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West Bengal Durga Pooja: दुर्गा पूजा से पहले थर्माकोल पर प्रतिबंध से उलझन में बंगाल के कलाकार, कैसे सजे पंडाल!

कलाकार प्रदीप दास ने सरकार के निर्णय का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि सरकार को अवश्य यह सुनिश्चित करना चाहिए कि थर्माकोल का उत्पादन न हो। यह बाजार में उपलब्ध ही नहीं होगा तो लोग उसका उपयोग कर ही नहीं पाएंगे।

By Shivam YadavEdited By: Updated: Sat, 10 Sep 2022 10:45 PM (IST)
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तीन महीने पहले केंद्र ने थर्माकोल (पॉलीस्टीरिन) पर प्रतिबंध लगा दिया था।
कोलकाता, जेएनएन। बंगाल की दुर्गा पूजा पूरी दुनिया में मशहूर है। यूनेस्को ने कोलकाता की दुर्गा पूजा को सांस्कृतिक विरासत का दर्जा दिया है। ऐसे में इस बार दुर्गा पूजा का आयोजन और भव्य बनाने की यहां तैयारियां हो रही हैं, लेकिन केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के एक फैसले के चलते बंगाल के कलाकार परेशान हैं। दरअसल, दुर्गा पूजा से तीन महीने पहले केंद्र ने थर्माकोल (पॉलीस्टीरिन) पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद से बंगाल में कलाकार अजीब स्थिति में फंस गये हैं क्योंकि वे लंबे समय से पंडालों को सजाने और मूर्तियों के आभूषणों के लिए इसी उत्पाद का इस्तेमाल करते रहे हैं।

बंगाल की दुर्गा पूजा पूरी दुनिया में मशहूर है। यूनेस्को ने कोलकाता की दुर्गा पूजा को सांस्कृतिक विरासत का दर्जा दिया है। ऐसे में इस बार दुर्गा पूजा का आयोजन और भव्य बनाने की यहां तैयारियां हो रही हैं, लेकिन केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के एक फैसले के चलते बंगाल के कलाकार परेशान हैं। दरअसल, दुर्गा पूजा से तीन महीने पहले केंद्र ने थर्माकोल (पॉलीस्टीरिन) पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद से बंगाल में कलाकार अजीब स्थिति में फंस गये हैं क्योंकि वे लंबे समय से पंडालों को सजाने और मूर्तियों के आभूषणों के लिए इसी उत्पाद का इस्तेमाल करते रहे हैं।

कलाकारों का मानना है कि बेहतर होता कि सरकार इसके पर्यावरण पर दुष्प्रभावों को लेकर उनके बीच जागरुकता अभियान चलाती और उन्हें इसका विकल्प तलाशने के लिए कुछ समय देती। दरअसल, केंद्र सरकार ने एक जुलाई से पॉलीस्टीरिन के अलावा प्लेट्स, कप, स्ट्रा जैसे सिंगल यूज वाले चिह्नित किए गए प्लास्टिक उत्पादों के मैन्युफैक्चरिंग, इंपोर्ट, स्टोरेज, डिस्ट्रीब्यूशन, सेल्स और इस्तेमाल करने पर पाबंदी लगा दी थी।

ज्यादातर लोग करते हैं थर्माकोल आधारित सजावट

थर्मोकॉल एक सिंथेटिक पॉलीमर है। इसका अक्सर सुरक्षित पैकेजिंग, थर्मल इंसुलेशन और चीजों को सजाने में उपयोग किया जाता है। लेकिन यह बायोलॉजिकल डिग्रेडेबल नहीं होता है, इसलिए यह पर्यावरण के अनुकूल नहीं होता है। अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिल्पकार सनातन डिंडा ने इस कदम का स्वागत किया लेकिन कहा कि कलाकारों को इस बदलाव के लिए वक्त दिया जाना चाहिए था।

उन्होंने कहा कि ज्यादातर लोग थर्माकोल आधारित सजावट करते हैं। उन्हें पहले प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए था और फिर यह पाबंदी लगाई जानी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि मैं पहले थर्माकोल का उपयोग करता था लेकिन मैंने इसे काफी पहले छोड़ दिया। इस साल की पूजा में मैं अपने काम के लिए लोहे, कागज, अलग तरह के चूना, फाइबर ग्लास का उपयोग कर रहा हूं।

थर्मोकाल का उत्पादन न हो

वहीं, कलाकार प्रदीप दास ने सरकार के निर्णय का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि सरकार को अवश्य यह सुनिश्चित करना चाहिए कि थर्माकोल का उत्पादन न हो। यह बाजार में उपलब्ध ही नहीं होगा तो लोग उसका उपयोग कर ही नहीं पाएंगे। हर साल अधिकांश पूजा आयोजक किसी विषय खासकर सामाजिक मुद्दे का चयन करते हैं और अपने पंडालों, मूर्तियों और प्रकाश व्यवस्था के जरिए इसे (विषय को) चित्रित करते हैं। पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष कल्याण रूद्र ने कहा कि सभी को भारत सरकार के नियमों का पालन करना ही होगा।

पाबंदी से कई लोग होंगे प्रभावित

इधर, थर्माकोल के जरिए मूर्तियों के आभूषण तैयार करने और अन्य उपयोगी चीजें बनाने वाले कलाकार रंजीत सरकार ने कहा कि हमें अब थर्माकोल के अलावा अन्य सामग्रियों के बारे में सोचना होगा। सरकार को बहुत पहले इसके बारे में सोचना चाहिए था। इस पाबंदी से कई लोग प्रभावित होंगे और अन्य सामग्री की ओर बढ़ने में वक्त लगेगा।

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