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भ्रष्टाचार के खिलाफ हमेशा मुखर रहे बुद्धदेव, अपनी सरकार को भी नहीं बख्शा; छोड़ दिया था मंत्री पद

पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का गुरुवार को 80 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने कोलकाता स्थित अपने आवास में आखिरी सांस ली। जानकारी के मुताबिक उन्हें सांस लेने में तकलीफ थी। बुद्धदेव हमेशा ही भ्रष्टाचार के खिलाफ मुखर रहे। उन्होंने इस मुद्दे पर अपनी सरकार के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया था। इतना ही नहीं मंत्री पद से इस्तीफा भी दे दिया था।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Thu, 08 Aug 2024 08:21 PM (IST)
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पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य। (फाइल फोटो)

राज्य ब्यूरो, जागरण, कोलकाता। बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत बुद्धदेव भट्टाचार्य भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले राज्य के पहले राजनेताओं में से एक थे। उन्होंने अपनी सरकार को भी नहीं बख्शा था। बुद्धदेव को पहली बार 1991 में ज्योति बसु की सरकार में राज्य मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था। उन्हें सूचना व संस्कृति और शहरी विकास विभाग का दायित्व सौंपा गया था।

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मंत्री पद से दे दिया था इस्तीफा

ईमानदारी से काम करने के अभ्यस्त बुद्धदेव ने प्रशासनिक कामकाज में काफी अनियमितताएं पाईं। इसे लेकर मुख्यमंत्री ज्योति बसु से उनका मतभेद हुआ। भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते हुए उन्होंने मंत्रिपद से इस्तीफा भी दे दिया था। बुद्धदेव ने तब बेहद कड़ा बयान देते हुए कहा था कि वे चोरों के साथ काम नहीं करेंगे। उन्होंने ऐसे समय यह बात कही थी, जब ज्योति बसु का दबदबा था।

बंगाल में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा

वाममोर्चा में शामिल दल तो दूर, उनकी अपनी पार्टी के नेता भी ज्योति बसु के खिलाफ कुछ कहने की हिम्मत नहीं दिखा पाते थे। बंगाल में भ्रष्टाचार आज भी एक बड़ा मुद्दा है। सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के कई मंत्री, विधायक व नेता विभिन्न घोटालों में इस समय जेलों में बंद हैं।

ब्राह्मणपरिवार से होने के बावजूद नास्तिकता को अपनाया

बुद्धदेव का जन्म एक मार्च, 1944 को उत्तर कोलकाता के बंगाली ब्राह्मणपरिवार में हुआ था। उनके दादा कृष्णचंद्र स्मृतितीर्थ संस्कृत के विद्वान, पुजारी और प्रसिद्ध लेखक थे। उन्होंने 'पुरोहित दर्पण' नामक पुस्तिका लिखी थी, जो बंगाली हिंदू पुजारियों में काफी लोकप्रिय है।

बुद्धदेव के पिता नेपालचंद्र हिंदू धार्मिक पाठ्य सामग्रियां बेचने के लिए समर्पित पारिवारिक प्रकाशन, सारस्वत पुस्तकालय से संबद्ध थे। कवि सुकांत भट्टाचार्य बुद्धदेव के पिता के चचेरे भाई थे। पुरोहितों के परिवार से होने के बावजूद बुद्धदेव ने कम्युनिस्ट विचारधारा को अपनाते हुए नास्तिकता को अपनाया।

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