीं सुवेंदु ने कहा-‘संसदीय लोकतंत्र में शिष्टाचार होता है। इसलिए मैं शिष्टाचार भेंट के लिए गया। मैं यह नहीं कहूंगा कि क्या चर्चा हुई।’ बताते चलें कि ममता ने चाय के लिए तो बुलाया जरूर था, लेकिन समय की कमी के कारण सुवेंदु ने चाय नहीं पी, क्योंकि उसी समय सदन की कार्यवाही की घंट्टी बज चुकी थी और सीएम को संबोधित करना था। इसीलिए वे बिना चाय पिए ही लौट गए।

ममता ने सुवेंदु को क्यों बुलाया? सुवेंदु ममता से मिलने क्यों गए? दोनों में से किसी ने इसका ब्योरा नहीं दिया। हालांकि सत्ता पक्ष और विपक्ष के दो अहम नेताओं के बीच अचानक हुई मुलाकात से राज्य की राजनीति में तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। कई लोग इसे सुवेंदु के मन से गुस्से का गुब्बार निकालने का ममता का ‘मास्टरस्ट्रोक’ बता रहे हैं। कहा जा रहा है कि इस तरह नए राज्यपाल के शपथग्रहण समारोह में बैठने के बंदोबस्त को लेकर जो कटुता नेता प्रतिपक्ष के मन में पैदा हुई थी उसे ठंडा करने की कोशिश की जा रही है। कुछ की व्याख्या है कि सुवेंदु के प्रति ममता थोड़ी नरम पड़ी हैं। कुछ लोग इसमें केंद्र-राज्य के संबंध भी देख रहे हैं। उनके अनुसार तृणमूल बंगाल की वर्तमान आर्थिक स्थिति की खातिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ संबंधों को ‘सुगम’ बनाना चाहती है।

यही वजह है कि जी-20 सम्मेलन को लेकर प्रधानमंत्री द्वारा पांच दिसंबर को बुलाई गई बैठक में भाग लेने के लिए ममता बनर्जी दिल्ली जा रही हैं। इस बीच रोकी गई प्रधानमंत्री आवास योजना की राशि, जीएसटी का बकाया फंड भी केंद्र की ओर से चरणबद्ध तरीके से भुगतान करना शुरू कर दिया गया है। इससे गंभीर वित्तीय संकट से जूझ रहे राज्य को कुछ राहत मिलेगी। ऐसे में कई लोगों का मानना है कि मुख्यमंत्री के तौर पर ममता प्रधानमंत्री को किसी भी तरह से ‘नाराज’ नहीं करना चाहेंगी।

दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि राज्य के विपक्षी नेता के पद को ‘गरिमा’ देने के लिए भाजपा के शीर्ष नेताओं की ओर से तृणमूल प्रमुख को संदेश भेजा जा रहा है। कहा जा रहा है कि राजनीति के स्थान पर राजनीति होनी चाहिए, लेकिन नेता प्रतिपक्ष पद की मर्यादा बनी रहे। इसीलिए मुख्यमंत्री ने अपना रुख बदला है। इस मुलाकात के अगले ही दिन सुवेंदु ने एक सभा में कहा-‘ममता बनर्जी को हम पूर्व मुख्यमंत्री बनाकर रहेंगे।’ इस पर तृणमूल ने भी पलटवार करते हुए कहा कि शिष्टाचार को कमजोरी न समझा जाए।

बंगाल की राजनीति में इस समय बशीर बद्र की एक मशहूर शेर-‘दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे...जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा न हों’ मौजूं हो रहा है।

सुवेंदु अधिकारी के प्रति चाय वाली ‘ममता बनर्जी ’

[राज्य ब्यूरो प्रमुख, बंगाल]

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