'नेताजी और आरएसएस का चिंतन एक है', भागवत ने मजबूत राष्ट्र के निर्माण के लिए मिलकर काम करने का किया आह्वान
नेताजी की जयंती पर उत्तर 24 परगना जिले के बारासात में एक स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि इस दिन केवल नेताजी को याद करना पर्याप्त नहीं है। हमें नेताजी को न केवल स्वतंत्रता संग्राम में उनके अमूल्य योगदान के लिए याद करना चाहिए बल्कि हमें उनके गुणों आदर्शों और सिद्धांतों को आत्मसात करना चाहिए।
राज्य ब्यूरो, कोलकाता। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने मंगलवार को कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस और हमारे चिंतन में कोई अंतर नहीं है। दोनों का ध्येय व चिंतन एक है।
नेताजी की जयंती पर उत्तर 24 परगना जिले के बारासात में एक स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि इस दिन केवल नेताजी को याद करना पर्याप्त नहीं है। हमें नेताजी को न केवल स्वतंत्रता संग्राम में उनके अमूल्य योगदान के लिए याद करना चाहिए, बल्कि हमें उनके गुणों, आदर्शों और सिद्धांतों को आत्मसात करना चाहिए। भागवत ने एक मजबूत राष्ट्र के निर्माण के उनके सपने को साकार करने की दिशा में काम करने के लिए सामूहिक जिम्मेदारी की आवश्यकता पर जोर दिया।
'हमारी पीढ़ियों पर नेताजी के उपकारों को याद रखने की जरूरत'
भागवत ने कहा, सुभाष बाबू ने अपने जीवन में अपने लिए नहीं सोच कर, देश के लिए जिया। हमारी पीढ़ियों पर नेताजी के उपकारों को याद रखने की जरूरत है। उनके सपने अभी भी अधूरे हैं, तो उन्हें पूरा करने की जिम्मेदारी किसकी है? अगर वह देखेंगे कि वर्तमान पीढ़ी इसे हासिल करने के लिए काम कर रही है, तभी यह पूरा होगा।'उनके सपने सिर्फ एक पीढ़ी में पूरे नहीं हो सकते'
भागवत ने कहा कि नेताजी जानते थे कि उनके सपने सिर्फ एक पीढ़ी में पूरे नहीं हो सकते। इस पर उनके बाद की पीढ़ियों को लगातार काम करना होगा। नेताजी को प्रेरणा स्त्रोत बताते हुए उन्होंने आह्वान किया कि वर्तमान पीढ़ी को उनकी आकांक्षाओं को साकार करने की दिशा में सक्रिय रूप से काम करना चाहिए।
'आजादी मिलने के बाद हम अपने स्वार्थ के साथ सो गए'
बोस को आधुनिक भारत के निर्माताओं में से एक बताते हुए भागवत ने कहा कि क्या हम वास्तव में जानते हैं कि स्वतंत्रता सेनानियों ने किन सपनों के साथ देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया था?उन्होंने कहा कि आजादी मिलने के बाद हम अपने स्वार्थ के साथ सो गए। हमें मेरा परिवार और मैं से आगे कुछ नहीं दिखता। अहंकार, स्वार्थ और मतभेद की बेड़ियां जारी हैं। इसलिए, हमें नेताजी के उपकारों को कृतज्ञतापूर्वक याद करने और उनके सपने को पूरा करने की जरूरत है। हमें तब तक अपना काम नहीं छोड़ना चाहिए जब तक कि वह पूरा न हो जाए।
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