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बंगाल सरकार की हमदर्दी के चलते बांग्लादेशियों के लिए राज्य बना महफूज ठिकाना

कुछ महीने पहले कश्मीर में पकड़े गए रोहिंग्याओं से पूछताछ में यह बात सामने आई थी कि उन्हें बंगाल के सियालदाह स्टेशन से ट्रेन में बिठा गया और कहा गया था कि जम्मू में उतर जाएं। इसी तरह यह अन्य राज्यों में भी फैल गए।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Fri, 12 Mar 2021 12:15 PM (IST)
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रोहिंग्याओं के लिए भारत में घुसने का प्रवेश द्वार है भारत-बांग्लादेश सीमा। फाइल फोटो
राजीव कुमार झा, कोलकाता। वर्षो से बांग्लादेशियों के लिए सबसे महफूज ठिकाना रहे बंगाल में रोहिंग्या के प्रति भी शुरू से ही राज्य सरकार व प्रशासन का नरम रुख रहा है। यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षो से रोहिंग्याओं के लिए भी बंगाल एक महफूज ठिकाना बना हुआ है। यही नहीं, विभिन्न अपराधों व देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के चलते राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन चुके रोहिंग्या, जो जम्मू सहित देश के विभिन्न शहरों में बस चुके हैं, उनमें से अधिकतर रोहिंग्या म्यांमार से बांग्लादेश के रास्ते बंगाल पहुंचे। बंगाल से बांग्लादेश की लगभग 2000 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है, जहां बड़े इलाके में अब भी बाड़ नहीं लगी है, जिसका लाभ उठाकर वे दाखिल हुए।

जानकारी के मुताबिक, 2017 के अंत व 2018 की शुरुआत में पांच से छह हजार रोहिंग्या ने बांग्लादेश के रास्ते बंगाल में घुसपैठ की थी और यहां कुछ इस्लामिक संगठनों व एनजीओ की मदद से सीमावर्ती उत्तर व दक्षिण 24 परगना जिले में अवैध शरणार्थी शिविरों में पनाह ली थी। इसमें बारुईपुर, भांगड़, कैनिंग, बशीरहाट, घुटियारी शरीफ और बासंती सहित कुछ प्रमुख जगह हैं, जहां ना सिर्फ इन्होंने पनाह ली, बल्कि दिहाड़ी मजदूरी कर जीवन-यापन करने लगे। खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उस दौरान कहा था कि रोहिंग्या मुसलमान हमारे भाई हैं और वे यहां रह सकते हैं। उन्हें सिर्फ मनुष्य समङों ना कि केवल मुस्लिम शरणार्थी। ऐसे में समझा जा सकता है कि रोहिंग्या के प्रति राज्य सरकार का किस तरह नरम रुख रहा है। इसको लेकर विपक्षी दल भाजपा ममता सरकार को लगातार निशाना बनाती रही है। भाजपा नेता तो ममता को रोहिंग्या व बांग्लादेशी घुसपैठियों की मौसी तक बता चुके हैं। वहीं, अवैध रोहिंग्या कालोनी की मौजूदगी के बारे में जानकारी के बाद भी यहां जिला प्रशासन व पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही।

एक एनजीओ ने की थी खाने से लेकर रहने तक की व्यवस्था: बंगाल में आने वाले रोहिंग्या को शरण देने में ‘देश बचाओ सामाजिक समिति’ नामक एनजीओ की प्रमुख भूमिका रही थी। यह एनजीओ आल बंगाल माइनोरिटी यूथ फेडरेशन की एक इकाई है। दक्षिण 24 परगना के बारुईपुर थाना क्षेत्र में स्थित हरदा गांव में सर्वप्रथम इसके द्वारा 16 अस्थायी कमरे बनाए गए और वहां 29 रोहिंग्याओं को बसाया गया। धीरे-धीरे हरदा व कलाड़ी गांव में 4,000 रोहिंग्या के रहने की इस एनजीओ ने व्यवस्था की। इसमें स्थानीय लोगों ने भी उनकी पूरी मदद की। ग्रामीणों ने मेहमान बता रोहिंग्या के लिए बांस व टिन से घर और शौचालय बनवाए। यही नहीं, उन्होंने रोहिंग्याओं के लिए बिजली, चूल्हा, बर्तन, भोजन और कपड़ों तक की पूरी व्यवस्था की। इन शिविरों को एनजीओ के प्रमुख हुसैन गाजी द्वारा संचालित किया गया था। उस दौरान इनकी मदद के लिए भी अपील की गई थी।

वोटर व आधार कार्ड और पासपोर्ट तक बनवा लिए: बंगाल में रोहिंग्याओं के अवैध शिविर 2018 के अंत तक धीरे-धीरे खाली हो गए। ज्यादातर रोहिंग्या राज्य के अन्य हिस्सों व दूसरे राज्यों में शिफ्ट हो गए। बताया जाता है कि अब भी राज्य के विभिन्न हिस्सों में कुछ रोहिंग्या रह रहे हैं और वे विभिन्न प्रकार के कार्यो में शामिल हैं। यही नहीं, वह यहां वोटर, आधार, राशन कार्ड से लेकर पासपोर्ट तक बनवा चुके हैं। ऐसे कुछ मामले सामने आ चुके हैं।

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