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इसरो के चंद्रयान 3 मिशन में जादवपुर विवि के शोधकर्ता निभा रहे अहम भूमिका, चांद की जमीं को छूने पर जोर

सितंबर 2019 में चंद्रयान-2 मिशन के दौरान लैंडर ‘विक्रम’ चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इसके बाद भारत का वहां यान उतारने का पहला प्रयास विफल रहा था। लिहाजा इस बार चांद की जमीन को पंख की तरह सहजता से छूने पर विशेष जोर दिया जा रहा है।

By Jagran NewsEdited By: Sonu GuptaUpdated: Sun, 06 Nov 2022 09:08 PM (IST)
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चांद की जमीं को पंख की तरह सहजता से छूने पर खास जोर। फाइल फोटो।
इंद्रजीत सिंह, कोलकाता। सितंबर 2019 में चंद्रयान-2 मिशन के दौरान लैंडर ‘विक्रम’ चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इसके बाद भारत का वहां यान उतारने का पहला प्रयास विफल रहा था। लिहाजा इस बार चांद की जमीन को पंख की तरह सहजता से छूने पर विशेष जोर दिया जा रहा है। यह बात कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने कही है, जो इसरो के चंद्रयान 3 मिशन में अहम भूमिका निभा रहे हैं।

देश के कुछ शीर्ष शिक्षण संस्थानों को दी गई है जिम्मेदारी

बंगाल के इस शिक्षण संस्थान की ओर से विद्युत अभियांत्रिकी विभाग के सहायक प्रोफेसर अमिताभ गुप्त और इलेक्ट्रानिक्स व दूरसंचार इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर व परियोजना के सह अन्वेषक सायन चट्टोपाध्याय लैंडिंग प्रोजेक्ट का नेतृत्व कर रहे हैं। दरअसल इस परियोजना के लिए आइआइटी समेत देश के कुछ शीर्ष शिक्षण संस्थानों को जिम्मेदारी दी गई है। जादवपुर विïश्वविद्यालय भी उस सूची में है।

इसके के कई प्रोजक्ट चल रहे हैं

प्रोफेसर अमिताभ गुप्त ने कहा कि इस प्रोजेक्ट के काम में प्रोफेसरों के अलावा पीएचडी शोधकर्ता, स्नातकोत्तर और स्नातक छात्र भी शामिल हैं। सिर्फ चंद्रयान लैंडिंग प्रोजेक्ट ही नहीं बल्कि जादवपुर विश्वविद्यालय में इसरो के और भी कई प्रोजेक्ट चल रहे हैं।

यान में होंगे मल्टीपल थ्रस्टर्स

अमिताभ गुप्त ने कहा कि इस बार यान में मल्टीपल थ्रस्टर्स होंगे। इसकी मदद से आप पंख की तरह चांद की जमीन पर उतर जाएंगे। वैज्ञानिकों की भाषा में इसे फेदर टच कहते हैं। सुरक्षित लैंडिंग के लिए ईंधन के श्राव को बढ़ाने या घटाने के लिए थ्रस्टर्स का उपयोग किया जा सकता है। इस तकनीक का नाम होवरिंग टेक्नोलाजी है। अंतरिक्ष यान उतरने से पहले बाज की तरह एक जगह स्थिर होकर लैंडिंग साइट को देख सकेगा। उसके बाद स्थिति को समझते हुए थ्रस्टर के जरिए खुद को सीधा रखते हुए नीचे आ जाएगा।

शोधकर्ता बना रहे लैंडिंग का परिदृश्य

शोधकर्ता इस लैंडिंग का एक परिदृश्य (रियल टाइम सिमुलेशन) बना रहे हैं। यह तकनीक नासा द्वारा पहले ही विकसित की जा चुकी है। इस सिमुलेशन के माध्यम से सुरक्षित लैंडिंग परीक्षण चल रहे हैं। प्रोफेसर सायन चट्टोपाध्याय इस तकनीक के इमेजिंग के प्रभारी हैं। चट्टोपाध्याय ने बताया कि लैंडिंग साइट से दूर जाने पर भी अंतरिक्ष यान की स्थिति को समझने के लिए लैंडिंग साइट के आसपास के क्षेत्र की कई छवियां एकत्र की गई हैं। यदि अंतरिक्ष यान दूर चला जाता है या तिरछे कोण पर है, तो छवि देखकर उसकी स्थिति को समझा जा सकेगा। विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों के मुताबिक 12 नवंबर को इसरो की समीक्षा बैठक है। आशा है कि इस वर्ष के अंत तक वे इसरो को अनुसंधान प्रोजेक्ट जमा करने में सक्षम हो जाएंगे।

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