प्रख्यात गायिका ऊषा उत्थुप कला और राजनीति के मेल को सही नहीं मानतीं
बंगाल में 1986 में तत्कालीन वाममोर्चा सरकार ने बाढ़ पीडि़तों की राहत के लिए फंड जुटाने के लिए संगीत-नृत्य समारोह का आयोजन किया था जिसमें स्थानीय और कई बालीवुड सितारों को प्रस्तुति के लिए आमंत्रित किया गया था।
By Priti JhaEdited By: Updated: Tue, 08 Mar 2022 09:56 AM (IST)
राज्य ब्यूरो, कोलकाता। प्रख्यात गायिका ऊषा उत्थुप कला और राजनीति के मेल को सही नहीं मानतीं। उनका मानना है कि इससे नुकसान ही होता है। ऊषा उत्थुप ने कोलकाता में आयोजित एक कार्यक्रम में अपनी जीवनी के अंग्रेजी अनुवाद के विमोचन पर कहा-'कला और राजनीति का बिल्कुल भी मेल नहीं होना चाहिए। यह किसी भी दृष्टि से ठीक नहीं है।
बंगाल में 1986 में तत्कालीन वाममोर्चा सरकार ने बाढ़ पीडि़तों की राहत के लिए फंड जुटाने के लिए संगीत-नृत्य समारोह का आयोजन किया था, जिसमें स्थानीय और कई बालीवुड सितारों को प्रस्तुति के लिए आमंत्रित किया गया था। उस कार्यक्रम में ऊषा उत्थुप की एक प्रस्तुति के बाद 'संस्कृति बनाम पतनशील संस्कृति विषय पर व्यापक बहस छिड़ गई थी, जिसकी वजह से उन्हें एक मंत्री के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करने के लिए मजबूर होना पड़ा था। उस विवाद के तीन दशकों से अधिक समय के बाद ऊषा उत्थुप ने उसे 'अभूतपूर्वÓ करार दिया क्योंकि उस समय इस बहस को लेकर कलकत्ता उच्च न्यायालय, मीडिया और तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु गायिका के साथ खड़े थे।
उस प्रकरण को याद करते हुए प्रख्यात गायिका ने कहा-'जब मैं उन दिनों को याद करती हूं तो मुझे याद आता है कि कैसे पूरा मीडिया मेरे साथ खड़ा था। तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु मेरे साथ खड़े थे। बंगाल के लोग मेरे साथ मजबूती के साथ खड़े थे। मैं कलकत्ता उच्च न्यायालय को एक कलाकार के अधिकार को बरकरार रखने के लिए धन्यवाद देती हूं। उत्थुप ने अपनी जीवनी 'द क्वीन आफ इंडियन पाप-द आथराइज्ड बायोग्राफी आफ ऊषा उत्थुप के विमोचन के बाद वहां मौजूद लोगों से बातचीत के दौरान यह बात कही। गायिका की जीवनी मूल रूप से 'उल्लास की नावÓ शीर्षक से विकास कुमार झा द्वारा हिंदी में लिखी गई। अंग्रेजी में इस पुस्तक का अनुवाद लेखक की बेटी सृष्टि झा ने किया है। ऊषा उत्थुप ने वर्ष 1969 से बंगाली, हिंदी, अंग्रेजी और अन्य भाषाओं में पाप गाने गाए हैं।
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