'लेकर आते हैं पुण्य कराने...करके चले जाते हैं पाप..', बुजुर्गों को तीर्थ कराने के नाम पर मरने के लिए छोड़ जाते हैं उनके अपने
मकर संक्रांति पर गंगासागर में पुण्य स्नान करने आने वालों में हजारों लोग हर साल बिछड़ते हैं।उनमें से90प्रतिशत वापस अपनों से मिल जाते हैंलेकिन बाकी के स्वजनों व रिश्तेदारों का पता नहीं चल पाताक्योंकि वे गंगासागर छोड़कर जा चुके होते हैं।इनमें ज्यादातर ऐसे बुजुर्ग होते हैंजो शारीरिक व मानसिक रूप से दिव्यांग होते हैंजिनकी समझ व याददाश्त बहुत कम होती है और जो अपने घर का पता नहीं बता पाते।
विशाल श्रेष्ठ, गंगासागर। जीवन के अंतिम पड़ाव में अधिकांश लोग अपनों के साथ रहना चाहते हैं, लेकिन उनमें से बहुतों को यह नसीब नहीं हो पाता, क्योंकि उनके अपने उन्हें अपने साथ नहीं रखना चाहते। कुछ की आखिरी सांस फुटपाथ पर छूटती है तो कुछ की वृद्धाश्रम में। वहीं कुछ को पुण्य करवाने के नाम पर गंगासागर लाकर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है।
मकर संक्रांति पर गंगासागर में पुण्य स्नान करने आने वालों में हजारों लोग हर साल बिछड़ते हैं।उनमें से 90 प्रतिशत वापस अपनों से मिल जाते हैं, लेकिन बाकी के स्वजनों व रिश्तेदारों का पता नहीं चल पाता, क्योंकि वे गंगासागर छोड़कर जा चुके होते हैं। इनमें ज्यादातर ऐसे बुजुर्ग होते हैं, जो शारीरिक व मानसिक रूप से दिव्यांग होते हैं, जिनकी समझ व याददाश्त बहुत कम होती है और जो अपने घर का पता नहीं बता पाते।
गंगासागर में हर साल बिछड़ते हैं सात से आठ हजार लोग
गंगासागर में बिछड़ने वालों को तलाशने वाली प्रमुख संस्था बजरंग परिषद के सेवा मंत्री प्रेमनाथ दुबे ने बताया-'यहां हर साल सात से आठ हजार लोग खोते हैं। बाद में पता चलता है कि उनमें से आठ से नौ प्रतिशत लोगों को उनके अपने ही छोड़कर चले जाते हैं। ज्यादातर लोगों का गंगासागर में ही अपनों से मिलाप हो जाता है। बचे लोगों के घर का किसी तरह से पता लगाकर जब हम उन्हें उनके घर छोड़ने जाते हैं तो उनके सगे-संबंधियों के हाव-भाव से ही पता चल जाता है कि किन्हें अपनों को वापस पाकर खुशी हुई और किन्हें गम।कुछ के चेहरे खुशी से चमक उठते हैं तो कुछ के लटक जाते हैं।' प्रेमनाथ दुबे पिछले तीन दशक से गंगासागर में बिछड़ने वालों को उनके अपनों से मिलाने के नेक कार्य में जुटे हुए हैं।
घर ले जाने पर स्वीकार करना नहीं चाहते स्वजन
इसी काम में जुटी एक अन्य संस्था हैम रेडियो, वेस्ट बंगाल रेडियो क्लब के सचिव अंबरीश नाग विश्वास ने कहा-'बिछड़े लोगों को जब हम उनके घर लेकर जाते हैं तो कुछ के स्वजन हम पर ही भड़क उठते हैं। कहते हैं, इसे लेकर क्यों आ गए? वापस ले जाओ। ऐसे मामलों में हमें स्थानीय थाने की मदद लेनी पड़ती है। पुलिस की कड़ी चेतावनी के बाद वे उन्हें वापस लेते हैं, हालांकि इसकी कोई गारंटी नहीं है कि वे उन्हें फिर से कहीं और छोड़कर नहीं आएंगे।कुछ लोग अपनों को सेवा शिविरों में छोड़ जाते हैं, तो कुछ ऐसे निष्ठुर भी हैं, जो गंगासागर में चलने वाली सर्द हवाओं के बीच खुले आसमान के नीचे अपनों को छोड़कर गायब हो जाते हैं। असहाय ये लोग बीमार पड़कर कई दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहते हैं। कुछ अस्पताल में दम तोड़ देते हैं। बाकी के स्वजनों का पता लगाने के लिएअस्पताल प्रबंधन की ओर से हमसे संपर्क किया जाता है। कुछ लोग यह निश्चित करने की पूरी कोशिश करते हैं कि त्यागे गए लोग वापस लौट के न आ सके इसलिए उनके पास उनका परिचय पत्र तक नहीं छोड़ते।'
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