जागरण विशेष: अंतरिक्ष में बढ़ते कदमों के बीच भारतीय विज्ञानियों ने खोले ब्रह्मांड के 34 नए द्वार
टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआइएफआर) की पहल से हुए अहम शोध में 34 नई विशालकाय रेडियो आकाशगंगा की खोज की गई है। शोध में अहम भूमिका निभाने वाले प्रोफेसर सव्यसाची के अनुसार सामान्य आकाशगंगा से रेडियो आकाशगंगा विशाल होती हैं और अधिक ऊर्जा उत्सर्जित करती हैं। अमेरिकन एस्ट्रोमिकल जर्नल में इस अहम शोध का प्रकाशन हो चुका है ।
तारकेश कुमार ओझा, खड़गपुर। चंद्रयान-3 की सफलता के बाद इसरो गगनयान अभियान की तैयारी में जुटा है। हमारे विज्ञानी भी ब्रहमांड के अबूझ रहस्य सुलझाने में आगे बढ़ रहे हैं। इसी क्रम में ताजा भारतीय विज्ञानियों को ताजा सफलता मिली है। टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआइएफआर) की पहल से हुए अहम शोध में ब्रह्मांड में 34 नई विशालकाय आकाशगंगा (जीआरजी) की खोज की गई है।
इस खोज ने ब्रह्मांड के नए द्वार खोल दिए है। इसमें सहायक बनी है पुणे स्थित विशालकाय मीटरवेव रेडियो टेलीस्कोप (जीएमआरटी) जिसने डाटा उपलब्ध कराया है। इसी डाटा के विश्लेषण से विज्ञानियों की टीम ने यह शोध किया है। अमेरिकन एस्ट्रोमिकल जर्नल में इस अहम शोध का प्रकाशन हो चुका है।
शोध में अहम भूमिका निभाने वाले पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिला स्थित मेदिनीपुर सिटी कालेज से जुड़े प्रोफेसर सव्यसाची कहते हैं कि इससे ब्रह्मांड के अध्ययन को नई दिशा मिलेगी औऱ शोध क्षेत्र में भारत की पहचान सशक्त होगी। यह खोज ब्रह्मांड के अनंत विस्तार और उसके अद्भुत रहस्यों को समझने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
जीएमआरटी : ब्रह्मांडीय रहस्यों को उजागर करने वाला नेत्र
विशालकाय मीटरवेव रेडियो टेलीस्कोप (जीएमआरटी) पुणे शहर से 80 किलोमीटर उत्तर में खोडाड नामक स्थान पर स्थित है। यह विश्व की सबसे संवेदनशील दूरबीनों में से एक है। इसका संचालन राष्ट्रीय खगोल भौतिकी केंद्र के द्वारा किया जाता है, जो टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च का एक हिस्सा है। जीएमआरटी ने इस अभूतपूर्व खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
यह दूरबीन, मानव निर्मित एक विशाल नेत्र की भांति, ब्रह्मांड के गहन अंधेरे में झांकने में सक्षम है। 2010 से 2012 तक जीएमआरटी ने लगभग 90 प्रतिशत रेडियो आकाश का मानचित्रण (मैपिंग) किया, जिसे टीआइएफआर जीएमआरटी स्काई सर्वे (टीजीएसएस) के रूप में जाना जाता है। प्रोफेसर सव्यसाची पाल के नेतृत्व में खगोलविदों की टीम ने इसी टीजीएसएस डेटा का उपयोग करके इन नई जीआरएस की पहचान की है।
असाधारण आकार और रहस्यमय संरचना
ये विशालकाय रेडियो आकाशगंगाएं, अपने असाधारण आकार और रहस्यमय संरचना के कारण, खगोलविदों के लिए एक पहेली बनी हुई हैं। प्रोफेसर पाल के अनुसार ये आकाशगंगा सैकड़ों-हजारों प्रकाश वर्ष तक फैली हुई हैं, जो लगभग 20-25 आकाशगंगाओं को एक पंक्ति में खड़ा करने जितनी दूरी है।
इनके केंद्र में एक महाविशाल ब्लैक होल स्थित होता है, जो सूर्य के द्रव्यमान से करोड़ों गुना बड़ा होता है। यह ब्लैक होल अपने आस-पास के पदार्थ को गुरुत्वाकर्षण बल से खींचता है, जिससे एक शक्तिशाली विद्युत चुम्बकीय बल उत्पन्न होता है। यह बल पदार्थ को ब्लैक होल के घूर्णन अक्ष (एक्सिस) के साथ बाहर की ओर धकेलता है, जिससे लाखों प्रकाश वर्ष तक फैले विशाल रेडियो उत्सर्जन लोब बनते हैं।
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