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'मैं तब पैदा भी नहीं हुआ था', 65 साल पुराने मामले में फैसला सुनाते हुए बोले कलकत्ता HC के जज

कलकत्ता हाई कोर्ट के जज ने 65 साल पुराने एक मामले में फैसला सुनाया। जज ने कहा कि मैं तब पैदा भी नहीं हुआ था। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में बीरभूम जिले के रामपुरहाट के तत्कालीन जमींदार के लगान लगाने के निर्णय को बरकरार रखा। उस समय प्रजा पर लगभग 600 रुपये का लगान लगाने का निर्णय जमींदार का था जिसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

By Jagran NewsEdited By: Mohd FaisalUpdated: Tue, 03 Oct 2023 09:20 PM (IST)
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65 साल पुराने मामले में कलकत्ता HC के जज ने सुनाया फैसला (फाइल फोटो)
राज्य ब्यूरो, कोलकाता। कलकत्ता हाई कोर्ट के जज ने 65 साल पुराने एक मामले पर मंगलवार को अपना फैसला सुनाया। फैसला सुनाते हुए जज ने कहा कि मैं तब पैदा भी नहीं हुआ था।

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में बीरभूम जिले के रामपुरहाट के तत्कालीन जमींदार के लगान लगाने के निर्णय को बरकरार रखा। उस समय प्रजा पर लगभग 600 रुपये का लगान लगाने का निर्णय जमींदार का था, जिसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

65 साल बाद फैसला सुनाया

जमींदार के उस निर्णय पर 65 साल बाद न्यायाधीश अजय कुमार मुखर्जी ने अपना फैसला सुनाया। रामपुरहाट कोर्ट में वहां की जनता ने पहली बार जीत हासिल की थी। इसके बाद सिउड़ी जिला न्यायालय में जमींदार को जीत मिली थी। 1959 में जनता ने जमींदार की जीत को चुनौती देते हुए कलकत्ता हाई कोर्ट में मुकदमा दायर किया था। अधिकांश वादी की पहले ही मृत्यु हो चुकी है। यह उनकी अगली पीढ़ी ही थी जिसने इतने लंबे समय तक मुकदमा लड़ा।

उच्च न्यायालय में किया जाता था लगान से संबंधित सभी विवादों का निपटारा

1817 के ब्रिटिश किरायेदारी अधिनियम के अनुसार, लगान से संबंधित सभी विवादों का निपटारा उच्च न्यायालय में किया जाता था। मामले का सबसे अहम पहलू मंगलवार को जस्टिस मुखर्जी की टिप्पणियां हैं। मुकदमा दायर करने के समय फैसला सुनाने वाले इस जज का जन्म नहीं हुआ था।

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सरकार ने 24 एकड़ से अधिक की निजी भूमि को किया है खास घोषित

इस संदर्भ में न्यायाधीश की टिप्पणी थी कि जब यह मामला शुरू हुआ तब मैं पैदा भी नहीं हुआ था। बताते चलें कि 1953 में पश्चिम बंगाल विधान सभा द्वारा पारित कानून ने जमींदारी प्रथा को काफी हद तक सीमित कर दिया था। सरकार ने 24 एकड़ से अधिक की निजी भूमि को खास घोषित कर दिया था।

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