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अपने बलबूते ममता ने बचाया बंगाल में TMC का गढ़, जुझारू नेता की छवि ने जीता समर्थकों का विश्वास

बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के लिए एक बार फिर ममता बनर्जी का जादू काम आया और पार्टी ने राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 29 पर शानदार जीत हासिल की। इतना ही नहीं टीएमसी ने भाजपा को पिछली बार की 18 सीटों से पीछे धकेल कर उसे 12 तक ही सीमित कर दिया। भाजपा को 39 प्रतिशत से भी कम वोट मिले।

By Jagran News Edited By: Versha Singh Updated: Wed, 05 Jun 2024 04:16 PM (IST)
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अपने बलबूते ममता ने बचाया बंगाल में TMC का गढ़ (फाइल फोटो)
राज्य ब्यूरो, जागरण, कोलकाता। बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के लिए एक बार फिर ममता बनर्जी का जादू काम आया और पार्टी ने राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 29 पर शानदार जीत हासिल की। इतना ही नहीं टीएमसी ने भाजपा को पिछली बार की 18 सीटों से पीछे धकेल कर उसे 12 तक ही सीमित कर दिया। भाजपा को 39 प्रतिशत से भी कम वोट मिले।

हालांकि दीदी ने जीत का श्रेय राज्य की जनता को दिया और चुनावी नतीजों को बंगाल के विरोधियों को जनता का ठेंगा करार दिया। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि ममता का राजनीतिक करिश्मा, सड़क पर उतरकर लड़ाई लडऩे वाली जुझारू नेता की उनकी छवि और भाजपा के प्रति उनका उग्र विरोध उनके समर्थकों के विश्वास को बनाए रखने में कहीं अधिक काम आया। इससे उन्हें सत्ता विरोधी लहर के बावजूद पार्टी के 2021 के राज्य विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन को लगभग दोहराने में मदद मिली।

ममता के पक्ष में उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता के अलावा जिस कारण से वह जीत को बरकरार रखने में कामयाब रहीं वह है लोकलुभावन लाभार्थी राजनीति, जिसे उन्होंने राज्य में अपने कार्यकाल के दौरान सक्रिय रूप से अपनाया। इसने विपक्ष के बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोपों और सत्ता-विरोधी ज्वार को कम कर दिया। लक्ष्मी भंडार और कन्याश्री जैसी योजनाओं के लाभार्थियों ने ममता को बड़े पैमाने पर समर्थन दिया।

उन्होंने इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि टीएमसी प्रमुख के कई नेता जेल में हैं, केंद्रीय जांच एजेंसियां उनके भतीजे सांसद अभिषेक बनर्जी सहित कई अन्य लोगों पर शिकंजा कस रही हैं और केंद्रीय कोष पर प्रतिबंध लगा हुआ है, जिससे राज्य की कल्याणकारी योजनाएं कथित तौर पर पटरी से उतर गई हैं।

इस प्रक्रिया में ममता ने खुले तौर पर पीडि़त कार्ड खेला और बाहरी लोगों से राज्य के लोगों की रक्षक के रूप में अपनी छवि को बढ़ावा दिया।

लोकसभा चुनाव 2014 ममता के राजनीतिक जीवन का सबसे अच्छा समय था जब उन्होंने राज्य की 42 लोकसभा सीट में से 34 पर कब्जा किया था। उन्हें शायद 2021 के राज्य विधानसभा चुनाव में भाजपा के जबरदस्त प्रभाव का सफलतापूर्वक प्रतिरोध करने के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाएगा, क्योंकि इस चुनाव में भाजपा ने अभूतपूर्व प्रचार अभियान चलाकर अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी।

2021 चुनाव में ममता के अथक अभियान (जिसमें से अधिकांश उन्होंने नंदीग्राम में अपने प्रचार अभियान के दौरान कथित तौर पर लगी चोट के कारण व्हीलचेयर से ही संचालित किया था) और पार्टी की चुनाव सलाहकार एजेंसी द्वारा तैयार की गई चुनावी रणनीतियों के कारण टीएमसी 215 सीटों पर पहुंच गई और भाजपा को उसने 77 सीटों तक सीमित कर दिया।

हालांकि भाजपा अपनी पिछली तीन सीटों की संख्या में 2021 में कई गुना अधिक सीटें हासिल करने में सफल रही और उसने विधानसभा में मुख्य विपक्षी के रूप में खुद को स्थापित किया, लेकिन राज्य में भाजपा की राजनीतिक आकांक्षाओं को करारा झटका देने का श्रेय ममता और अभिषेक को दिया गया। वहीं, मौजूदा लोकसभा चुनाव ममता द्वारा अपने बलबूते पर बंगाल में अपने गढ़ को बचाने के लिए याद किया जाएगा।

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