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बुद्धदेव के लिए 'Waterloo' साबित हुआ था सिंगुर व नंदीग्राम, बंगाल में निवेश लाने के लिए दिया था DO IT NOW का नारा

Buddhadeb Bhattacharya बुद्धदेव भट्टाचार्य के निधन पर पश्चिम बंगाल के लोगों में गहरा शोक है चाहे वे किसी भी राजनीतिक दल के हों। वह ज्योति बसु के नेतृत्व वाली पांच वाम मोर्चा सरकारों में से चार में कैबिनेट मंत्री रहे बुद्धदेव भट्टाचार्य ने ऐसे चरित्र का निर्माण किया था जो शासन करने वालों में बहुत कम होते जा रहे हैं। वे सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी के प्रतीक थे।

By Jagran News Edited By: Babli Kumari Updated: Thu, 08 Aug 2024 06:53 PM (IST)
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बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का हुआ निधन (फाइल फोटो)

राज्य ब्यूरो, कोलकाता। बुद्धदेव भट्टाचार्य 2000 से 2011 के बीच बंगाल के मुख्यमंत्री रहे। अपने दूसरे कार्यकाल में उन्होंने सशक्त ट्रेड यूनियनें, हड़ताल, औद्योगिक उत्पादन बंद करना और अमीरों को निशाना बनाने का चलन- इन सबको बदलने की कोशिश की जो कभी बंगाल में वामपंथी शासन की पहचान हुआ करते थे।

व्यक्तिगत तौर पर, वे मानते थे कि आर्थिक सुधार के मोर्चे पर बंगाल की बस छूट चुकी है और 1960-70 के दशक की नक्सली हिंसा के चलते बंगाल में निवेश भी नहीं रहा और इसे वापस लाने की जरूरत है। इसके चलते उन्होंने राज्य में कहीं से भी मिलने वाले वित्तीय निवेश को हासिल करने का लक्ष्य बनाया। उन्होंने बंगाल में उद्योग और निवेश को लाने के लिए नारा दिया था, डू इट नाउ, इसे अभी करो।

अपने राजनीतिक करियर का लिया था सबसे बड़ा जोखिम 

उन्होंने कृषि आय पर आश्रित पश्चिम बंगाल को अद्यौगिकीकरण की राह पर लाकर अपने राजनीतिक करियर का सबसे बड़ा जोखिम लिया था। उद्योग धंधों की स्थापना के लिए उन्होंने विदेशों से और देश के ही दूसरे राज्यों से पूंजी लाने के लिए मार्क्सवादी सिद्धांतों से समझौता भी किया। इसमें दुनिया की सबसे सस्ती कार टाटा नैनो का प्रोजेक्ट भी शामिल था, जिसे वे हुगली जिले के सिंगुर में लाने में कामयाब हुए। लेकिन बाद में कृषि जमीन अधिग्रहण को लेकर ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस ने इस परियोजना का जबरदस्त विरोध किया। आखिरकार टाटा को यहां से अपनी फैक्टरी गुजरात के सानंद में स्थानांतरित करनी पड़ी।

किसी भी प्रोजेक्ट पर नहीं शुरू हो पाया काम 

इसके अलावा दूसरे प्रस्ताव भी थे, जिसमें मेदिनीपुर जिले के शालबोनी में जिंदल समूह के स्वामित्व वाले भारत के सबसे बड़े स्टील प्लांट और नयाचार में केमिकल हब की स्थापना शामिल थी। लेकिन नंदीग्राम में किसानों के विरोध प्रदर्शन के बाद इनमें से किसी भी प्रोजेक्ट पर काम शुरू नहीं हो पाया। नंदीग्राम में इंडोनेशियाई सालेम समूह केमिकल इंडस्ट्रीज हब बनाना चाहता था। लेकिन बुद्धदेव भट्टाचार्य की योजना नाकाम हो गई और उनकी पार्टी को दूसरे वामपंथी दलों के साथ 2009 के आम चुनावों में भारी नुकसान का सामना करना पड़ा।

2011 में बंगाल में वाममोर्चे को हार का करना पड़ा सामना 

2011 में बंगाल में वाममोर्चे को हार का सामना करना पड़ा। ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार का गठन किया जब बंगाल की पुलिस ने नंदीग्राम की जमीन को लेकर प्रदर्शन कर रहे लोगों पर गोलियां चलाईं। इसके बाद बड़ी संख्या में बंगाली बुद्धिजीवियों ने बुद्धदेव भट्टाचार्य की आलोचना की। प्रेसिडेंसी कालेज में उनकी सहपाठी रहीं फिल्म अभिनेत्री और निर्देशिका अपर्णा सेन ने नंदीग्राम में पुलिस कार्रवाई के खिलाफ कहा था कि मुझे भरोसा नहीं हो रहा है कि बुद्धदेव की पुलिस गरीब खेत मजदूरों पर गोलियां चला सकती हैं। ऐसी ही आलोचना थिएटरकर्मी साउली मित्रा और लेखिका महाश्वेता देवी ने भी की थी।

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