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शिक्षक दिवस विशेष: शिक्षादान का महाअभियान... सुबह बेचते हैं मछली, दोपहर को बन जाते हैं प्रधानाध्यापक; पढ़ें प्रेरक कहानी

सुशिक्षित समाज राष्ट्र के विकास की आधारशिला होता है। भारत में हर वर्ग की पहुंच शिक्षा तक हो इसके लिए शिक्षा का अधिकार देने के साथ ही सरकार द्वारा कई अन्य प्रयास भी किए जा रहे हैं। निजी स्तर पर भी प्रेरक प्रयास हो रहे हैं। जीवनयापन की चुनौतियों का सामना करने के बीच भी कुछ गुरुजन शिक्षादाम के महती अभियान में जुटे हैं। पढ़िए प्रेरक कहानी...

By Jagran News Edited By: Narender Sanwariya Updated: Wed, 04 Sep 2024 06:40 PM (IST)
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अपने स्कूल में बच्चों को पढ़ाते विश्वनाथ नारु। फोटो- जागरण

विशाल श्रेष्ठ, जागरण, कोलकाता। वे प्रात: चार बजे मछलियों के थोक बाजार पहुंच जाते हैं। वहां से मछलियां खरीदकर सुबह सात बजे तक अपनी दुकान में आते हैं। सुबह 10:30 बजे तक मछलियां बेचते हैं। 11:30 बजते ही अपने स्कूल में पढ़ाने चले जाते हैं और फिर शाम चार बजे तक अध्यापन करते हैं। पिछले 50 वर्षों से विश्वनाथ नारू की यही दिनचर्या है। वे पेशे से मछली विक्रेता हैं, फिर भी लोग उन्हें 'मास्टर मोशाय' (मास्टर बाबू) कहकर संबोधित करते हैं। विश्वनाथ पांच दशक से कोलकाता के दमदम पार्क इलाके में स्कूल चलाकर गरीब बच्चों को नि:शुल्क पढ़ा रहे हैं।

70 वर्षीय विश्वनाथ कहते हैं कि मेरी बचपन से ही पढ़ने की बहुत इच्छा थी, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण बीएससी (प्रथम वर्ष) से आगे नहीं पढ़ पाया। पिता मछली बेचते थे, तो मैं भी इसी पेशे से जुड़ गया। हालांकि मैंने तभी ठान लिया था कि अपने जैसे गरीब बच्चों की पढ़ाई में बाधा न आए इसके लिए प्रयासरत रहूंगा।

सात जनवरी, 1974 को 20 वर्ष की उम्र में मैंने स्थानीय समाजसेवी शीष मुखर्जी के सहयोग से नंदीपुर में स्वामी विवेकानंद विद्या मंदिर नामक प्राथमिक विद्यालय खोला और वहां पहली से चौथी कक्षा तक नि:शुल्क पढ़ाई की व्यवस्था शुरू की। मगर उसे चलाने के लिए धन की आवश्यकता थी। मछलियां बेचकर जो आय होती थी, उसका अधिकांश इसी में व्यय होता था। इसके बाद मास वेलफेयर सोसायटी व प्रयत्न फाउंडेशन नामक दो गैर सरकारी संगठनों ने मदद का हाथ बढ़ाया।

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चार शिक्षिका भी हैं, पढ़ने आते हैं 70 बच्चे

विश्वनाथ के प्रयास से आज खपरैल की जगह पक्की इमारत खड़ी है। विश्वनाथ सुबह मछली विक्रेता और दोपहर को प्रधानाध्यापक की भूमिका बखूबी निभा रहे हैं। वे बच्चों को गणित व विज्ञान पढ़ाते हैं। विद्यालय में चार शिक्षिकाएं भी हैं। फिलहाल 70 बच्चे पढ़ने आते हैं।

मिड-डे मील की व्यवस्था तो नहीं है, लेकिन स्कूल की ओर से सभी बच्चों को टिफिन के लिए रुपये दिए जाते हैं। बच्चों को स्कूल की वर्दी और पुस्तकें भी नि:शुल्क दी जाती हैं। पठन-पाठन के अलावा बच्चों को योग, व्यायाम, नृत्य, चित्रकारी, कंप्यूटर की शिक्षा भी दी जाती है। स्कूल का अपना पुस्तकालय भी है और स्मार्ट टीवी के माध्यम से भी पढ़ाई कराई जाती है।

पढ़ाए छात्र प्रोफेसर तक बने

यह विश्वनाथ के अथक परिश्रम का ही परिणाम है कि उनके स्कूल से पढ़ाई की शुरुआत करने वाले कई बच्चे आज अपने पैरों पर खड़े हैं। कोई कालेज में प्रोफेसर है तो कोई अच्छी कंपनी में काम कर रहा है। विश्वनाथ को मछलियों की भी खूब पहचान है। वे रोहू, हिलसा, कतला समेत तरह-तरह की मछलियां बेचते हैं।

शिक्षा सबका मौलिक अधिकार है। मैं ज्यादा नहीं पढ़ पाया, लेकिन नहीं चाहता कि कोई पढ़ाई से वंचित रहे। बच्चों को पढ़ाने से जो आनंद मिलता है, उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकता। (विश्वनाथ नारू)

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